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Rajat Sharma’s Blog: तालिबानी हुकूमत के आतंकी सरगनाओं के साथ कौन खड़ा है?

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में ऐसे भी नेता हैं जो उम्मीद कर रहे हैं कि तालिबान और पाकिस्तान  मिलकर कश्मीर में हिंसा भड़काएंगे और मोदी सरकार को परेशान करेंगे।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published : September 09, 2021 18:14 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

इस समय पूरी दुनिया में तालिबान की नई सरकार की चर्चा है। लोग हैरान हैं कि यह किसी मुल्क की सरकार है या आतंकियों की जमात। मैंने भी जब तालिबान के मंत्रियों के बैकग्राउंड की स्टडी की तो हैरान रह गया। इनमें से कोई सुसाइड बम बनाने में एक्सपर्ट है तो कोई कोड़े लगाने में, कोई शरिया के नाम पर लड़कियों की पढ़ाई के खिलाफ है तो कोई कहता है कि पीएचडी करने से कोई फायदा नहीं, पढ़ाई करने से कुछ नहीं होगा। सिर्फ इतना ही नहीं, तालिबान सरकार के 14 मंत्रियों के नाम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा घोषित आतंकवादियों की ब्लैकलिस्ट में शामिल हैं।

अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने एक तीखी टिप्पणी में कहा, ‘हमने गौर किया है कि नामों की घोषित सूची में विशेष रूप से ऐसे व्यक्ति शामिल हैं जो तालिबान के सदस्य हैं या उनके करीबी सहयोगी हैं और कोई महिला नहीं है। हम कुछ व्यक्तियों की संबद्धता और पूर्व के रिकॉर्ड को लेकर भी चिंतित हैं। हम तालिबान को उसके कार्यों से आंकेंगे, उसके शब्दों से नहीं।’

UNSC द्वारा जारी आतंकवादियों की ब्लैकलिस्ट में अफगानिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री मुल्ला मुहम्मद हसन अखुन्द, दोनों डिप्टी पीएम, गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी (एक करोड़ अमेरिकी डॉलर के इनामी), उनके चाचा खलील हक्कानी, मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब, विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी और अन्य के नाम शामिल हैं।

अब सवाल यह उठता है कि क्या दुनिया भर की सरकारें तालिबान के मंत्रियों के साथ बातचीत करेंगी? क्या तालिबान सरकार को विश्व की प्रमुख शक्तियों से मान्यता मिलेगी? चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने बुधवार को घोषणा की थी कि चीन तालिबान सरकार की मदद करेगा और कोविड वैक्सीन, दवाओं, खाद्यान्न और जाड़े के साजो-सामान की सप्लाई के रूप में 3.1 करोड़ डॉलर की मदद देगा। उन्होंने यह बात पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के विदेश मंत्रियों की एक बैठक को संबोधित करते हुए कही। रूस इस बैठक में मौजूद नहीं था।

इस बीच ऐसी खबरें सामने आई हैं कि तालिबान के लड़ाके काबुल और अन्य शहरों में पत्रकारों और महिला प्रदर्शनकारियों पर चाबुक बरसा रहे हैं। बेल्ट और बेंत से उनकी पिटाई कर रहे हैं। प्रेस को आजादी देने का तालिबान का वादा भी हवा-हवाई साबित हुआ है।

पत्रकारों की सुरक्षा के लिए बनी समिति (CPJ) ने बुधवार को मांग की कि तालिबान पत्रकारों को हिरासत में लेना तुरंत बंद करे, उनके खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल बंद करे और मीडिया को बदले की कार्रवाई के खौफ के बिना स्वतंत्र रूप से काम करने दे। CPJ ने आरोप लगाया कि पिछले 2 दिनों में तालिबान ने काबुल में विरोध प्रदर्शन को कवर करने वाले कम से कम 14 पत्रकारों को हिरासत में लिया और बाद में रिहा कर दिया। CPJ का आरोप है कि इनमें से कम से कम 6 पत्रकारों को उनकी गिरफ्तारी या नजरबंदी के दौरान हिंसा का शिकार होना पड़ा। कुछ पत्रकारों को तालिबान ने प्रोटेस्ट मार्च का वीडियो बनाने से भी रोका।

बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने पत्रकारों को तालिबान की पिटाई के कारण अपनी पीठ पर पड़े चोट के निशान दिखाते हुए दिखाया था। तालिबान के लड़ाकों ने इन पत्रकारों को एक कमरे में बंद करके पीटा था।

तालिबान ने बुधवार को काबुल में चल रहे विरोध प्रदर्शनों की कवरेज के बाद, दैनिक अखबार 'अल इत्तेला रूज़' के वीडियो एडिटर और वीडियो रिपोर्टर, ताकी दरयाबी और नेमातुल्लाह नक़दी को हिरासत में ले लिया। इन दोनों पत्रकारों को एक पुलिस स्टेशन ले जाया गया, जहां उन्हें 2 अलग-अलग कमरों में बंद करके केबल से पीटा गया। इन दोनों पत्रकारों को हिरासत में टॉचर किया गया। अखबार के एडिटर और 2 अन्य पत्रकार जब पुलिस स्टेशन गए तो उन्हें भी हिरासत में ले लिया गया।

अखबार के प्रकाशक जकी दरयाबी ने बताया कि तालिबान द्वारा हिरासत में लिए गए इन 3 पत्रकारों में एडिटर कदीम करीमी, और लुत्फली सुल्तानी एवं अबर शायगन नाम के 2 अन्य पत्रकार शामिल थे। जैसा कि वीडियो में नजर आ रहा था, तालिबान द्वारा की गई पिटाई के बाद तकी दरयाबी की पीठ के निचले हिस्से, पैरों के ऊपरी हिस्से और चेहरे पर जबकि नक़दी के बाएं हाथ, पीठ के ऊपरी हिस्से, पैर के ऊपरी हिस्से और चेहरे पर चोट के लाल निशान थे। दरयाबी तो बिना मदद के चल भी नहीं पा रहे थे।

बुधवार को काबुल में पत्रकारों पर तालिबान के हमले की 2 और घटनाएं हुईं। लॉस एंजिलिस टाइम्स के लिए काम करने वाले 2 पत्रकार काबुल में महिलाओं के विरोध प्रदर्शन को कवर कर रहे थे। इसी दौरान उन्हें तालिबान ने पकड़ लिया और एक पुलिस स्टेशन ले गए। उनके कैमरे को जब्त कर लिया गया। तालिबान के एक नेता ने उनसे कहा कि विरोध प्रदर्शन की कवरेज करना 'गैर कानूनी' है और उन्हें अपने कैमरे से प्रोटेस्ट की सभी तस्वीरों को डिलीट कर देना चाहिए।

एक अन्य घटना में तालिबान के 3 लड़ाकों ने 'यूरोन्यूज' के एक पत्रकार के चेहरे पर बार-बार थप्पड़ मारा, और उनका फोन एवं वॉलेट जब्त कर लिया। बाद में उनकी रिहाई के समय वॉलेट और फोन को वापस कर दिया। मंगलवार को तालिबान ने टोलो न्यूज चैनल के कैमरामैन वाहिद अहमदी को उस वक्त हिरासत में लिया था, जब वह काबुल में प्रेसिडेंशियल पैलेस के पास महिलाओं के विरोध प्रदर्शन का वीडियो बना रहे थे। उनका कैमरा जब्त कर लिया गया, हथकड़ी लगाई गई और फिर उन्हें काबुल में तालिबान के मिलिट्री हेडक्वॉर्टर ले जाया गया। न्यूज चैनल के अधिकारियों द्वारा तालिबान सांस्कृतिक आयोग से संपर्क करने के 3 घंटे बाद उन्हें रिहा किया गया। बाद में उन्हें कैमरा भी वापस कर दिया गया जिसमें फुटेज सही सलामत मिली।

मंगलवार को काबुल में प्रेसिडेंशियल पैलेस के पास हुई एक अन्य घटना में तालिबान के लड़ाकों ने एक लोकल ब्रॉडकास्टर के 2 पत्रकारों को जमीन पर पटक दिया, और फिर उनका माइक्रोफोन उनके सिर पर दे मारा जिससे वह टूट गया। इसके बाद वे उन्हें हथकड़ी पहनाकर राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय ले गए। तालिबान के लड़ाकों ने दोनों पत्रकारों को एक कमरे में जमीन पर पटक दिया और उनके साथ बुरी तरह मारपीट की। इन पत्रकारों को छाती, हाथ, कंधे, पीठ और पैरों में काफी चोटें आईं। हमलावरों ने पत्रकारों को मेटल रॉड से भी पीटने की धमकी दी। तालिबान के लड़ाकों ने बाद में इन पत्रकारों को छोड़ दिया, लेकिन उनके कैमरे का मेमोरी कार्ड और माइक्रोफोन अपने पास ही रख लिया।

