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Rajat Sharma’s Blog- पैगसस स्पाइवेयर: सिर्फ आरोप लगाना काफी नहीं, निगरानी का सबूत भी जरूरी

आरोपों के मुताबिक, इस लिस्ट में 3 विपक्षी नेता, 2 कैबिनेट मंत्री, एक पूर्व चुनाव आयुक्त, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, NGO ऐक्टिविस्ट, बिजनेसमैन और वकील शामिल हैं।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published : July 20, 2021 19:04 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

राजनीतिक गलियारों में सोमवार को इस बात को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे कि क्या मोदी सरकार ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी, पॉलिटिकल स्ट्रैटजिस्ट प्रशांत किशोर और कुछ पत्रकारों की जासूसी तो नहीं की। पेरिस स्थित मीडिया नॉन-प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन फॉरबिडन स्टोरीज और एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक, इजरायल के एनएसओ ग्रुप द्वारा बेचे जाने वाले स्पाइवेयर पैगसस का इस्तेमाल लगभग 300 भारतीयों पर निगरानी रखने के लिए किया गया था। आरोपों के मुताबिक, इस लिस्ट में 3 विपक्षी नेता, 2 कैबिनेट मंत्री, एक पूर्व चुनाव आयुक्त, सरकारी अधिकारी, वैज्ञानिक, NGO ऐक्टिविस्ट, बिजनेसमैन और वकील शामिल हैं।

मीडिया वेबसाइट्स ने 40 पत्रकारों के नाम गिनाए जिनके बारे में दावा किया गया था कि उनकी निगरानी की जा रही थी। सोमवार को आई नामों की एक दूसरी लिस्ट ने विवाद को और हवा दे दी जिसमें राहुल गांधी, उनके कुछ दोस्तों और सहयोगियों, पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, वर्तमान कैबिनेट मंत्रियों अश्विनी वैष्णव एवं प्रह्लाद पटेल और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी की पैगसस स्पाइवेयर के जरिए निगरानी का आरोप लगाया गया था। संसद के दोनों सदनों में जमकर हंगामा हुआ क्योंकि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने नए मंत्रियों का परिचय कराने जा रहे थे तब विपक्ष ने व्यवधान पैदा किया।

सरकार ने तुरंत इन आरोपों को खारिज कर दिया और दावा किया कि ‘किसी तरह की अवैध निगरानी नहीं हुई है।’ हालांकि कांग्रेस ने अमित शाह के इस्तीफे और एक संयुक्त संसदीय जांच की मांग की, गृह मंत्री ने कहा, ‘ऑज मॉनसून सत्र शुरू हो गया है। देश के लोकतंत्र को बदनाम करने के लिए मॉनसून सत्र से ठीक पहले कल देर शाम एक रिपोर्ट आती है, जिसे कुछ वर्गों द्वारा केवल एक ही उद्देश्य के साथ फैलाया जाता है कि कैसे भारत की विकास यात्रा को पटरी से उतारा जाए और अपने पुराने ‘नैरेटिव’ के तहत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को अपमानित करने के लिए जो कुछ भी करना पड़े, किया जाए।’

अमित शाह ने कहा, ‘आज मैं गंभीरता से कहना चाहता हूं इस तथाकथित रिपोर्ट के लीक होने का समय और फिर संसद में ये व्यवधान, आप क्रोनोलॉजी समझिए। यह भारत के विकास में विघ्न डालने वालों की भारत के विकास के अवरोधकों के लिए एक रिपोर्ट है। कुछ विघटनकारी वैश्विक संगठन हैं, जो भारत की प्रगति को पसंद नहीं करते हैं। ये अवरोधक भारत के वो राजनीतिक षड्यंत्रकारी हैं जो नहीं चाहते कि भारत प्रगति कर आत्मनिर्भर बने। भारत की जनता इस ‘क्रोनोलोजी’ और रिश्ते को बहुत अच्छे से समझती है।’

सरकार द्वारा इन रिपोर्ट्स में लगाए गए आरोपों को खारिज करने के बाद पैगसस सॉफ्टवेयर के जरिए निगरानी से संबंधित रिपोर्टों की प्रामाणिकता पर सवाल उठने लगे। सबसे दिलचस्प बात यह है कि जिस मीडिया एजेंसी ने रिपोर्ट लीक की है, वह खुद कह रही है कि डेटाबेस में लोगों का नाम होने का मतलब ये नहीं है कि उन के फोन पैगसस स्पाइवेयर के द्वारा हैक किए गए हैं। सबसे बड़ी बात कि किसी ने इस बात के प्रमाण नहीं दिए कि इन लोगों के फोन की बातचीत को किसी ने सुना या किसी ने रिकॉर्ड किया।

इजरायली कंपनी NSO ने रिपोर्ट में किए गए दावों को खारिज करते हुए कहा, ‘हम एक टेक्नोलॉजी कंपनी हैं। हमारे पास न तो वे नंबर हैं और न ही हमारे पास वह डेटा है जो हमारी तकनीक खरीदने वाले क्लाइंट के पास रहता है। हमारे पास कोई सर्वर या कंप्यूटर नहीं है जहां अपना स्पाइवेयर लाइसेंस किसी ग्राहक को देते हुए उसका डेटा स्टोर किया जाता हो।’ कंपनी ने कहा कि ऐसा लगता है कि रिपोर्ट्स में पैगसस को जासूसी के लिए इस्तेमाल किए जाने को लेकर बढ़ा-चढ़ाकर दावे किए गए हैं। कंपनी ने फोन को हैक किए जाने को लेकर किए गए फॉरेंसिक जांच के दावों पर भी सवाल उठाए।

इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी अश्विनी वैष्णव ने कहा, 'जब निगरानी की बात आती है तो भारत के पास एक स्थापित प्रोटोकॉल है। देश में स्‍थापित कानूनी प्रक्रियाएं यह सुनिश्चित करती हैं कि किसी भी प्रकार की गैरकानूनी निगरानी संभव नहीं है।’

पैगसस स्पाइवेयर क्या है? यह एक ऐसा सॉफ्टवेयर है जिसे किसी शख्स की जानकारी के बिना उसके फोन की निगरानी करने लिए डिजाइन किया गया है। यह उसकी व्यक्तिगत जानकारी इकट्ठा करता है और उस शख्स के पास भेज देता है जो जासूसी के लिए इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर रहा होता है। पैगसस की बहुत ज्यादा डिमांड है क्योंकि यह एंड्रॉयड पर काम करने वाले फोन के अलावा आईपैड और आईफोन को भी हैक कर सकता है। यह फोन के आस-पास की गतिविधि को कैप्चर करने के लिए फोन के कैमरे और माइक्रोफोन को भी चालू कर सकता है।

एनएसओ के प्रोडक्ट ब्रॉशर के मुताबिक, स्पाइवेयर फोन पर हो रही बातचीत को भी रिकॉर्ड कर सकता है और यूजर की जानकारी के बिना स्क्रीनशॉट भी ले सकता है। जब इस स्पाइवेयर का काम खत्म हो जाता है तो यह अपने आप खुद को खत्म भी कर लेता है। NSO का दावा है कि वह अपने स्पाइवेयर का लाइसेंस केवल सरकारों को बेचता है, किसी प्राइवेट कंपनी या शख्स को नहीं। कंपनी का दावा है कि स्पाइवेयर का इस्तेमाल केवल राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में और आतंकवाद पर अंकुश लगाने के लिए किया जाता है।

2014 से लेकर 2 सप्ताह पहले तक इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रहे रविशंकर प्रसाद इन न्यूज रिपोर्ट्स में किए गए दावों को खारिज करने के लिए आगे आए। उन्होंने कहा कि जासूसी को लेकर एक भी ठोस सबूत अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है और चारों तरफ से केवल आरोप ही लगाए जा रहे हैं।

मैं इस पूरे विवाद में दो बुनियादी बिंदुओं पर लोगों का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं: पहली तो ये कि विपक्ष की निगरानी करना और उनके नेताओं की बातचीत पर नजर रखना लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है। पत्रकारों, राजनीतिक नेताओं और न्यायपालिका से जुड़े लोगों पर नजर रखना किसी भी तरह से जायज नहीं माना जा सकता। दूसरी बात ये कि आतंकवादियों, अपराधियों और देश के दुश्मनों की राष्ट्रविरोधी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए उन पर नजर रखने का सरकार को अधिकार है।

ये दो बुनियादी नियम हैं जिनका पालन करने की जरूरत है। जहां तक पैगसस प्रोजेक्ट की बात है तो इसमें लगभग 300 भारतीयों के नाम सामने आए थे, लेकिन इस बात का एक भी ठोस सबूत नहीं दिया गया जिससे पता चलता हो कि इन लोगों के फोन हैक किए गए थे और वह भी सरकार के द्वारा। जब मीडिया में इस तरह की खबरें आती हैं, तो स्वाभाविक रूप से विपक्ष हंगामा करता ही है। लेकिन यह पहली बार नहीं हुआ है जब भारत में जासूसी के इस तरह के आरोप लगे हैं।

अभी कुछ दिन पहले ही सचिन पायलट का समर्थन करने वाले कुछ विधायकों ने आरोप लगाया था कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनके फोन टैप करवाए थे। प्रणव मुखर्जी जब डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार में वित्त मंत्री थे तो उन्होंने शिकायत की थी कि नॉर्थ ब्लॉक के उनके दफ्तर में कुछ गड़बड़ी की गई थी। उनके ऑफिस के अंदर सीक्रेट माइक्रोफोन लगाए गए थे। 1990 में जब चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे तब कांग्रेस नेता राजीव गांधी ने आरोप लगाया था कि उनकी जासूसी के लिए उनके बंगले पर हरियाणा के पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई है। इसी जासूसी की बात पर कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया और चंद्रशेखर को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तब विपक्ष के तत्कालीन नेता लालकृष्ण आडवाणी ने खुलासा किया था कि कुछ पत्रकारों के फोन टैप किए जा रहे हैं। मैं अतीत से ऐसे बहुत सारे वाकये गिना सकता हूं।

यह आरोप लगाना बहुत आसान है कि जासूसी हो रही है, फोन की टैपिंग हो रही है, हैकिंग हो रही है, लेकिन ऐसे आरोपों के समर्थन में ठोस सबूत होने चाहिए। पहले की बात भूल जाइए। आज के डिजिटल जमानें में यह पता लगाना बहुत आसान है कि कोई फोन हैक किया गया है या उसकी जासूसी की गई है। इस तरह की जासूसी के सबूत मिटाना मुश्किल है और फॉरेंसिक जांच के दौरान इसका पता लगाया जा सकता है। इसलिए सिर्फ डेटाबेस के आधार पर, बिना किसी प्रूफ के आरोप लगेंगे तो कोई यकीन नहीं करेगा। जब तक जासूसी के ठोस सबूत जनता के सामने नहीं रखे जाते तब तक कोई भी इन बातों पर विश्वास नहीं करेगा। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 19 जुलाई, 2021 का पूरा एपिसोड

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