राजपथ पर हुए 69वें गणतंत्र दिवस समारोह में भारत के सबसे पुराने राजनीतिक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष को बैठने के लिए छठी पंक्ति में जगह देना, मुझे अच्छा नहीं लगा। तीन बार यह दृश्य टीवी पर आया जो कि सुखद अहसास नहीं दे रहा था। भारत की सबसे पुरानी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को क्यों अगली पंक्ति में जगह नहीं दी जानी चाहिए? इसके बारे में एक तर्क दिया जा रहा है जिसमें कुछ भी नया नहीं है। इससे पूर्व बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी को 11 वीं पंक्ति में नौकशाहों के बीच जगह दी गई थी। और सरकार उसी परंपरा को ढो रही है। लेकिन अगर यह सच है तो फिर बीजेपी सरकार पिछले तीन साल से सोनिया गांधी को क्यों पहली पंक्ति में जगह देती रही? राहुल गांधी के लिए क्यों यह बदलाव हुआ? दूसरा तर्क यह दिया जा रहा है कि राहुल गांधी कभी केंद्र में मंत्री नहीं रहे इसलिए उन्हें पीछे की सीट दी गई। अब सवाल यह उठता है कि सोनिया गांधी भी कभी मंत्री नहीं रहीं, फिर पिछले तीन साल तक वो गणतंत्र दिवस समारोह में पहली पंक्ति में कैसे बैठीं। इसलिए ये सारे तर्क बेमानी हैं।
हमें यह समझना होगा कि राहुल गांधी अब भारत के सबसे पुराने राजनीतिक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुख्य विपक्षी दल के प्रमुख हैं। लोकतन्त्र में विपक्ष की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। विपक्ष का सम्मान होना चाहिए। सरकार में जिस स्तर पर जो भी बैठने की व्यवस्था का फैसला करते हैं उन्हें इसका ख्याल रखना चाहिए था। क्योंकि जो लोग भी गणतंत्र दिवस परेड अपने टीवी सेट पर लाइव देख रहे होंगे, उन लोगों ने राहुल गांधी के साथ हुए इस सलूक को पसंद नहीं किया होगा। लेकिन राहुल गांधी की इस बात के लिए तारीफ करनी चाहिए कि एक दिन पहले यह पता लगने के बाद भी कि परेड के दौरान उन्हें चौथी पंक्ति में जगह दी गई है वे समारोह में गए। उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। चौथी की बजाए जब उन्हें छठी पंक्ति में जगह दी गई तब भी उन्होंने इसे मुद्दा नहीं बनाया। इसके बाद भी उन्होंने गणतन्त्र दिवस समारोह में हिस्सा लिया। राज्यसभा में नेता विपक्ष गुलाम नबी आज़ाद की भी तारीफ करनी चाहिए कि वो अपनी जगह छोड़कर राहुल गांधी के साथ बैठे और इसे मुद्दा नहीं बनाया। मेरा मानना है कि बीजेपी अध्यक्षों के साथ पूर्व में किए गए कांग्रेस सरकारों के व्यवहार की बात भूलकर अगर राहुल गांधी को उचित सम्मान दिया जाता तो जनता इसकी तारीफ करती। (रजत शर्मा)