रविवार शाम न्यूज चैनलों पर एग्जिट पोल के अनुमानों में एक बार फिर से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के बहुमत हासिल करने की खबरें आने के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर लोगों की सक्रियता बढ़ गई और सोमवार को ऐसे कई वीडियो पोस्ट किये गए जिसमें कुछ मतदान केंद्रों पर ईवीएम रिप्लेस करने या उनमें हेरफेर के आरोप हैं।
मंगलवार को करीब 22 विपक्षी दलों ने आपात बैठक की और चुनाव आयोग तक मार्च किया। इन दलों ने चुनाव आयोग से मांग की कि अगर वीवीपीएटी पर्ची का ईवीएम रिजल्ट से मिलान करते वक्त किसी तरह का अंतर या विसंगति पाई जाती है तो सभी वीवीपीएटी पर्चियों का मिलान ईवीएम रिजल्ट के साथ किया जाए। ठीक इसी तरह चेन्नई स्थित एक एनजीओ की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल कर मांग की गई कि मतगणना के दौरान शत-प्रतिशत वीवीपीएटी पर्चियों का मिलान किया जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की अवकाश पीठ ने देश के मुख्य न्यायाधीश द्वारा इससे पहले के आदेश का हवाला देते हुए याचिका को खारिज कर दिया।
अब उन वीडियो क्लिप्स की बात करते हैं जो तेजी से सर्कुलेट हो रहे हैं। चुनाव आयोग ने इन सभी की जांच की और एक विस्तृत बयान जारी कर कहा कि इनमें से लगभग सभी वीडियो पुराने हैं और उम्मीदवारों की संतुष्टि के लिए सभी मुद्दों को पहले ही सुलझा लिया गया था।
चुनाव नतीजों से पहले बिना किसी सबूत और बिना किसी ठोस आधार के चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाना लोकतन्त्र का अपमान है।
अगर 22 विपक्षी दलों के पास ठोस सबूत हैं, तो उन्हें पूरे ब्यौरे के साथ आगे आना चाहिए। लेकिन इन वीडियोज की सच्चाई जाने बिना, इनकी जांच किए बिना, सिर्फ सोशल मीडिया पर सर्कुलेट हो रहे वीडियो के आधार पर ईवीएम में हेरफेर का इल्जाम लगाना स्वीकार्य नहीं हैं। इस तरह के इल्जाम लगाकर लोगों के मन में चुनाव प्रक्रिया के प्रति अविश्वास पैदा करने की कोशिश का कोई समर्थन नहीं करेगा।
अगर कोई व्यक्ति सिर्फ उस वीडियो को देखे जो सोशल मीडिया पर सर्कुलेट हो रहा है तो वो यही समझेगा कि ईवीएम के जरिए काउंटिग में गड़बड़ी की साजिश है। लेकिन यह चिंता तब बढ़ जाती है जब राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेता इन वीडियो क्लिप्स की जांच किये बिना इन्हें सच मान लेते हैं।
सोमवार को उत्तर प्रदेश के चार वीडियो सर्कुलेट हुए जिनमें राजनीतिक दलों के एजेंट और पोलिंग अधिकारियों के बीच बहस का दृश्य दिखाई दे रहा है। इनमें से एक वीडियो समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के समर्थक द्वारा पोस्ट किया गया है, जबकि बिहार में पाटलिपुत्रा और छपरा का वीडियो आरजेडी नेता तेजस्वी यादव द्वारा रीट्वीट किया गया। इसके बाद ये वीडियो तेजी से सर्कुलेट हुआ।
ये सभी वीडियो दो या तीन सप्ताह पुराने हैं और चुनाव आयोग के मुताबिक सभी मामलों को तुरंत निपटाया गया था। मेरी आपसे अपील है कि सोशल मीडिया पर चलने वाले इस तरह के वीडियोज पर एकाएक भरोसा न करें। ऐसी खबरों की सच्चाई की जांच-परख करें और जब तक यकीन न हो, तब तक इस तरह के वीडियो मैसेज को फॉरवर्ड न करें।
जहां तक ईवीएम में हेरफेर का सवाल है तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि 2004 और 2009 के चुनाव भी ईवीएम से ही हुए थे और केंद्र में कांग्रेस और उनके सहयोगियों की सरकार बनी थी। ठीक इसी तरह पिछले साल ईवीएम से ही मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव हुए और इन प्रदेशों में कांग्रेस की सरकारें बनी। तब तो कांग्रेस ने ईवीएम पर सवाल नहीं उठाया था। इसीलिए ये कहा जाता है कि जिसे चुनाव में हार का डर होता है, वही ईवीएम पर सवाल उठाने लगता है।
वैसे विरोधी दलों ने ईवीएम को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और शीर्ष अदालत ने उनकी याचिका पर हर विधानसभा क्षेत्र से पांच ईवीएम के रिजल्ट का मिलान वीवीपीएटी से करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले और चुनाव आयोग द्वारा दिए गए आश्वासनों के बावजूद अगर कोई ईवीएम पर सवाल उठाता है तो यही माना जाएगा कि शक ईवीएम पर नहीं, बल्कि खुद की जीत पर है। (रजत शर्मा)
देखें, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 21 मई 2019 का पूरा एपिसोड