Tuesday, November 05, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. भारत
  3. राष्ट्रीय
  4. Rajat Sharma’s Blog: अधिकांश लोगों का दिवाली के पहले, और सभी का क्रिसमस के पहले हो टीकाकरण

Rajat Sharma’s Blog: अधिकांश लोगों का दिवाली के पहले, और सभी का क्रिसमस के पहले हो टीकाकरण

टीकाकरण अभियान चलाने को लेकर शोर-शराबा करना तो आसान है, लेकिन इसे लागू करना एक बहुत बड़ा काम है, खासकर ग्रामीण इलाकों में।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: June 01, 2021 16:49 IST
Rajat Sharma Blog, Rajat Sharma Blog on Covid Vaccination, Rajat Sharma Blog on Coronavirus- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

कोरोना के ऐक्टिव मामलों की संख्या में गिरावट के साथ ही अब पूरा ध्यान सभी नागरिकों को महामारी की तीसरी लहर से बचाने के लिए पूरे देश में टीकाकरण अभियान चलाने पर है। सोमवार को केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से वादा किया कि 18 साल से ऊपर के सभी भारतीयों को साल के अंत तक टीका लगा दिया जाएगा, लेकिन कोर्ट ने सरकार को कोराना टीकाकरण की नीति संबंधी दस्तावेज पेश करने का निर्देश दिया।

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह जुलाई के मध्य या अगस्त से रोजाना एक करोड़ डोज का लक्ष्य बनाकर टीकाकरण अभियान को 'मिशन मोड' में आगे बढ़ाना चाहता है। केंद्र ने कहा कि उसे भारत बायोटेक, SII और स्पुतनिक-वी के टीके बना रही रेड्डीज लैब से ज्यादा सप्लाई की उम्मीद है। इसके अलावा केंद्र और फाइजर के बीच बड़े पैमाने पर कोरोना वैक्सीन की खरीद को लेकर बातचीत चल रही है।

सुप्रीम कोर्ट ने 'डिजिटल डिवाइड' के मुद्दे पर सॉलिसिटर जनरल से कई सवाल पूछे। बेंच ने पूछा, ‘क्या ग्रामीण क्षेत्रों के हाशिए पर रहने वाले प्रवासी श्रमिकों के लिए CoWin ऐप के जरिए रजिस्ट्रेशन करा पाना मुमकिन है? क्या आप ग्रामीण इलाकों में डिजिटल डिवाइट के बारे में जानते हैं? नीति निर्माताओं को जमीनी हालात पता होने चाहिए और उसी के मुताबिक नीति में बदलाव किए जाने चाहिए। कृपया जमीनी हालात का पता लगाएं और नीतिगत फैसलों में उपयुक्त संशोधन करें।’

बेंच ने यह भी पूछा: ‘केंद्र द्वारा राज्यों के लिए ज्यादा कीमत पर और प्राइवेट अस्पतालों के लिए इससे भी ज्यादा कीमत पर टीके खरीदने के पीछे क्या तर्क है? सरकार ने कीमतें तय करने का जिम्मा वैक्सीन निर्माताओं पर क्यों छोड़ा है? राज्य और यहां तक कि नगर निगम भी टीकों की खरीद के लिए ग्लोबल टेंडर क्यों जारी कर रहे हैं? आपने मुफ्त में सार्वभौमिक टीकाकरण के लिए 1978 के नीतिगत फैसले को क्यों छोड़ दिया?’

टीकाकरण पर बहस ऐसे समय में तेज होती जा रही है जब सोमवार को भारत में पिछले 54 दिनों में कोरोना वायरस से संक्रमण के एक दिन में सबसे कम 1.27 लाख मामले सामने आए। इसी के साथ सक्रिय मामलों की संख्या घटकर 18.95 लाख पर पहुंच गई। पिछले 24 घंटों के दौरान सक्रिय मामलों की संख्या में 1.30 लाख की कमी आई है। वहीं, सोमवार को हुई 2,795 मौतों के साथ कोरोना से अपनी जान गंवाने वाले लोगों की संख्या 3,31,895 हो गई। आंकड़ों की बात करें तो भारत में मई महीने में कोरोना के कुल 90.3 लाख मामले सामने आए जबकि लगभग 1.2 लाख मरीजों को इस महामारी के चलते अपनी जान गंवानी पड़ी। मई के महीने में मरने वालों की संख्या अप्रैल में हुई 48.768 मौतों के मुकाबले ढाई गुना ज्यादा थी।

