हरियाणा-दिल्ली सीमा पर 50,000 से ज्यादा किसानों के इकट्ठा होने, और पंजाब, यूपी एवं हरियाणा से राष्ट्रीय राजधानी की ओर तमाम अन्य किसानों के बढ़ने से हालात अब तनावपूर्ण हो गए हैं। दिल्ली पुलिस ने किसानों को बुराड़ी मैदान में धरने की इजाजत दे दी है और सारी व्यवस्था भी कर दी है, लेकिन किसानों के कुछ धड़े मध्य दिल्ली के रामलीला मैदान की ओर मार्च करने पर जोर दे रहे हैं। कोविड-19 महामारी का प्रकोप किसानों में न फैले इसके लिए दिल्ली पुलिस बुराड़ी मैदान में पहुंचे किसानों के ट्रैक्टरों को सैनिटाइज कर रही है।
शुक्रवार को दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर पुलिस और किसानों के बीच झड़पें हुईं। किसानों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए पुलिस को हल्के लाठीचार्ज के साथ-साथ आंसू गैस और वॉटर कैनन का इस्तेमाल करना पड़ा। दिल्ली-बहादुरगढ़ हाईवे पर स्थित टिकरी बॉर्डर पर किसान पुलिसवालों से भिड़ गए। वहां पर भी लाठीचार्ज हुआ और आंसू गैस के गोले दागे गए। दिल्ली-गुरुग्राम हाईवे, पीरागढ़ी, मुकरबा चौक और धौला कुआं पर भारी ट्रैफिक जाम लग गया क्योंकि किसान सेंट्रल दिल्ली की तरफ बढ़ने पर जोर दे रहे थे।
वर्तमान में जारी गतिरोध से निकलने का एकमात्र रास्ता यही है कि केंद्र और किसानों के प्रतिनिधियों के बीच जल्द से जल्द बातचीत की शुरुआत की जाए। अगर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, जो किसानों के हितों के समर्थकों में से एक हैं, बातचीत की पहल करते हैं तो किसान संगठनों के नेता उन पर भरोसा कर सकते हैं। कोई नहीं चाहता कि दिल्ली की कड़ाके की ठंड में पुलिस किसानों पर पानी की बौछार मारे या उनपर लाठियां बरसाएं। यदि सरकार किसान नेताओं को समझाने में कामयाब हो जाती है, तो एक रास्ता निकल सकता है। राष्ट्रीय हित को देखते हुए न तो सरकार, और न ही किसानों को किसी तरह की जिद पकड़नी चाहिए।
सारी बातें सुनने के बाद लगता है कि मोटे तौर पर किसानों की दो शिकायतें हैं, या कहें तो उनके मन में दो तरह के डर हैं। एक तो यह कि उन्हें नया कानून MSP की गारंटी नहीं देता, और दूसरा यह कि नए कानून से मंडियां खत्म हो जाएंगी और वो अपनी फसल बेचने के लिए पूरी तरह बड़े कॉरपोरेट्स पर निर्भर हो जाएंगे। MSP का शक इसलिए पैदा हुआ क्योंकि आज भी ज्यादातर राज्यों में किसानों को फसलों के लिए सरकार द्वारा तय किया गया न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल रहा है। जहां MSP 1800 रुपये प्रति क्विंटल है, वहां वे अपनी फसल 800 रुपये प्रति क्विंटल में बेचने पर मजबूर हैं।
किसानों की शिकायत है कि उन्हें मक्का, धान, सरसों समेत कई अन्य फसलों पर MSP नहीं मिलता है। इसके लिए कई तरह के सुझाव आए हैं। एक तो यह है कि MSP न देने वालों के खिलाफ, कम दाम पर फसल खरीदने वालों के खिलाफ ऐक्शन हो, उन्हें पकड़ा जाए। दूसरा सुझाव मध्य प्रदेश सरकार की 'भावान्तर' योजना को लेकर है, जिसके तहत यदि किसान को MSP से कम दाम पर फसल बेचनी पड़ती है, तो MSP और फसल के भाव का अन्तर राज्य सरकार देगी। किसान नेताओं का कहना है कि अगर ये योजना पूरे देश में लागू कर दी जाए तो किसानों को काफी राहत मिलेगी।
जहां तक कृषि उत्पादन बाजार समितियों (APMC) की मंडियों का सवाल है, तो नए कानूनों में कहीं भी उनको खत्म करने का कोई प्रावधान नहीं है। नए कानून किसानों को 'मंडियों' से इतर खरीदारों को अपनी फसल बेचने के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था प्रदान करते हैं और यह किसानों पर निर्भर करता है कि वे अपनी उपज को बेहतर दाम पर बेचने के लिए किसी भी सिस्टम को चुन सकते हैं। नए कानून 'मंडियों' को खत्म करने की बात नहीं करते हैं। वे केवल किसानों को अपनी फसल बेचने की एक 'वैकल्पिक सुविधा' प्रदान करते हैं। 'मंडियां' वैसे ही चलती रहेंगी, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि जो लोग किसानों को उकसा और भड़का रहे थे, वे तो अपने मकसद में कामयाब हो गए, और जिन्हें किसानों को समझना था, वे नाकाम रहे।
मुझे नहीं लगता कि नरेंद्र मोदी की सरकार किसान विरोधी है और बड़े कॉरपोरेट्स के हाथों में खेल रही है। दोनों पक्षों को जल्द से जल्द बातचीत शुरू कर देनी चाहिए और वर्तमान गतिरोध को दूर करना चाहिए। किसान हमारे अन्नदाता हैं और वे देश को ताकत देते हैं, जैसा कि इस साल देखने को मिला जब कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते सारी औद्योगिक गतिविधियां ठप्प पड़ गई थीं। भारत में एक भी शख्स की मौत भूख से नहीं हुई, और न ही खाने और आवश्यक वस्तुओं की कोई कमी देखने को मिली, जैसा कि लॉकडाउन की घोषणा पर आशंका व्यक्त की गई थी। इसके लिए देश के किसानों को सलाम है।
अंत में मैं पुलिसकर्मियों को भी सल्यूट करना चाहता हूं जो बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं। वे किसानों के ही बेटे हैं। पथराव, आगजनी और हिंसक झड़पों के बावजूद हमारे पुलिसकर्मियों ने कमाल का संयम दिखाया। किसानों की तरह पुलिसवालों को भी कड़ाके की ठंड लगती है, और उन्हें लंबे समय तक ड्यूटी करनी पड़ती है, ईंट-पत्थरों का सामना करना पड़ता है। उनके भी परिवार हैं, बाल-बच्चे हैं। एक तरफ तो उन्हें आदेश हैं कि हमले कर रहे प्रदर्शनकारियों को रोकना है, दूसरी तरफ उन पर बंदिश है कि किसी तरह का बल प्रयोग नहीं करना है। हमें अपने किसानों और पुलिसकर्मियों, दोनों के लिए पूरी सहानुभूति होनी चाहिए। हमें उम्मीद है कि जल्द से जल्द एक शांतिपूर्ण समाधान निकलेगा। (रजत शर्मा)
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