मंगलवार को ही हुई एक और घटना में तालिबान ने एक इंटरनेशनल ब्रॉडकास्टर के पत्रकार को गिरफ्तार कर लिया। वह जनबाग स्क्वेयर पर महिलाओं के विरोध प्रदर्शन का वीडियो रिकॉर्ड कर रहे थे। गिरफ्तारी के बाद उन्हें एनडीएस कार्यालय ले जाया गया। तालिबान लड़ाकों ने उनके सिर पर बंदूकें तान दीं और विरोध प्रदर्शन के बारे में कोई रिपोर्ट प्रकाशित करने पर गोली मारने की धमकी दी। 2 घंटे बाद उन्हें छोड़ दिया गया। पत्रकार ने बताया कि उनकी पिटाई तो नहीं की गई लेकिन इस अनुभव ने उन्हें मानसिक तौर पर हिलाकर रख दिया था।

सिर्फ पत्रकारों को ही नहीं बल्कि सड़कों पर निकलने वाली बहादुर अफगान महिलाओं पर भी तालिबान ने बुधवार को चाबुक और डंडे बरसाए। ये महिला प्रदर्शनकारी कैबिनेट में महिलाओं के लिए समान अधिकार और प्रतिनिधित्व की मांग कर रही थीं। महिलाएं शांति से मार्च कर रही थीं, तभी उन्हें गाड़ियों में सवार होकर आए तालिबान के लड़ाकों ने रोका और बिजली के झटके देने वाले डंडों से उनकी पिटाई शुरू कर दी। तालिबान के लड़ाकों ने इन महिलाओं के ऊपर चाबुक भी बरसाए।

तालिबान के नए शिक्षा मंत्री अब्दुल बाक़ी हक्कानी ने कहा है कि छात्रों को उच्च शिक्षा की पढ़ाई करने की कोई जरूरत नहीं है बल्कि उन्हें मदरसों में ‘दीनी तालीम’ लेनी चाहिए। वह पहले ही अफगानिस्तान के कॉलेजों और यूनिवर्सिटियों में पुरुष और महिला छात्रों के बीच पर्दा लगाने का फरमान जारी कर चुके हैं।

तालिबान के प्रवक्ता चाहे जितना दावा करें कि उनकी सरकार सबके साथ न्याय करेगी, जमीनी हकीकत बहुत ही कड़वी और क्रूर है। पत्रकारों को पीटा जा रहा है, उनके कैमरे जब्त किए जा रहे हैं और जान से मारने की धमकी दी जा रही है। बराबरी का हक मांगने वाली महिलाओं पर चाबुक बरसाए जा रहे हैं। अफगानिस्तान के आम लोग गहरे सदमे में हैं। एक तरह से देखा जाए तो उन्होंने अपनी आजादी खो दी है। यही वजह है कि जब महिला प्रदर्शनकारी अपने विरोध की आवाज बुलंद करती हैं तो 'आजाद' जैसे नारे काबुल की फिजाओं में तैरने लगते हैं।

अफगानिस्तान के लोगों, खासतौर से महिलाओं को अमेरिका से काफी उम्मीदें थीं। अमेरिका ने पिछले 20 सालों के दौरान देश के पुनर्निर्माण में मदद की थी। अब जबकि अमेरिका इन्हें बेबस और लाचार छोड़कर चला गया है, वे सदमे की हालत में हैं। पिछले 2 दशकों से अफगानिस्तान में महिलाएं बगैर किसी भेदभाव के आजाद हवा में सांस ले रही थीं, कॉलेजों और यूनिवर्सिटियों में पढ़ रही थीं, दफ्तरों और कारखानों में काम कर रही थीं। अफगानिस्तान के लोगों ने अशरफ गनी को अपना राष्ट्रपति चुना, लेकिन जब तालिबान काबुल के दरवाजे पर पहुंच गया तो वह अपने लोगों को बेबस और बेसहारा छोड़कर भाग निकले। राष्ट्रपति के भागने के साथ ही अफगान सेना ताश के पत्तों की तरह बिखर गई और उसने तालिबान के आगे घुटने टेक दिए।

