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Rajat Sharma's Blog: मोदी के सामने न कोई चुनौती है और न ही कोई दावेदार?

ब्रेकफास्ट मीटिंग में राहुल ने दावा किया कि लगभग 60 प्रतिशत भारतीय वोटर विपक्षी दलों के साथ हैं और इन दलों के नेताओं को लोगों की आवाज उठानी चाहिए।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated : August 04, 2021 19:29 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

2024 के लोकसभा चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और अन्य दो राज्यों में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए दिल्ली के सियासी हलकों में रिश्ते और समीकरण बनाने की कोशिशें जारी है।

मंगलवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 17 विपक्षी दलों के नेताओं को ब्रेकफास्ट मीटिंग में बुलाया था, लेकिन बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी के नेताओं ने इसमें शामिल नहीं होने का फैसला किया। राहुल की इस ब्रेकफास्ट मीटिंग में सिर्फ 15 पार्टियों के नेता शामिल हुए। बैठक के बाद राहुल अन्य सांसदों के साथ साइकिल पर सवार होकर संसद पहुंचे। ऐसा मीडिया की अटेंशन पाने के लिए किया गया ताकि तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरा जा सके।

राहुल गांधी को जब भी लगता है उन्हें मोदी के खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा मिल गया है, तो वह विपक्षी पार्टियों के नेताओं को चर्चा के लिए आमंत्रित करते हैं, हालांकि ऐसी बैठकों से कुछ भी ठोस नहीं निकल पाता। आजकल राहुल को लगता है कि वह पैगसस स्पाइवेयर के मुद्दे पर मोदी को घेर सकते हैं। इसी सवाल पर पिछले 2 हफ्ते से लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही ठप पड़ी हुई है क्योंकि विपक्षी दल कामकाज में लगातार बाधा पैदा कर रहे हैं। ब्रेकफास्ट मीटिंग में राहुल गांधी ने सभी नेताओं से कहा कि यदि सारी पार्टियां हाथ मिला लेंगी तो सरकार असहमति की आवाज को दबा नहीं पाएगी।

ब्रेकफास्ट मीटिंग में एनसीपी के प्रतिनिधि शामिल तो हुए, लेकिन दोपहर में उनकी पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार ने गृह मंत्री अमित शाह के साथ बंद कमरे में बैठक की। इस बीच राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने दिल्ली में शरद यादव से मुलाकात की। बाद में उन्होंने मीडिया से कहा कि बिहार में विपक्षी एकता को मजबूत करने के लिए दिवंगत रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान को उनके बेटे तेजस्वी यादव से हाथ मिला लेना चाहिए। तेजी से हो रहे इन घटनाक्रमों से एक सवाल उभरकर सामने आता है: क्या विपक्ष मोदी के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बना सकता है?

ब्रेकफास्ट मीटिंग में राहुल गांधी ने दावा किया कि लगभग 60 प्रतिशत भारतीय मतदाता विपक्षी दलों के साथ हैं और इन दलों के नेताओं को लोगों की आवाज उठानी चाहिए। राहुल ने कहा कि अगर हम एकजुट रहें तो सरकार हमारी आवाज को दबा नहीं सकती। ब्रेकफास्ट मीटिंग में विपक्षी दलों के करीब 100 सांसद शामिल हुए। बैठक में यह साफ था कि इनमें से अधिकांश क्षेत्रीय दल अपने खुद के एजेंडे पर चल रहे थे जबकि राहुल ने उन्हें 3 मुद्दों पर एकजुट होने की मांग की: किसानों का विरोध प्रदर्शन, पेगासस स्पाइवेयर विवाद और महंगाई। बैठक में भाग लेने वाली पार्टियों में तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी, शिवसेना, द्रमुक, सीपीएम, सीपीआई, आरजेडी, समाजवादी पार्टी, जेएमएम, नेशनल कॉन्फ्रेंस, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, आरएसपी, केरल कांग्रेस (एम), एलजेडी और आरएसपी शामिल थीं।

राहुल गांधी की आदत है कि एक बार जो डायलॉग उन्हें पसंद आ जाता है, उस वह बार-बार दोहराते रहते हैं। मंगलवार को उन्होंने बार-बार कहा कि विपक्षी दल 60 प्रतिशत भारतीय मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं और उन्हें एकजुट होना ही चाहिए। पिछले हफ्ते जब राहुल किसानों का मुद्दा उठाने के लिए अचानक ट्रैक्टर पर सवार होकर संसद के लिए निकल पड़े थे, तो खूब मीडिया अटेंशन मिला था। मंगलवार को एक ट्रक में भरकर साइकिलें लाई गईं और अन्य सांसदों के साथ राहुल गांधी साइकिल चलाकर संसद पहुंचे। बताने की जरूरत नहीं है कि यहां भी काफी मीडिया अटेंशन मिला।

