मैं अपने घर जाने के इच्छुक प्रवासी कामगारों की मदद के लिए रेलवे द्वारा लिए गए दो बड़े फैसलों का स्वागत करता हूं। आज 200 ट्रेनों के जरिए 3,50,000 प्रवासी मजदूर विभिन्न जिलों में ले जाए जा रहे हैं। कल से प्रवासियों के लिए 400 ऐसी विशेष ट्रेनें चलेंगी। अब तक ट्रेन चलाने के लिए राज्य सरकारों की डिमांड और क्लीयरेंस जरूरी होती थी। राज्य सरकार लिस्ट बनाती थी और मजदूरों का मेडिकल चेकअप करती थी, फिर वह लिस्ट दूसरे स्टेट को देती थी, फिर वे इसे क्लियर करते थे। इसके बाद ये लिस्ट रेलवे मिनिस्ट्री के पास आती थी। इस प्रक्रिया में काफी समय लग रहा था। लेकिन अब इन ट्रेनों को भेजने के लिए राज्य सरकारों से सहमति लेने की आवश्यकता नहीं होगी।
हजारों प्रवासियों को अपने गृह राज्यों तक पहुंचने के लिए पैदल या ट्रकों पर जाने से रोकने के लिए यह निर्णय लिया गया है। अब फैसला ये हुआ है कि रेल मंत्रालय अपने आप ट्रेन चलाएगा, मजदूरों को उनके घर भेजेगा। अब राज्यों की डिमांड और क्लियरेंस की जरूरत नहीं होगी। इसके बारे में सिर्फ होम मिनिस्ट्री को इनफॉर्म करना होगा। सोमवार को जब मैंने रेल मंत्री पीयूष गोयल से बात की तो उन्होंने इस सुझाव के बारे में बात की थी। इसी तरह का सुझाव दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का था, जो चाहते थे कि जो प्रवासी दिल्ली से जाना चाहते हैं उन्हें अलग-अलग स्टेडियमों में राज्य-वार रखा जाए और फिर एक ही दिन में विशेष ट्रेनों द्वारा भेज दिया जाए।
इसमें कोई शक नहीं है कि भारतीय रेलवे ने प्रवासियों को उनके राज्यों में भेजने के लिए विशेष ट्रेनें प्रदान करने में काफी तेजी दिखाई है। अब तक, 1,800 से ज्यादा विशेष ट्रेनें चलाई जा चुकी हैं। यूपी का उदाहरण लें। राज्य सरकार ने 1000 से भी ज्यादा ट्रेनों की मांग की थी और रेलवे ने तुरंत उनकी मांग को पूरा किया। अब तक 20 लाख से अधिक प्रवासियों को उनके मूल राज्यों में भेजा गया है, जिसमें 1,200 करोड़ रुपये की लागत आई है। इसे केंद्र और राज्यों द्वारा 85:15 के आधार पर साझा किया जाना है।
आज (बुधवार) से बिहार के लिए 66 और यूपी के लिए लगभग 100 ट्रेनें चलेंगी। गुजरात और बिहार की सरकारों ने प्रतिदिन 100 ट्रेनें मांगी थीं, और रेलवे आज से 200 एवं कल से 400 विशेष ट्रेनें चलाएगा। एकमात्र समस्या अब यह है कि इस महत्वपूर्ण जानकारी को प्रवासी मजदूरों तक कैसे पहुंचाया जाए जो अपने घर जाने के लिए परेशान हैं। मुझे लगता है कि एक बार जब 200 गैर-एसी ट्रेनें ऑनलाइन बुकिंग के माध्यम से 1 जून से चलना शुरू हो जाएंगी तो प्रवासियों का मुद्दा काफी हद तक हल हो जाएगा।
