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Rajat Sharma’s Blog: सैकड़ों लोगों को मौत के मुंह में झोंकने की जिम्मेदारी लें तबलीगी जमात के चीफ

यदि तबलीगी जमात के लोगों ने वायरस के सुपर स्प्रेडर के रूप में काम नहीं किया होता, तो कोरोना से संक्रमण के ज्यादातर मामलों से बचा जा सकता था।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated on: April 29, 2020 14:00 IST
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India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma | India TV

आज मैं भारत और अमेरिका में कोरोना वायरस के संक्रमण से जुड़े आंकड़ों की तुलना के साथ शुरुआत करता हूं। लगभग 135 करोड़ की जनसंख्या वाले हमारे देश में मंगलवार तक कुल 29,974 मामले सामने आए थे। भारत में इस वायरस से आधिकारिक तौर पर 937 लोगों की जान गई है। पिछले 24 घंटों में 53 मौतों के साथ लगभग 1600 नए मामले जुड़े हैं। वहीं, दूसरी तरफ दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते पिछले 24 घंटों में 1303 लोगों की मौत हुई और अब तक कुल 10,35,765 मरीज सामने आ चुके हैं। इससे एक बात साफ होती है। देशव्यापी लॉकडाउन के एक महीने से भी ज्यादा वक्त के बाद भारत में महामारी अब नियंत्रण में है।

लोग पूछ रहे हैं कि यदि महामारी नियंत्रण में है तो कोरोना वायरस से संक्रमण के 1,600 नए मामले क्यों आए हैं? अगर चीजें नियंत्रण में हैं तो लॉकडाउन को क्यों बढ़ाया जा रहा है? मैं देश के कुछ प्रमुख शहरों में मौजूद हॉटस्पॉट्स का जिक्र करके अपना जवाब देता हूं। इन जगहों से डराने वाले रुझान सामने आए हैं। सबसे पहले हम नागपुर चलते हैं। यहां के मुस्लिम बहुल सतरंजीपुरा इलाके में एक अकेले शख्स ने मरने से पहले 80 लोगों तक वायरस पहुंचा दिया और लगभग 1200 लोगों को क्वारन्टीन में रखना पड़ा। 68 वर्षीय इस शख्स का नाम अब्दुल लतीफ है, जिनकी कोरोना वायरस के चलते 5 अप्रैल को एक अस्पताल में मौत हो गई थी। मैंने एक हफ्ते पहले इस मामले का जिक्र किया था। अब्दुल लतीफ के परिवार में एक बेटे और 4 बेटियों समेत कुल 20 से ज्यादा सदस्य हैं। इनमें से 18 लोग पॉजिटिव पाए गए हैं।

सबसे पहले अब्दुल लतीफ के बेटे को संक्रमण हुआ, और उससे उसकी पत्नी को, फिर पत्नी के भाई और भाभी को। अब्दुल लतीफ की 3 बेटियां भी वायरस की चपेट में आ गईं। दूसरी बेटी के जरिए यह वायरस उसके पति में पहुंचा और उनके बच्चे भी संक्रमित हो गए। वायरस ने फिर तीसरी बेटी और उसके 2 बच्चों को संक्रमित किया। अब्दुल लतीफ के बहनोई और एक दोस्त को भी वायरस ने अपना शिकार बनाया। चेन रिऐक्शन के चलते आखिरकार परिवार के सभी सदस्य और करीबी दोस्त इस वायरस के शिकंजे में आ गए। यह जानने के बावजूद कि अब्दुल लतीफ कोरोना वायरस से संक्रमित थे, इन सभी लोगों ने सोशल डिस्टैंसिंग के नियमों की धज्जियां उड़ाईं और उनके संपर्क में बने रहे।

पूरे सतरंजीपुरा इलाके को हॉटस्पॉट घोषित कर दिया गया और स्टेट रिजर्व पुलिस की निगरानी में परिजनों और लतीफ के संपर्क में आए अन्य लोगों को बसों के जरिए क्वॉरन्टीन सेंटर पहुंचाया गया। अब लगभग पूरा इलाका ही खाली पड़ा है। अब्दुल लतीफ की कोई ट्रैवल हिस्ट्री नहीं थी। वह टीबी के मरीज थे और वह अपने दामाद के एक दोस्त के जरिए संक्रमित हुए थे। दामाद के उस दोस्त की ट्रैवल हिस्ट्री थी। अब्दुल लतीफ में कोरोना वायरस के संक्रमण का पता उनकी मौत के बाद ही चल पाया था। स्थानीय अधिकारियों ने अब्दुल लतीफ के संपर्क में आए सभी लोगों से क्वॉरन्टीन में जाने की अपील की थी, लेकिन बहुत ही कम लोग सामने आए। अधिकांश ने यह बाद छिपाई कि वे अब्दुल लतीफ से मिले थे, और इसका नतीजा आज हम सबको पता है।