संसद में अन्य विपक्षी दलों के साथ मिलकर कांग्रेस पैगसस विवाद की जांच के लिए दबाव डाल रही है। राहुल और उनके सलाहकारों को लगता है कि यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर वे विपक्षी पार्टियों को एकजुट कर सकते हैं, हालांकि अभी तक ऐसा कुछ नजर आ नहीं पाया है। राहुल को समझा दिया गया है कि अब जमाना बदल गया है और कांग्रेस अपने दम पर बीजेपी को लोकसभा चुनावों में नहीं हरा सकती। इसके लिए उन्हें अन्य पार्टियों से गठबंधन करना पड़ेगा और कांग्रेस को भी थोड़ा नीचे उतरना पड़ेगा।

राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस के दबदबे के दिन चले गए हैं। राहुल गांधी को यह कैलकुलेशन करके समझाया गया है कि यदि 38 पर्सेंट वोट लेकर बीजेपी 303 लोकसभा सीटें जीत सकती है और नरेंद्र मोदी 2-2 बार प्रधानमंत्री बन सकते हैं तो कांग्रेस भी वापसी कर सकती है। कांग्रेस को पिछले लोकसभा चुनावों में 20 फीसदी वोट मिले थे और अगर वह क्षेत्रीय दलों को साथ ले ले तो बात बन सकती है। लेकिन सच तो यह है कि सियासत यूं गणित के जोड़-घटाने से नहीं चलती।

हालांकि इस फॉर्मूले में कई सियासी दिक्कतें हैं जिन्हें ध्यान में रखना होगा। एक तो यह कि ममता बनर्जी जैसी सक्षम नेता, जो अपने दम पर 3-3 बार मुख्यमंत्री बनीं, कांग्रेस के पीछे-पीछे क्यों चलेंगी? राहुल गांधी को अपना नेता क्यों मानेंगी? दूसरी बात ये कि पिछले 7 सालों में नरेंद्र मोदी ने भारतीय राजनीति की दिशा और दशा दोनों बदल दी है। अब पुराने जमाने के फॉर्मूले नहीं चलते। आपको याद होगा कि पिछले लोकसभा चुनावों में अखिलेश यादव और मायावती ने ‘बबुआ’ और ‘बुआ’ बनकर हाथ मिलाया था, लेकिन यूपी में बीजेपी के बाजीगर के सामने दोनों पार्टियों का दम निकल गया था। ऐसे और भी कई उदाहरण हैं। नरेंद्र मोदी अपने कामों के जरिए यह साबित कर चुके हैं कि इस समय एक भी ऐसा नेता नहीं है जो राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें चुनौती दे सके। और एक बात साफ है कि जब तक वह वहां हैं: टॉप पर कोई वैकेंसी नहीं है।

मुझे याद है कि एक इंटरव्यू में नरेंद्र मोदी ने मुझसे कहा था, ‘कांग्रेस के नेता ये समझ ही नहीं पाते कि मैं किस तरफ जा रहा हूं। मैं एक तरफ जा रहा होता हूं और वे दूसरी तरफ गोलियां बरसाते हैं।’ और ये बात सही है कांग्रेस ने पिछले 7 साल मे जब-जब मोदी को घेरने की कोशिश की, जब-जब कोई मुद्दा बनाया, वह कामयाब नहीं हुई। इसलिए ब्रेकफास्ट मीटिंग से विपक्षी एकता के नाम पर खबरें बन सकती हैं, ट्रैक्टर पर और साइकिल पर बैठकर सड़क पर आने से तस्वीरें खिंच सकती हैं पर मोदी के लिए फिलहाल कोई बड़ा चैलेंज दिखाई नहीं देता। सारी क्षेत्रीय पार्टियां, सारे छोटे-छोटे दल अपने हिसाब से और अपने फायदे के लिए बयानबाजी करते हैं। जिसको जहां कुर्सी दिखाई देती है वह वहां समझौता कर लेता है। अब वह जमाना गया जब विचारधारा के नाम पर हाथ मिलाए जाते थे।

अमित शाह से मिले पवार

मैं ऐसा मंगलवार को जो हुआ उसके कारण कह रहा हूं। एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले और उनकी पार्टी के कुछ सांसद सुबह राहुल की ब्रेकफास्ट मीटिंग में शामिल हुए, लेकिन सियासी गलियारों में चर्चा का दौर तब शुरू हुआ जब दोपहर में शरद पवार गृह मंत्री अमित शाह से मिलने पहुंच गए।