महामारी को बढ़ने से रोकने के लिए केंद्र और राज्य, दोनों अब टीकाकरण अभियान पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। लेकिन क्या भारत के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोग कोरोना का टीका लगवाने के लिए तैयार हैं? ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों का टीकाकरण एक बड़ी चुनौती बन गया है। सोमवार की रात अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लेकर बिहार के भागलपुर तक के ग्रामीणों के बीच टीकों को लेकर हिचकिचाहट दिखाई। मेरे पास उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और बिहार के हमारे रिपोर्टर्स द्वारा भेजी गई रिपोर्ट्स हैं, जो स्पष्ट तौर पर दिखाती हैं कि निरक्षर और अर्ध-शिक्षित ग्रामीण तबका निराधार अफवाहों के चलते टीका लगवाने को तैयार ही नहीं हैं। ऐसे कई इलाके हैं जहां लोग वैक्सीन को ‘जहर का इंजेक्शन’ कह रहे हैं। डॉक्टरों समेत स्वास्थ्यकर्मियों को ग्रामीणों को यह समझाने में मुश्किल हो रही है कि वैक्सीन से कोई नुकसान नहीं है और ये उन्हें वायरस से बचाने के लिए लगाई जा रही है।

कुछ गांवों में लोगों ने कहा कि वे कोरोना से भले ही मर जाएंगे लेकिन वैक्सीन लगवाकर अपनी जान नहीं देंगे। गांवों में अफवाह फैली हुई है कि वैक्सीन लगवाने वाले ज्यादातर लोगों की मौत कोरोना वायरस के संक्रमण से हो गई। कई जगह तो हालत ये है कि गांवों के लोग वैक्सीन लगाने के लिए पहुंचे हेल्थ डिपार्टमेंट के कर्मचारियों को मार-मारकर भगा रहे हैं। ऐसे विरोध से तंग आकर उज्जैन और फिरोजाबाद जैसी जगहों पर स्थानीय प्रशासन ने अपने सभी कर्मचारियों को कहा है कि वे या तो टीका लगवाएं या अपनी तनख्वाह छोड़ दें। कर्मचारियों से कहा जा रहा है- 'वैक्सीन नहीं, तो सैलरी नहीं'। मुलायम सिंह यादव के गृहक्षेत्र सैफई में स्थानीय प्रशासन ने शराब विक्रेताओं को केवल उन्हीं लोगों को शराब बेचने को कहा है जिनके पास कोविड वैक्सीनेशन का सर्टिफिकेट है। जरा सोचिए, जिस देश में स्वास्थ्यकर्मियों, नगर निगम के कर्मचारियों को और सरकारी अफसरों को वैक्सीन लगवाने के लिए तन्ख्वाह रोकने की धमकी देनी पड़े, उस देश में 100 पर्सेंट टीकाकरण कितना कठिन काम है।

हमारे रिपोर्टर अनुराग अमिताभ भोपाल से 20 किमी दूर रतीबड़ गांव में गांववालों से पूछा कि वे वैक्सीन से परहेज क्यों कर रहे हैं। गांव के ज्यादातर लोगों ने कहा कि वैक्सीन लगवाना मौत को दावत देना है। वहीं, कुछ अन्य गांववालों ने कहा कि टीका लगवाने क बाद कोई नपुंसक भी हो सकता है। उनमें से कुछ लोगों ने यब भी कहा कि वे आए दिन अखबार में, मीडिया में देखते हैं कि कोरोना से मरने वाले लोगों में से कई ने वैक्सीन लगवाई थी। कुछ तो ऐसे भी थे जो इस निराधार अफवाह को हवा दे रहे थे कि हमारे प्रधानमंत्री भी वैक्सीन लगवाने के बाद कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए।

हमारी रिपोर्टर गोनिका अरोड़ा ने बिहार के भागलपुर में ग्रामीणों से मुलाकात की। गांववालों ने दावा किया कि वैक्सीन लेने के बाद लोगों ने कोरोना से अपनी जान गंवा दी। भागलपुर जिले के जगदीशपुर प्रखंड में गई हेल्थ डिपार्टमेंट की टीम ने बताया कि उनका लक्ष्य रोजाना 400 लोगों को वैक्सीन लगाने का है, लेकिन हालत यह है कि एक हफ्ते में मुश्किल से 250 डोज ही लग पाती हैं। कई गांव तो ऐसे हैं जहां मुश्किल से 10 लोगों का टीकाकरण हो पाया है। एक हेल्थ वर्कर ने कहा कि उसने एक दिन सुबह 9 बजे से लेकर दोपहर 3 बजे तक इंतजार किया, लेकिन एक भी गांववाला वैक्सीन लगवाने के लिए नहीं आया।

