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Rajat Sharma's Blog: अगर सचिन वाज़े एक्टर है, तो उसका डायरेक्टर कौन है ?

ये मामला सिर्फ मुंबई पुलिस की छवि पर दाग का नहीं है बल्कि ये महाराष्ट्र सरकार चलाने वाले लोगों पर सवाल उठाता है। सचिन वाज़े के राजनीतिक आका कौन हैं, जिनके संरक्षण में वह इन नापाक गतिविधियों को अंजाम दे रहा था?

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: March 18, 2021 13:56 IST
India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

यह बेहद दुखद और चौंकाने वाला मामला है कि कैसे सचिन वाज़े जैसे एक सहायक पुलिस इंस्पेक्टर की करतूतों ने मुंबई पुलिस के माथे पर कलंक लगा दिया। लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या सचिन वाज़े एक बड़े गेम में सिर्फ एक मोहरा है?  महाराष्ट्र में पावरफुल राजनीतिक ताकतों द्वारा उसे मोहरे के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा था? क्या सचिन वाज़े को शिवसेना के बड़े नेताओं ने संरक्षण दिया? 

 
बुधवार को बीजेपी नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बहुत बड़ा आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वर्ष 2018 में जब वे सत्ता में थे तो शिवसेना प्रमुख् उद्धव ठाकरे ने उन्हें फोन कर सचिन वाज़े के निलंबन को खत्म करने और फिर से बहाल करने का अनुरोध किया था। सचिन वाज़े को जबरन वसूली और हिरासत में मौत के आरोप में निलंबित किया गया था। 
 
फडणवीस ने कहा,' मुझे अभी-भी याद है कि उद्धव जी ने वर्ष 2018 में मुझे फोन किया था। उन्होंने यह पूछा था कि क्या वाज़े को फिर से बहाल करना संभव है? मैंने उन्हें कहा था कि यह संभव नहीं है।' फडणवीस ने कहा-परमबीर सिंह (जिन्हें मुंबई पुलिस कमिश्नर से हटाया गया), सचिन वाजे छोटे लोग हैं। ये एक बड़े गेम के मोहरे हैं और जब वे मुख्यमंत्री थे तो उनपर विवादों से घिरे इस सहायक पुलिस इंस्पेक्टर को बहाल करने का दबाव डाला गया था।' 
 
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा-'सबसे अहम सवाल तो ये है कि सहायक पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वाज़े को क्यों बहाल किया गया? 2004 में उन्हें सस्पेंड किया गया था। वर्ष 2007 में उन्होंने वीआरएस (स्वैच्छिक सेवनिवृति) के लिए आवेदन दिया। चूंकि उनके खिलाफ जांच चल रही थी इसलिए उनका वीआरएस आवेदन स्वीकृत नहीं हुआ। 2018 में जब मैं मुख्यमंत्री था तो शिवसेना ने वाज़े को बहाल करने के लिए मेरे ऊपर दबाव बनाया। उस वक्त मैंने वाज़े के पुराने रिकॉर्ड देखे, फिर एडवोकेट जनरल (महाधिवक्ता) की राय ली तो उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट की निगरानी में जांच चल रही है। इसके बाद मैंने उसे नहीं बहाल करने का फैसला लिया।'
 
फडणवीस ने आरोप लगाया कि सचिन वाज़े के शिवसेना नेताओं के साथ 'व्यापारिक संबंध' थे। उन्होंने कहा, 'वाज़े की बहाली (उद्धव ठाकरे के शासन के दौरान) के पीछे के मकसद की भी जांच होनी चाहिए।  क्या उन्हें लोगों से जबरन वसूली के लिए वापस लाया गया था?  क्योंकि उन्हें मुंबई पुलिस में सबसे अहम भूमिका दी गई थी। पुलिस कमिश्नर के बाद वही नजर आते थे। इसलिए इनके राजनीतिक आकाओं का पता लगाने की जरूरत है, जो अभी-भी अहम मंत्रालयों बने हुए हैं और जिनके इशारों पर वाजे़ अपना खेल कर रहा था।'
 
ये इल्जाम बेहद गंभीर हैं। ये मामला सिर्फ मुंबई पुलिस की छवि पर दाग का नहीं है बल्कि ये मामला महाराष्ट्र सरकार चलाने वाले लोगों पर सवाल उठाता है। साफ तौर पर कहें तो मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया के बाहर जिलेटिन से भरी स्कॉर्पियो और मनसुख हिरेन की हत्या से उठी चिंगारी अब मुंबई के पुलिस कमिश्नर से होती हुई मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे तक पहुंच गई है। यही वजह है कि फडणवीस ने मांग की है कि एनआईए को इस बात की पूरी जांच करनी चाहिए कि वाज़े के राजनीतिक आका कौन हैं, जिनके संरक्षण में वह इन नापाक गतिविधियों को अंजाम दे रहा था। 
 
