बुधवार को जब देश ईद-उल-अजहा मना रहा था, तब कश्मीर घाटी की मशहूर हजरतबल मस्जिद में एक घिनौने काम को अंजाम दिया जा रहा था। नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुख्य संरक्षक डॉ. फारूक अब्दुल्ला को कुछ उपद्रवियों द्वारा नमाज पढ़ने से रोका गया। ये उपद्रवी खुद को अलगावादी और घाटी में इस्लामिक स्टेट के स्वघोषित नेता जाकिर मूसा के समर्थकों के तौर पर दिखा रहे थे।
उनका विरोध इस बात को लेकर था कि नई दिल्ली में आयोजित पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की श्रद्धांजलि सभा में डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने ‘भारत माता की जय’ और ‘जय हिंद’ के नारे क्यों लगाए । उपद्रवी भारत-विरोधी नारे लगा रहे थे और उन्होंने डॉ. अब्दुल्ला को नमाज अता करने से रोकने के लिए वहां मौजूद नमाजियों के साथ धक्का-मुक्की की।
इसी दिन घाटी में आतंकियों ने एक बीजेपी कार्यकर्ता समेत 4 लोगों की हत्या कर दी। बीजेपी कार्यकर्ता पुलवामा में अपने घर पर ईद मनाने के लिए आए थे। जाहिर है, घाटी के अलगाववादी और आतंकी निराशा में ऐसे कामों को अंजाम दे रहे हैं। वे गैर-इस्लामी कृत्य कर रहे हैं। उन्हें इंसानियत, कश्मीरियत और इस्लाम से कोई मतलब नहीं है।
आपको इस बात पर गौर करना चाहिए कि हजरतबल मे मौजूद उपद्रवियों की संख्या गिनी-चुनी थी। वहां मौजूद ज्यादातर नमाजी ईद की नमाज अता करना चाहते थे। घाटी के लोग ऐसे गैर-इस्लामिक कृत्यों को पूरी तरह खारिज करते हैं और यह एक सच्चाई है। इन आतंकियों का कोई दीन-ईमान नहीं है। वे अमानवीय हैं और उनके अंदर किसी भी मजहब के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं है।
ईद के दिन घाटी में जो लोग मारे गए वे कश्मीरी और मुसलमान थे। ये आतंकी सीमा पार पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं के हुक्म पर इन घटनाओं को अंजाम देते हैं। वे मासूम कश्मीरियों का खून बहा रहे हैं। इन आतंकियों को खत्म करने का वक्त आ गया है। हमें ‘गोली का जवाब गोली’ की नीति पर अमल करने की जरूरत है। आतंकियों को यह संदेश जाना चाहिए कि उनके गुनाहों की सजा मौत के अलावा और कुछ नहीं है। (रजत शर्मा)