लश्कर-ए-तैयबा और जमात-उद-दावा का प्रमुख हाफिज सईद को बुधवार को लाहौर हाईकोर्ट की न्यायिक समीक्षा बोर्ड ने रिहा कर दिया। जबकि हाफिज सईद को संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने आतंकवादी घोषित कर रखा है।
पाकिस्तान की पंजाब सरकार ने हाफिज सईद की नजरबंदी तीन महीने के लिए बढ़ाने की मांग की थी लेकिन उनकी दलील को न्यायिक समीक्षा बोर्ड ने यह कहकर खारिज कर दिया कि अधिकारियों ने हाफिज खिलाफ पर्याप्त सूबत मुहैया नहीं कराए। हाफिज सईद को पाकिस्तान कोई सजा देगा या उसकी दहशतगर्दी के सबूत अदालत के सामने रखेगा, इसकी उम्मीद भारत में किसी को न थी, न कभी होनी चाहिए।
हाफिज सईद को पाकिस्तान ने अमेरिका के दबाव में आकर मजबूरी में नजरबंद किया था। अगर अमेरिका का दबाव नहीं होता तो हाफिज सईद पहले ही रिहा हो गया होता। कुछ दिन पहले तक पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ कह रहे थे कि हाफिज सईद और लश्कर-ए-तैयबा पाकिस्तान पर बोझ हैं। इनके कारण दुनिया में पाकिस्तान की छवि खराब हो रही है। लेकिन अब वही मंत्री कहेंगे कि सरकार तो हाफिज सईद को सजा दिलाना चाहती है। लेकिन उसे अदालत ने रिहा कर दिया, इसमें सरकार का क्या कसूर। सरकार का अदालतों पर कोई नियंत्रण नहीं है जिसने 26/11 मुंबई हमले के मास्टरमाइंड को रिहा कर दिया। पाकिस्तान की सरकार यह नहीं बताएगी कि भारत ने हाफिज सईद के खिलाफ कौन-कौन से सबूत दिए हैं और वे सबूत पाकिस्तान सरकार ने अदालत के सामने क्यों नहीं रखे। असल में यह सवाल पाकिस्तान की नीति का नहीं नीयत का है और जब तक नीयत ठीक नहीं होगी ऐसे मामलों में कोई रास्ता नहीं निकलेगा। (रजत शर्मा)