भारत में मंगलवार तक जो लगभग 30,000 कोरोना संक्रमण के मामले थे, उनमें से दो-तिहाई (लगभग 20,000) मामले 5 राज्यों- महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश के हैं। यदि तबलीगी जमात के लोगों ने वायरस के सुपर स्प्रेडर के रूप में काम नहीं किया होता, तो इनमें से ज्यादातर मामलों से बचा जा सकता था। पुणे के मामले को ही लें। दिल्ली के मरकज में हुई सभा में यहां के लगभग 180 जमाती शामिल हुए थे। इनमें से 36 जमाती भवानी पेठ इलाके के थे। 3 लाख से भी ज्यादा की आबादी वाले इस इलाके को पुणे के धारावी के रूप में जाना जाता है।

भवानी पेठ की झुग्गी बस्ती में 8 बाई 10 फीट की झुग्गियां हैं और हर झुग्गी में 5 से लेकर 10 लोग तक भी रहते हैं। कई लोग मिलकर एक कॉमन टॉइलट का इस्तेमाल करते हैं। यहां पहले मामले का पता 4 अप्रैल को लगा और अगले 24 दिनों में यह संख्या 250 से भी ज्यादा हो गई। यहां का पहला मरीज तबलीगी जमात का सदस्य था। स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि अधिकांश जमाती सब्जी, फल या दूध बेचने का काम करते थे। वे कई लोगों के संपर्क में आए और वायरस को फैलाते गए। जब जमात के नाम पर बवाल शुरू हुआ, तो पुलिस ने सभी जमातियों से आगे आने की अपील की, लेकिन उनमें से लगभग 5 लोग भाग गए और अपने दोस्तों या रिश्तेदारों के यहां जाकर छिप गए। जब तक अधिकांश जमातियों को आइसोलेट किया जाता, तब तक यह महामारी भवानी पेठ इलाके में फैल गई और इसे हॉटस्पॉट घोषित करना पड़ा।

अहमदाबाद भी एक क्रूशल ‘रेड जोन’ है। इस शहर में कोरोना वायरस से संक्रमित लगभग 75 मरीज ऐसे हैं जो तबलीगी जमात के सदस्यों के संपर्क में आए थे। अहमदाबाद में इस समय 2,500 से भी ज्यादा लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हैं। यहां पहले मामले के बारे में 20 मार्च को पता चला था, फिर अगले 12 दिनों में बढ़कर यह 34 हो गया, और अब यह आंकड़ा 4 अंकों में पहुंच गया है। यही हाल एक अन्य ‘रेड जोन’ कानपुर का है, जहां जमात के लोगों ने अपने दोस्तों, संपर्क में आने वाले लोगों और यहां तक कि मदरसों में भी वायरस फैला दिया।

जब भी मैं तबलीगी जमात की बात करता हूं, तो कुछ लोग आपत्ति जताते हैं। वे आमतौर पर पूछते हैं कि मैं संगठन का नाम क्यों बता रहा हूं। मेरा सवाल यह है: हमें तबलीगी जमात का नाम लेने से परहेज क्यों करना चाहए? दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में जमात के लोगों का जमावड़ा होने की वजह से यह वायरस भारत के कई राज्यों में फैला है, हम इस तथ्य को कैसे छिपा सकते हैं? क्या यह तथ्य नहीं है कि लगभग 40,000 लोगों को जमात के कारण क्वॉरन्टीन से गुजरना पड़ा? क्या यह तथ्य नहीं है कि इनमें से कई जमाती विभिन्न राज्यों की मस्जिदों में छिपे मिले थे?

क्या यह तथ्य नहीं है कि कई पुलिसकर्मी, स्वास्थ्य कार्यकर्ता और अन्य सामाजिक कार्यकर्ता जो जमात के सदस्यों को खोजने के लिए गए, खुद वायरस की चपेट में आ गए? अहमदाबाद के वरिष्ठ कांग्रेस नेता बदरुद्दीन शेख खुद जमात के लोगों का पता लगाने के लिए मस्जिदों में गए थे। इस दौरान वह वायरस का शिकार हो गए और अंत में एक अस्पताल में उनकी मौत हो गई। कांग्रेस के ही एक अन्य नेता इमरान खेड़ावाला को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा क्योंकि वह भी जमात के सदस्यों की तलाश में मस्जिदों में जाने के बाद वायरस की चपेट में आ गए। इमरान खेड़ावाला से मुलाकात के बाद गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल को होम क्वॉरन्टीन का विकल्प चुनना पड़ा।

मेरा सवाल यह है कि क्या तबलीगी जमात को गुजरात के इन 2 वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं में कोरोना वायरस फैलाने की जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए? क्या जमात प्रमुख मौलाना साद को मरकज में हुए जमावड़े में अपने अनुयायियों को यह कहकर गुमराह करने की जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए कि मुसलमानों को कोरोना वायरस का संक्रमण कभी नहीं हो सकता और यदि कोई संक्रमित हो भी गया तो मरने के लिए मस्जिद से बेहतर जगह कोई नहीं है। मौलाना साद अभी भी सामने नहीं आए हैं। उन्हें सामने आना चाहिए, उन गलतियों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए जिसके चलते उन्होंने सैकड़ों लोगों को मौत के मुंह में झोंक दिया, जिससे कि बचा जा सकता था। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 28 अप्रैल, 2020 का पूरा एपिसोड

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