फडणवीस ने कहा, 'मैं बार-बार कह रहा हूं कि ये परमबीर सिंह, सचिन वाज़े छोटे लोग हैं। इनके नाम से गुत्थी नहीं सुलझेगी। इस बात की जांच होनी चाहिए कि सचिन वाज़े को ऑपरेट करने वाले कौन से लोग सरकार में बैठे हैं? इनके राजनीतिक आका कौन हैं?  परमबीर और वाज़े को ऑपरेट करने वाले लोगों की जांच कौन करेगा? सचिन वाज़े को ऑपरेट करने वाले पॉलिटिकल बॉस (राजनीतिक आका) को ढूंढना पड़ेगा। मुख्यमंत्री जिस तरह से सचिन वाज़े का बचाव कर रहे थे उससे तो ऐसा लगता है कि अगर सबूत नहीं आते तो वाज़े को अबतक महात्मा ठहरा दिया जाता। इस मामले की तह तक जाना होगा और यह पता लगाना होगा कि वाज़े किसके हितों की रक्षा कर रहे थे? जिनके हितों की रक्षा कर रहे थे उनसे वाज़े के कैसे ताल्लुक हैं? इस पूरे लिंक का पता चलना चाहिए।'
 
देवेन्द्र फडणवीस ने जो इल्जाम लगाए वो बहुत गंभीर हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि देवेन्द्र फडणवीस के पास इल्जामात के पीछे ठोस तथ्य हैं और उनके तर्कों में दम भी है। हर किसी के मन में ये सवाल ये है कि आखिर एक छोटा पुलिस अफसर, सहायक पुलिस इंस्पेक्टर के स्तर का अधिकारी देश के शीर्ष उद्योगपति मुकेश अंबानी को डराने-धमकाने के बारे में सोच भी कैसे सकता है? उसने साजिश रची, पूरे प्लान को अंजाम दिया और फिर सबूत मिटाए । और फिर सरकार ने क्या किया?  पूरी जांच उसी के हवाले कर दी। 
 
मैंने दो दिन पहले भी यही बात कही थी कि जो तार जुड़ रहे हैं उससे ऐसा लग रहा है कि सचिन वाज़े को पूरा यकीन था कि कोई भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। वह सोचता था-'सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का'। देवेन्द्र फडणवीस ने भी बुधवार को यही कहा कि सचिन वाज़े को एक सहायक पुलिस इंस्पेक्टर समझना बड़ी गलती है। उसका रुतबा मुंबई पुलिस में कमिश्नर के बाद सबसे ज्यादा था। वह मुख्यमंत्री की ब्रीफिंग में दिखता था, वह राज्य के गृह मंत्री के साथ मौजूद रहता था। 
 
देवेन्द्र फडणवीस ने दूसरा गंभीर इल्जाम ये लगाया कि सचिन वाज़े को सरकार ने वसूली अधिकारी के तौर पर नियुक्त किया था। वह अपने राजनीतिक आकाओं के लिए जबरन वसूली करता था। फडणवीस ने आरोप लगाते हुए कहा-'मुंबई के जितने सारे हाई प्रोफाइल केस थे वे सब क्राइम इन्वेस्टिगेशन यूनिट (सीआईयू) के.पास जाते थे जिसका हेड वाज़े था। बादशाह रैपर केस, ऋतिक रोशन फर्जी ईमेल जैसे सारे केस सीआईयू को सौंपे गए। हालांकि इुन मामलों को सीआईयू को सौंपने का कोई कारण नहीं था, इन मामलों को रीजन में जाना था। वाज़े शिवसेना के मंत्री के साथ भी दिखते थे। उन्हें मुंबई में डांस बार चलाने की इजाजत देने के लिए अधिकार दिए गए थे। हमें लगता है कि सीआईयू के प्रमुख के तौर पर नहीं बल्कि वसूली अधिकारी के तौर पर उनको बैठाया गया।'
 
ये बात तो मुंबई पुलिस में हर कोई मानता है कि सचिन वाज़े की पहुंच ऊपर तक थी। वो सरकार का सबसे पसंदीदा और दुलारा अधिकारी था। उसकी धमक हर थाने में थी। लेकिन फडणवीस के सवाल आसानी से उद्धव ठाकरे का पीछा नहीं छोड़नेवाले हैं। फिलहाल सबके मन में एक बड़ा सवाल ये है कि सचिन वाज़े भले ही मोहरा हो लेकिन उसके जरिए जिस साजिश को अंजाम दिलवाया गया, उसके पीछे मसकद क्या था? मुकेश अंबानी के घऱ के बाहर बारूद से भरी गाड़ी पार्क करके सचिन वाज़े के राजनीतिक आका क्या चाहते थे?
 
यही सवाल जब देवेन्द्र फडणवीस से पूछा गया तो उन्होंने कहा-'मकसद तो राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की जांच में सामने आएगा। लेकिन ऐसा लगता है कि इन्होंने इस कारनामे से एक बड़ा मैसेज देने की कोशिश थी। और हो सकता है 'फिरौती', 'वसूली', 'एक्सटॉर्शन' जैसे शब्द मुंबई में फिर सुनने को मिलें।' अब सवाल ये है कि अगर सचिन वाज़े मुंबई पुलिस पर इस कलंकगाथा का सिर्फ एक एक्टर है तो फिर इसका डायरेक्टर कौन है? इस डायरेक्टर तक पहुंचे बिना ये नहीं पता चलेगा कि मुकेश अंबानी को डराने का और सचिन वाज़े को इतनी ताकत देने का मकसद क्या था? (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 17 मार्च, 2021 का पूरा एपिसोड

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