हमारी रिपोर्टर रुचि कुमार लखनऊ के पास स्थित रहमतनगर गांव गई थीं। स्थानीय आशा कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर लोगों को वैक्सीनेशन के लिए समझाने गई थीं, लेकिन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर टीका लगवाने के लिए बहुत ही कम लोग पहुंचे। गांववालों के पास टीका न लगवाने को लेकर अपने ही तर्क हैं, अपनी ही दलीलें हैं। साफ है कि इन गांवों में अफवाहों का बोलबाला है।

अलीगढ़ के एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कोविड वैक्सीन से भरे हुए 29 इंजेक्शन कूड़ेदान में फेंके गए पाए गए। पूछताछ के बाद स्थानीय ANM (ऑक्जिलरी नर्स मिडवाइफ) निहा खान को बर्खास्त कर दिया गया। ANM निहा खान पर यह कार्रवाई तब हुई जब कुछ ऐसे वीडियो सामने आए जिनमें वह लोगों को वैक्सीन लगाते वक्त सीरिंज तो उनकी बांह में घुसाते हुए दिख रही थी, लेकिन वैक्सीन को इंजेक्ट किए बिना ही डस्टबिन में फेंक दे रही थी।

टीकाकरण अभियान चलाने को लेकर शोर-शराबा करना तो आसान है, लेकिन इसे लागू करना एक बहुत बड़ा काम है, खासकर ग्रामीण इलाकों में। जो लोग कोरोना के टीकों की कमी का रोना रो रहे हैं, उनमें से ज्यादातर शहरों से हैं। उन्हें उन दिक्कतों के बारे में पता होना चाहिए जिनका सामना डॉक्टरों, नर्सों, एएनएम को गांववालों को टीका लगाते हुए करना पड़ता है। बड़े पैमाने पर लोगों के मन मे संदेह के पीछे कई कारण हैं - यह मौत का डर, निराधार अफवाहों के चलते पैदा हुआ डर या धार्मिक आधार पर पैदा डर हो सकता है।

केंद्र सरकार सिर्फ टीके खरीद सकती है, राज्यों को भेज सकती है, टीकाकरण केंद्र स्थापित कर सकती है, लोगों के रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था कर सकती है, आशा कार्यकर्ताओं को लोगों के गांव-घर तक भेज सकती है, लेकिन लोगों को टीका लगवाने के लिए मोटिवेट कौन कर सकता है? जो लोग शहरों में अपने ड्राइंग रूम के अंदर बैठे हैं, वे ब्रिटेन, अमेरिका या यूरोप में हो रहे वैक्सीनेशन के आंकड़ों का हवाला दे सकते हैं, लेकिन उन्हें वास्तव में जमीनी हकीकत जाननी चाहिए, ANM कार्यकर्ताओं, नर्सों और डॉक्टरों से बात करनी चाहिए कि वे टीकाकरण अभियान के दौरान किस तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं।

यह सच है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश लोग या तो साक्षर हैं, अर्ध-साक्षर हैं या भोले हैं, और वे आसानी से निराधार अफवाहों पर विश्वास कर लेते हैं। मैं देश के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की सराहना करता हूं जो गांवों में जाते हैं, गालियों, धमकियों और मारपीट का सामना करने के बावजूद लोगों को कोरोना के टीकों के फायदे के बारे में लोगों को समझाने की कोशिश करते हैं। मेरा सुझाव है कि गांवों में रहने वाले पढ़े-लिखे लोग जैसे कि शिक्षकों, सरपंचों, पंडितों, पुजारियों या मौलवियों को लोगों के बीच कोरोना के टीकों के फायदे के बारे में जागरूकता पैदा करनी चाहिए। वे खुद आगे आएं और सार्वजनिक रूप से अपना टीकाकरण कराएं, ताकि लोग उनके बताए रास्ते पर चल सकें। 70 प्रतिशत भारतीयों का टीकाकरण होने के बाद ही हम राहत की सांस ले सकते हैं और महामारी खत्म हो सकती है। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 31 मई, 2021 का पूरा एपिसोड

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement