सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के प्रावधान वाले 124वें संविधान संशोधन विधेयक को मंगलवार की रात लोकसभा की मंजूरी मिल गई। यह भारतीय इतिहास के घटनाक्रम में एक ऐतिहासिक कदम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरक्षण की वह दीवार एक झटके में तोड़ दी जो अगड़ी जातियों को अन्य पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों से अलग करती थी।
गरीबी किसी की जाति देखकर नहीं आती। अभी तक आरक्षण जाति के आधार पर दिया जाता था। इस बिल के पास होने के बाद गरीब परिवार में पैदा हुए ऊंची जाति के प्रतिभाशाली बच्चों को नौकरी और पढ़ाई के लिए प्रयास करते हुए उम्मीद की किरण दिखाई देगी। ऊंची जातियों से ताल्लुक रखने वाले ऐसे लाखों परिवार हैं जो गरीब हैं, लेकिन उन्हें आरक्षण के लाभ से वंचित रखा गया है।
इस सवाल का जवाब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऊपर छोड़ दिया गया कि अगड़ी जातियों से आने वाले आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण क्यों नहीं मिलता। कांग्रेस समेत ज्यादातर राजनीतिक दल आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को आरक्षण देने का वादा हर चुनाव में अपने घोषणापत्र में करती थीं, लेकिन उनमें इसे लागू करने के लिए जरूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति कभी नहीं आई। इन पार्टियों को डर लगता था कि उनके ऐसा करने पर कहीं OBC, SC और ST बैंक उनसे नाराज न हो जाएं।
संविधान संशोधन विधेयक वास्तव में एक क्रांतिकारी कदम है और अच्छी बात यह है कि ज्यादातर राजनीतिक दलों ने इस विधेयक का समर्थन किया है। अब ऊंची जाति में पैदा होने वाले गरीब बच्चों को शिकायत नहीं होगी कि आरक्षण के नाम पर उनके साथ अन्याय होता रहा है। (रजत शर्मा)
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