सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायधीशों की बेंच ने शुक्रवार को 70 साल पुराने अयोध्या विवाद को तीन सदस्यीय मध्यस्थों के पैनल को भेज दिया। इस पैनल में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एफ.एम कलिफु्ल्ला और मध्यस्थता मामलों के विशेषज्ञ श्रीराम पंचू शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह पैनल आठ सप्ताह में अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंप दे। साथ ही कोर्ट ने पैनल को यह भी कहा कि वह मध्यस्थता की प्रक्रिया में पूरी गोपनीयता बरते।
मेरा मानना है कि यह सही दिशा में उठाया गया उपयुक्त कदम है। बाबरी मस्जिद ध्वस्त किये जाने से दो साल पहले ही उस समय के प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने बातचीत के जरिए अयोध्या विवाद का हल निकालने की कोशिश की थी। बाद के दिनों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी मध्यस्थता के जरिए मामले को सुलझाने की कोशिश की। इसके अलावा अलग-अलग स्तर पर भी लोगों ने बातचीत के जरिए इस मसले का एक सौहार्दपूर्ण समाधान तलाशने की कोशिश की लेकिन इस दिशा में कोई सफलता नहीं मिली।
बातचीत की सारी कोशिशें नाकाम होने के बाद मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में पहुंचा जहां कोर्ट ने विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया। सबूतों के आधार पर हाईकोर्ट ने इस दलील को स्वीकार किया कि अयोध्या में मंदिर के मलबे पर मस्जिद का निर्माण किया गया था। चूंकि हाईकोर्ट ने विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांट दिया था, और इससे कई लोग सहमत नहीं थे इसलिए यह विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।
सुप्रीम कोर्ट में जो केस है वो कहने को तो सिर्फ टाइटल सूट है लेकिन असल में ये केस करोड़ों रामभक्तों की आस्था से जुड़ा है। वैसे तो सुप्रीम कोर्ट का काम है कि संविधान के मुताबिक किसी भी केस का फैसला करे, लेकिन ये भी सही है कि करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़े मुद्दों का फैसला करना कोर्ट के लिए आसान नहीं है।
मेरा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के जरिए इस मु्द्दे का हल तलाशने का जो फैसला लिया है, वह बिल्कुल सही है। यदि कोर्ट कोर्ई फैसला करेगा तो उसमें एक पक्ष जीतेगा और दूसरा पक्ष हारेगा, लेकिन अगर बातचीत से रास्ता निकलेगा तो न किसी की हार होगी और न ही किसी की जीत होगी बल्कि इससे देश की एकता की जीत होगी। जो लोग ये कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से मामला लटकेगा तो उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि यह मसला और न लटके इसलिए कोर्ट ने मध्यस्थों को 8 सप्ताह का समय दिया है। इस दौरान सभी पक्षों से कहा गया है कि वे इस केस के सभी दस्तावेजों के अनुवाद को अभी देख लें। अगर कहीं कोई गड़बड़ी लगती है तो उसे दुरूस्त करा लें जिससे एक बार सुनवाई शुरू होने के बाद अनुवाद पर सवाल उठाकर मामले को और न लटकाया जा सके।
अयोध्या विवाद में फैसला किसी पर थोप कर उसे आगे और ज्यादा जटिल बनाने के बजाय सुप्रीम कोर्ट ने बातचीत के जरिए इस मु्द्दे के सौहार्दपूर्ण समाधान का इरादा स्पष्ट तौर पर जाहिर कर दिया है। (रजत शर्मा)
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