पंजाब में तेजी से बढ़ते घटनाक्रम में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने गुरुवार को स्थानीय शासन और पर्यटन एवं सांस्कृतिक मामलों के विभाग नवजोत सिंह सिद्धू से ले लिए। इसकी जगह पर उन्हें बिजली तथा नई एवं नवीकरणीय ऊर्जा का प्रभार दे दिया गया। इससे पहले सिद्धू मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गुरुवार को ही हुई कैबिनेट की बैठक में शामिल नहीं हुए थे। इसकी बजाय वह सोशल मीडिया पर आकर अपनी भड़ास निकालते रहे। इससे पहले मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया था कि सिद्धू ने बेहद ही महत्वपूर्ण स्थानीय शासन विभाग की जिम्मेदारी सही से नहीं निभाई थी। अमरिंदर का कहना था कि इसी के चलते लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन पंजाब के शहरी इलाकों में अच्छा नहीं रहा।
इन आरोपों पर पलटवार करते हुए सिद्धू ने कहा कि उन्हे ‘सार्वजनिक तौर पर निशाना बनाया जा रहा है।’ सिद्धू ने दावा किया कि उनकी पार्टी ने उन दोनों लोकसभा सीटों में बेहतर प्रदर्शन किया जो उन्हें सौंपी गई थीं। सिद्धू ने कहा, मैंने हमेशा उन्हें (कैप्टन अमरिंदर) अपने बड़े भाई की तरह सम्मान दिया है। मैं हमेशा उनकी बात सुनता हूं, लेकिन ऐसी बातें दुख पहुंचाती हैं। सामूहिक जिम्मेदारी कहां गई? लेकिन सामूहिक जिम्मेदारी लेने की बजाय मुझे निशाना बनाया गया।’ सिद्धू ने कहा, ‘मुझे हल्के में नहीं लिया जा सकता। मैंने अपने जीवन के 40 सालों में लगातार अच्छा प्रदर्शन करके दिखाया है, चाहे वह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट हो या ज्योफ्री बॉयकाट के साथ विश्वस्तरीय कमेंट्री हो, टीवी शो हो या 1,300 प्रेरक व्क्तव्य हों।’ उन्होंने कहा कि वह अपने नाम, विश्वसनीयता और परफॉर्मेंस का ‘जमकर’ बचाव करेंगे।
मैं इन सभी का विस्तार से उल्लेख इसलिए कर रहा हूं क्योंकि मैं यह बताना चाहता हूं कि सिद्धू कभी भी किसी के प्रति भी वफादार नहीं रहे हैं। वह जिस थाली में खाते हैं, उसी में छेद करते हैं। बीजेपी ने उन्हें काफी इज्जत दी, फिर भी उन्होंने पार्टी को धोखा दिया। सिद्धू अब पंजाब में कांग्रेस नेतृत्व के साथ भी ऐसा ही कर रहे हैं। यह भाजपा ही थी जिसने सिद्धू को 'नेता' (राजनीतिक नेता) बनाया और वह 3 बार लोकसभा सदस्य बने। बाद में उन्हें राज्यसभा का सदस्य बनाया गया और उनकी पत्नी को पंजाब में मंत्री बनाया गया। लेकिन सिद्धू इससे संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने और ज्यादा पाने की आस में बीजेपी का साथ छोड़ दिया और कांग्रेस में चले गए।
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू को अपने मंत्रिमंडल में शामिल करके बड़ा दिल दिखाया था। सिद्धू को कैप्टन ने उनकी पसंद का मंत्रालय भी दिया था। लेकिन सिद्धू की नजर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर थी। उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा पार्टी में अहमियत दी जा रही थी। अपने पीछे पार्टी आलाकमान को पाकर सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर बयानबाजी की।
मुख्यमंत्री ने कई बार सिद्धू की शिकायत राहुल गांधी से की, लेकिन राहुल हर बार सिद्धू के लिए ढाल बनकर खड़े हो जाते थे। सिद्धू ने अमेठी में राहुल गांधी के लिए प्रचार भी किया, लेकिन फिर भी कांग्रेस अध्यक्ष को हार का मुंह देखना पड़ा। दूसरी ओर पंजाब एकमात्र उत्तर भारतीय राज्य था जहां कांग्रेस अपनी सीटों को बचाने में कामयाब रही, और इसका श्रेय कैप्टन अमरिंदर सिंह को जाता है।
इस बार हालात कैप्टन अमरिंदर के पक्ष में थे और वह सिद्धू को बर्खास्त भी कर सकते थे, लेकिन उन्होंने बड़ा दिल दिखाते हुए ऐसा नहीं किया, और इसकी बजाय उनका पोर्टफोलियो बदल दिया। सिद्धू को इसके लिए कैप्टन का शुक्रगुजार होना चाहिए, लेकिन अपने मददगारों को शुक्रिया अदा करना उनके स्वभाव में ही नहीं है। चाहे क्रिकेट हो या राजनीति, सिद्धू ने कभी अपने कैप्टन की बात नहीं सुनी। वह टीम की परवाह किए बगैर अपने तरीके से खेलते रहे हैं। (रजत शर्मा)
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