हर जिम्मेदार भारतीय नागरिक चिलचिलाती धूप में अपने परिजनों के साथ पैदल यात्रा करने वाले मजदूरों के लिए चिंतित है। चाहे मुख्यमंत्री हों, या जिला कलेक्टर, या पुलिस प्रमुख या शीर्ष नौकरशाह, उनमें से अधिकांश लगभग हर दिन इन दृश्यों को देखकर असहज महसूस करते हैं। एक अच्छी संचार व्यवस्था (प्रॉपर कम्यूनिकेशन) समय की मांग है। कई अफवाह फैलाने वाले लोग अपने राजनीतिक एजेंडे के मुताबिक सोशल मीडिया पर जमकर अफवाह फैला रहे हैं और बेईमान ट्रक ड्राइवर गरीबों के पलायन का इंतजार कर रहे हैं। यदि प्रवासी श्रमिकों को विशेष ट्रेनों के प्रस्थान के बारे में सही जानकारी मिलती है तो मुझे लगता है कि इस मुद्दे को जल्द ही हल किया जा सकता है।
राज्य सरकारों को प्रवासी मजदूरों का विश्वास हासिल करने की जरूरत है। यूपी सरकार ने राज्य की सीमा से प्रत्येक जिले के लिए विशेष बसें चलाने की व्यवस्था की है। कई राज्यों से 235 स्पेशल ट्रेनें यूपी के लिए चलेंगी। बिहार के प्रवासी आज से चलने वाली 66 विशेष ट्रेनों में अररिया, सहरसा, मोतिहारी, भागलपुर, गया, छपरा, रक्सौल, दरभंगा, बरौनी, कटिहार और पूर्णिया पहुंच सकते हैं।
अगर प्रवासी थोड़ा संयम बरतते हैं, तो वे खुद को लुटने से बचा सकते हैं। हाल ही में एक प्रवासी कामगार की दिल दहला देने वाली कहानी सामने आई थी जिसमें एक ट्रक ड्राइवर उसे छोड़ने के लिए जा रहा था। रास्ते में मजदूर को अपनी तबीयत ठीक नहीं लगी, लेकिन ड्राइवर ने ट्रक नहीं रोका। मजदूर की मौत हो गई, और शिवपुरी (एमपी) के पास ट्रक ड्राइवर ने प्रवासी मजदूर के शव को सड़क के किनारे उसके बच्चों के साथ छोड़ दिया और वहां से चला गया। बाद में पुलिस ने बच्चों को बचाया।
मुंबई और ठाणे में ट्रक ड्राइवर प्रवासियों से मनमाना किराया वसूल कर अपनी जेबें भर रहे हैं। इन प्रवासियों को बुरी तरह ट्रक में ठूंस दिया जाता है। इसके बाद ट्रक ड्राइवर इन प्रवासियों को बॉर्डर पर उतारकर उन्हें उनके हाल पर छोड़ देते हैं।गाजियाबाद में कुछ ट्रक ड्राइवरों ने मंगलवार को बेबस मजदूरों से पैसे वसूले और उन्हें बिहार में स्थित उनके गृह जनपदों तक ले जाने का वादा किया। गाजियाबाद के पास विजय नगर में ट्रकों को रोक दिया गया, और पुलिस ने ड्राइवरों को प्रवासियों को ले जाने की इजाजत नहीं दी। मजदूरों को ट्रकों से उतरना पड़ा। अब इन्हें रजिस्ट्रेशन के बाद बसों से भेजा जाएगा।
सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने वालो लोग आधारहीन खबरें फैलाने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। मंगलवार को मुंबई के बांद्रा टर्मिनस पर हजारों प्रवासी स्पेशल ट्रेनों के जरिए अपने घरों को जाने के लिए इकट्ठा हो गए। उनमें से कई ने इंडिया टीवी से कहा कि उन्हें कुछ लोगों के फोन आए थे जो खुद को पुलिस थाने का आदमी बता रहे थे। उन्होंने मजदूरों से जल्द बांद्रा स्टेशन पहुंचने के लिए कहा। भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को हल्के लाठीचार्ज का सहारा लेना पड़ा।
दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर भी एक ऐसी ही अफवाह उड़ी थी। महिलाओं और बच्चों सहित हजारों प्रवासी स्पेशल बसों, जिनके बारे में सोशल मीडिया पर बताया गया था, में सवार होने के लिए गाजीपुर सीमा पर पहुंच गए। वहां कांग्रेस सेवादल के स्वयंसेवक भी मौजूद थे क्योंकि उन्हें जानकारी थी कि पार्टी द्वारा तैनात की गईं लगभग 1,000 स्पेशल बसें प्रवासियों को ले जाएंगी। पुलिस ने प्रवासियों को समझाते हुए कहा कि कोई भी विशेष बस बिना रजिस्ट्रेशन के नहीं चलेगी।
