पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद समिति से आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा और जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद को अपने बैंक खाते से एक सीमित राशि (1.5 लाख रुपये) निकालने की अनुमति देने का अनुरोध किया था। पाकिस्तानी सरकार द्वारा ‘बुनियादी खर्च’ के लिए एक प्रतिबंधित शख्स को पैसे जारी करने का समर्थन किए जाने के बाद इस अनुरोध को UNSC समिति ने औपचारिक तौर पर एक स्वचालित प्रकिया के तहत स्वीकार कर लिया है।
जमात-उद-दावा को संयुक्त राष्ट्र ने 26/11 के मुंबई हमलों के बाद दिसंबर 2008 में एक आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया था। इन हमलों में पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षित करके भेजे गए आतंकियों ने 166 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। हाफिज सईद के बैंक खाते को पाकिस्तान सरकार ने UNSC के प्रस्ताव 1267 का पालन करते हुए ब्लॉक कर दिया था। इसके साथ ही JuD और अन्य संबंधित संगठनों के फंड्स को फ्रीज कर दिया गया था।
पाकिस्तान सरकार ने अब ‘सईद और उसके परिवार के लिए आवश्यक बुनियादी खर्चों’ को पूरा करने के लिए इसी फंड में से 1.5 लाख रुपये की निकासी की मांग की है। आतंकी गतिविधियों में अपने हाथ काले करने से पहले सईद एक प्रोफेसर हुआ करता था, और उसकी मासिक पेंशन अभी भी पाकिस्तान सरकार द्वारा उसके बैंक खाते में जमा की जाती है।
पाकिस्तानी सरकार द्वारा लश्कर के मास्टरमाइंड के प्रति नरम रवैया आतंकवाद से निपटने के उसके दावों के खोखलेपन को साफ तौर पर उजागर करता है। लश्कर और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों को खुला समर्थन देने के चलते ही भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पाकिस्तान, जिसे वह 'टेररिस्तान' कहते हैं, के साथ किसी भी तरह बातचीत की संभावना को खारिज कर दिया।
जयशंकर बिल्कुल सही हैं। भारत एक ऐसे पड़ोसी देश के साथ बातचीत कैसे शुरू कर सकता है जो सीमा पार से आतंकवादियों को भेजता है, इसके सैन्य ठिकानों पर हमले करवाता है, निर्दोष लोगों का खून बहाता है और फिर दोस्ती का हाथ बढ़ाता है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद पर पाकिस्तान के पाखंड को दुनिया के सामने पूरी तरह उजागर कर दिया है। लगभग सारी दुनिया अब आतंकवाद का मुकाबला करने के मुद्दे पर पाकिस्तान पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं है, क्योंकि कुख्यात आतंकी संगठन अल-कायदा का प्रमुख ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान के एबटाबाद में ही छिपा हुआ पाया गया था, और तमाम आतंकी संगठन आज वहीं पर पल रहे हैं जिसे ‘जिहादी आतंकवाद का गढ़’ कहा जाता है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान आज विश्व मंच पर खुद की बदहाली का रोना रो रहे हों, लेकिन वैश्विक ताकतों में से कोई भी उनकी बात सुनने को तैयार नहीं है। पाकिस्तानी सेना और वहां के सत्ता प्रतिष्ठान को आत्मनिरीक्षण करने और अपनी जमीन से आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने का समय आ गया है। (रजत शर्मा)
देखें, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 26 सितंबर 2019 का पूरा एपिसोड