1984 सिख विरोधी दंगे को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की लंदन में की गई टिप्पणी ने देश में एक बड़ी बहस को फिर से सुलगा दिया है। राहुल गांधी ने लंदन में कहा कि 1984 सिख विरोधी दंगे में उनकी पार्टी की 'भूमिका नहीं थी’। यह दावा किया जाता है कि इस दंगे में 3 हजार से ज्यादा सिखों की जान चली गई थी। बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल, दोनों ने कांग्रेस अध्यक्ष की इस बात के लिए आलोचना की। इनका कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष 1984 के सिख नरसंहार के पाप से पार्टी को दोषमुक्त साबित करने की कोशिश कर रहे हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि उस समय राहुल गांधी की उम्र मात्र 14 साल थी और उस नरसंहार में कांग्रेस के कुछ ही कार्यकर्ता शामिल थे।
सवाल 1984 के दंगों में राहुल गांधी के शामिल होने का नहीं बल्कि सिखों के नरसंहार में उनकी पार्टी की भूमिका का है।
यह ऐतिहासिक तथ्य है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके दो सिख अंगरक्षकों ने की थी और इसकी वजह से दिल्ली और अन्य शहरों में बड़े पैमाने पर दंगे भड़के। बतौर रिपोर्टर मैं उन दंगों का चश्मदीद गवाह हूं कि कैसे दंगाईयों ने सिखों की हत्या की। इसमें कोई शक नहीं कि कांग्रेस के कई जानेमाने नेता इस नरसंहार में शामिल थे। दंगे के बाद उस समय के नए प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था 'जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो आसपास की धरती हिलती है।'
कांग्रेस पार्टी ने हरकिशन लाल भगत, जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार और धर्मदास शास्त्री जैसे दिल्ली के कई बड़े नेताओं को इस नरसंहार में उनकी संलिप्तता की वजह से साइडलाइन कर दिया। यह 1984 के दंगे का ही अपराधबोध था जिसकी वजह से डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बनने के बाद स्वर्ण मंदिर गए और वहां सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी। खुद राहुल गांधी ने चार साल पहले एक इंटरव्यू में यह स्वीकार किया था कि कांग्रेस के कई लोग सिख विरोधी दंगों में शामिल थे। इन सबके बाद भी राहुल गांधी ये कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी की 1984 के दंगों में 'भूमिका नहीं थी’ तो आश्चर्य होता है। (रजत शर्मा)