जब यूपी के अधिकारियों ने कांग्रेस द्वारा उपलब्ध कराई गई 1,049 बसों की सूची की जांच की तो उसमें केवल 879 बसें थीं। बाकी वाहनों में 31 ऑटो और तिपहिया वाहन, 69 एम्बुलेंस, कैंटर, टाटा मैजिक वाहन, कार और यहां तक कि स्कूल बसें थीं। इस लिस्ट को देखकर भ्रम की स्थिति पैदा हो गई। बसों की जगह 170 दूसरी गाड़ियां थीं। राज्य कांग्रेस के नेता मथुरा सीमा पर बसों के साथ आए और प्रवासियों को ले जाने पर जोर देने लगे। इसके बाद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष को गिरफ्तार करना पड़ा।
इस विवाद को आसानी से टाला जा सकता था। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा बसें देकर प्रवासियों की मदद करना चाहती थीं, और एक नागरिक के रूप में ऐसा करने का उनको पूरा अधिकार था। लेकिन उनकी ही पार्टी के नेता यूपी सरकार और मुख्यमंत्री को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे थे। ये नेता खुले तौर पर आरोप लगा रहे थे कि मुख्यमंत्री को प्रवासियों की तकलीफ से कोई लेना-देना नहीं है। स्वाभाविक रूप से यूपी में भाजपा नेता इन आरोपों पर पलटवार करने के लिए आगे आ गए।
बसों की सूची में दोपहिया और तिपहिया वाहनों के होने की बात पर कोई भी समझ सकता है कि प्रियंका ने खुद यह लिस्ट तैयार नहीं की होगी। मेरा मानना है कि दोनों दलों को ऐसे मामले में राजनीति नहीं करनी चाहिए जो विशुद्ध रूप से मानवीय हों। यहां तक कि अगर बसों के नाम पर कुछ दूसरे वाहनों का लिस्ट में नाम है, या जिन बसों की पेशकश की जा रही है उनके पास उचित प्रमाण पत्र नहीं हैं, तो भी राज्य सरकार को प्रवासियों को भेजने के लिए बाकी की 700-800 बसों का इस्तेमाल करना चाहिए। कांग्रेस को भी यह कहने से भी बचना चाहिए कि योगी आदित्यनाथ ने प्रवासी कामगारों के लिए कुछ नहीं किया है।
मेरे पास मेरे पास कुछ आंकड़े हैं: 16,00,000 मजदूरों को यूपी में ले जाने के लिए 1000 ट्रेनों का इस्तेमाल किया गया था, जिनमें से सबसे ज्यादा 111 ट्रेनें 1,33,552 मजदूरों के लेकर गोरखपुर पहुंची थीं। इनमें से लगभग 300 ट्रेनें गुजरात से, 160 ट्रेनें महाराष्ट्र से और 123 ट्रेनें पंजाब से चलाई गईं। अभी 235 ट्रेनें रास्ते में हैं जिनपर उत्तर प्रदेश के 2,96,626 प्रवासी सवार हैं। ट्रेनों के अलावा योगी आदित्यनाथ ने 12,000 से अधिक बसें चलाई हैं। योगी को इस बात का श्रेय जाता है कि इन बसों का इस्तेमाल करके वह 6 लाख प्रवासी मजदूरों और उनके परिजनों को वापस यूपी लेकर आए। कांग्रेस को चाहिए कि जहां जरूरी हो वहां श्रेय भी दें और मानवीय मुद्दे का अनावश्यक रूप से राजनीतिकरण करने से बचें। (रजत शर्मा)
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