एनसीपी नेताओं ने इसकी वजह तो ये बताई कि यह मुलाकात महाराष्ट्र में बाढ़ के बाद पैदा हुए हालात और महाराष्ट्र के कोऑपरेटिव फेडरेशन्स की स्थिति के बारे में चर्चा करने के लिए हुई क्योंकि कोऑपरेशन मंत्रालय की जिम्मेदारी अमित शाह के पास है। बारामती समेत वेस्टर्न महाराष्ट्र में काफी सहकारिता समितियां हैं और सूबे की कोऑपरेटिव्स में शरद पवार और उनके लोगों का अच्छा दखल है, लेकिन जब विपक्ष एकजुट होकर सरकार को घेरने की रणनीति बना रहा हो, उस वक्त शरद पवार अमित शाह के पास पहुंच जाएं तो सवाल उठेंगे ही। इसलिए एनसीपी के नेता नवाब मलिक ने सफाई देते हुए कहा कि कोऑपरेटिव बैकों को लेकर सरकार ने जो नियम बनाए हैं, उनमें कुछ प्रैक्टिल प्राब्लम हैं। उन्होंने कहा कि इसको लेकर शरद पवार ने कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री से भी मुलाकात की थी और मंगलवार को अमित शाह से भी मिलकर सहकारी बैंकों की दिक्कतों के बारे में बताया। नबाव मलिक ने यह भी कहा कि बीजेपी और एनसीपी की विचारधारा बहुत अलग है और दोनों पार्टियां कभी साथ नहीं आ सकतीं।

शरद पवार इस समय देश के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक हैं। वह ऐसे नेता हैं जो एक तीर से कई शिकार करने के लिए जाने जाते हैं। इसलिए शरद पवार जब किसी बड़े नेता से मिलते हैं तो उनकी रणनीति का अनुमान लगाना आसान नहीं है। नवाब मलिक भले ही कह रहे हों कि बीजेपी और एनसीपी की सोच अलग है और दोनों पार्टियां कभी साथ नहीं आ सकतीं, लेकिन मुझे लगता है कि आजकल राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता। न दोस्त, न दुश्मन, न विचार और न विचारधारा। कुछ भी हो सकता है। एनसीपी और शिवसेना की भी विचारधारा नहीं मिलती, लेकिन आज दोनों साथ-साथ हैं और मिलकर सरकार चला रहे हैं। सियासत में वक्त के साथ सब बदलता है।

मुझे आज भी याद है कि 2 साल पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में एच.डी. कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में, सोनिया गांधी से लेकर अरविंद केजरीवाल तक, सारे विपक्षी नेता मौजूद थे। उसी मंच पर सोनिया गांधी ने मायावती को गले लगाया था। ऐसा लगा था जैसे कोई बड़ा और एकजुट विपक्ष बनने जा रहा है। लेकिन मंगलवार को राहुल गांधी की ब्रेकफास्ट मीटिंह में न तो बहुजन समाज पार्टी के नेता आए और न ही अकाली दल या आम आदमी पार्टी के। एनडीए से बाहर निकलने के बाद अकाली दल अब बीजेपी के बिल्कुल खिलाफ खड़ा है फिर भी उसने राहुल की बैठक में हिस्सा लेने से परहेज किया। दरअसल, अगले साल पंजाब विधानसभा चुनाव में मुख्य लड़ाई अकाली दल और कांग्रेस के बीच होगी और यही बात बीएसपी पर भी लागू होती है। इसलिए वे जनता को गलत संकेत भेजने से बचते रहे।

शरद यादव से मिले लालू
समय के साथ सिर्फ सियासत ही नहीं बल्कि सियासी रिश्ते भी बदलते रहते हैं। मंगलवार को चारा घोटाले के दोषी लालू प्रसाद यादव अपने पुराने सियासी दुश्मन शरद यादव से गले मिले। शरद यादव और लालू यादव ऐक्टिव पॉलिटिक्स से दूर हैं, लेकिन दोनों मिलकर तीसरे मोर्चे की संभावनाएं तलाश रहे हैं। लालू ने सोमवार को अपने समधी और समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की थी, लेकिन कोई बयान नहीं दिया। मंगलवार को लालू ने मीडिया से बात की। उन्होंने कहा, ‘देश को एक नए विकल्प की जरूरत है। बिहार में तेजस्वी ने अकेले मुकाबला किया और एक नया विकल्प (विधानसभा चुनावों के दौरान) देने की कोशिश की। बिहार के दिवंगत दलित नेता रामविलास पासवान के असली उत्तराधिकारी चिराग पासवान ही हैं। तेजस्वी और चिराग को अब साथ-साथ आ जाना चाहिए।

यह बात तो सही है कि लालू यादव सजयाफ्ता हैं। भ्रष्टाचार के मामले में 3 साल की सजा काट चुके हैं, इसलिए सक्रिय राजनीति में वापस नहीं आ सकते और चुनाव नहीं लड़ सकते, लेकिन राजनीति में सक्रिय तो रह ही सकते हैं। लालू वही कर रहे हैं। वह देश की सियासत की नब्ज को पहचानते हैं। उनके पास काफी अनुभव है। खासकर वह उत्तर प्रदेश और बिहार में सामाजिक समीकरणों और राजनीति में जाति का महत्व समझते हैं। यही वजह है कि लालू अब जातिगत जनगणना की बात कर रहे हैं। इस मुद्दे को वह अब और हवा देंगे और साथ ही जाति के आधार पर जनगणना को मुद्दा बनाकर तीसरे मोर्चे की संभावना तलाशेंगे। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 03 अगस्त, 2021 का पूरा एपिसोड

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