अशरफ गनी ने बुधवार को एक बयान में देश से भागने के लिए अपने साथी अफगानों से माफी मांगी। उन्होंने सफाई दी कि अगर वह मुल्क छोड़कर नहीं भागते तो काफी खून खराबा होता और काबुल में हजारों लोगों की जान चली जाती। गनी ने काबुल से भागते समय अपने साथ बड़ी मात्रा में कैश ले जाने के आरोपों से भी इनकार किया और कहा कि वह किसी भी तरह की जांच के लिए तैयार हैं। गनी के जाने के बाद अफगानिस्तान के लोगों को पंजशीर घाटी से तालिबान को टक्कर दे रहे नॉर्दन अलायंस से उम्मीदें थीं, लेकिन पाकिस्तान ने नॉर्दन अलायंस के ठिकारों पर बमबारी करके तालिबान की मदद की और वह पंजशीर घाटी में दाखिल हो गया। अब अफगानिस्तान के लोग अपने घरेलू मामलों में दखल देने के लिए पाकिस्तान से नफरत करने लगे हैं और उसके खिलाफ सड़कों पर उतरकर नारे लगा रहे हैं।

भारत की बात करें तो जम्मू और कश्मीर के 2 पूर्व मुख्यमंत्रियों, डॉ. फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने कहा कि वे तालिबान से सुशासन की उम्मीद करते हैं। फारूक अब्दुल्ला ने कहा, 'मुझे उम्मीद है कि तालिबान सभी के साथ न्याय करेंगे और इस्लाम की शिक्षा एवं मानवाधिकारों का ध्यान रखते हुए अच्छी सरकार चलाएंगे।' महबूबा मुफ्ती ने कहा, 'तालिबान अब एक हकीकत बन चुका है। अगर वह अफगानिस्तान पर शासन करना चाहता हैं, तो उसे कुरान में निर्धारित सच्चे शरिया कानून का पालन करना होगा जो कि महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के अधिकारों की गारंटी देता है, न कि उसका जिसे वे सही कहते हैं, तभी वे दूसरे देशों के साथ संबंध कायम कर सकते हैं।'

उम्मीद तो बहुत अच्छी है, लेकिन जमीनी हकीकत कड़वी है। मैं महबूबा मुफ्ती और डॉ. फारूक अब्दुल्ला द्वारा तालिबान के बारे में दिए गए बयानों से हैरान हूं। जो नेता सियासत में अपने दम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला नहीं कर पाए, वे अब अफगानिस्तान में तालिबान पर अपनी उम्मीदें लगाने लगे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में ऐसे भी नेता हैं जो उम्मीद कर रहे हैं कि तालिबान और पाकिस्तान  मिलकर कश्मीर में हिंसा भड़काएंगे और मोदी सरकार को परेशान करेंगे। यह एक देशविरोधी सोच है और ये मंसूबे ख्याली पुलाव बनकर रह जाएंगे।

क्या इन नेताओं को नहीं पता है कि तालिबान की कैबिनेट में कितने आतंकी सरगना हैं? क्या ये नेता तालिबान द्वारा आम अफगानों पर किए गए जुल्म के बारे में नहीं जानते? क्या ये नेता नहीं जानते कि तालिबान के आते ही औरतों के हक छीन लिए गए हैं, पत्रकारों की आवाज दबा दी गई है, इन पर कोड़े बरसाए गए हैं? क्या इन नेताओं को नहीं बता है कि महिलाओं को समान अधिकार, नौकरी और शिक्षा से वंचित कर दिया गया है? क्या इन नेताओं को आज भी तालिबान द्वारा महिलाओं पर चाबुक बरसाने की जानकारी नहीं है?

ये नेता इन सारी खौफनाक सच्चाइयों के बारे में जानते हैं। वे यह भी जानते हैं कि तालिबान न तो बदला है और न ही बदलेगा। लेकिन ये नेता अपने सियासी फायदे के लिए तालिबान की झूठी तस्वीर के आगे सलाम करने में लगे हैं। देश की जनता ऐसे अवसरवादियों को कभी माफ नहीं करेगी। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 08 सितंबर, 2021 का पूरा एपिसोड

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