जम्मू-कश्मीर में दो दिन के अंदर चार ड्रोन देखे जाने के बाद पाकिस्तान के साथ हमारी सीमा पर अब एक नया खतरा मंडरा रहा है। सीमापार मौजूद आतंकी ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने के लिए विस्फोटकों से लैस चीन निर्मित ड्रोन्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। शनिवार रात जम्मू में एयर फोर्स स्टेशन पर 2 कम तीव्रता वाले विस्फोटों के बाद सेना ने रविवार रात कालूचक और रत्नुचक के सैन्य ठिकानों पर 2 और ड्रोन देखे। भारतीय सेना की क्विक रिऐक्शन टीमों ने दोनों ड्रोन्स पर तबतक फायरिंग की जबतक कि वे पाकिस्तान की सीमा में वापस नहीं चले गए।
हालांकि इन ड्रोनों से कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ, फिर भी ये हमारे सीमा प्रतिष्ठानों के लिए एक नए खतरे की ओर इशारा करते हैं। ऐसा लगता है कि यह भारत के खिलाफ एक बड़ी भयावह साजिश का हिस्सा है और इससे निपटने की तैयारी अभी से करने की जरूरत है। पिछले 2 सालों में हमारी सेना ने कश्मीर में ज्यादातर आतंकवादियों का सफाया कर दिया है, जिससे राजनीतिक नेतृत्व को लोकतांत्रिक प्रक्रिया नए सिरे से शुरू करने का मौका मिला है। पाकिस्तान में बैठे आतंकी गुटों ने अब सेना से भिड़ने के लिए नया हथकंडा अपनाया है। विस्फोटकों से लैस ड्रोन के इस्तेमाल से न तो इन आतंकी गुटों को आतंकियों की घुसपैठ कराने की जरूरत है और न ही सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ करने की जरूरत है।
इस मुद्दे पर मैने कई एक्सपर्ट्स से बात की, सेना के अफसरों से इस खतरे के बारे में पूछा, और उनका कहना है कि आने वाले वक्त में ड्रोन अटैक एक बड़ी प्रॉब्लम होगी और निकट भविष्य में भारतीय सीमा के अंदर इस तरह के हमले होते रहने की आशंका है। एक्सपर्ट्स ने बताया कि चीन लंबी दूरी तक रिमोट से कंट्रोल होने वाले ड्रोन बना रहा है और भारत में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान को उन ड्रोन्स की सप्लाई कर रहा है। आज मुझे जनरल बिपिन रावत की वे बातें याद आ रही हैं जो उन्होंने आर्मी चीफ रहते हुए कई बार कही थीं। जनरल रावत ने कहा था कि जो फ्यूचर वॉरफेयर होगा वह टेक्नॉलोजी पर आधारित होगा, यानी बिना किसी जवान को भेजे एक देश टेक्नोलॉजी की मदद से दूसरे मुल्क पर हमला करेगा।
कालूचक के ऊपर ड्रोन का नजर आना मुझे उसी इलाके में 19 साल पहले मई 2002 में हुए उस बड़े आतंकी हमले की याद दिलाता है, जिसमें 31 लोग मारे गए थे। यह चिंता का विषय है जब काफी दूर से कंट्रोल होने वाले ड्रोन हमारे इलाके में 14 से 15 किलोमीटर अंदर तक घुस आते हैं और नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं। जम्मू में IAF स्टेशन के ऊपर आए 2 ड्रोन IED (इंप्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) से लैस थे और उन्हें पिन प्वाइंट टारगेट्स को अटैक करने के लिए भेजा गया था। हमारे पास बॉर्डर पर जो ट्रेडिशनल एयर डिफेंस रडार सिस्टम मौजूद हैं, वे बड़े फ्लाइंग ऑब्जेक्ट्स को डिटेक्ट करने में सक्षम हैं फिर चाहे वह एयरक्राफ्ट हो, हेलीकॉप्टर हो या फिर कोई बहुत बड़ा अनमैन्ड एरियर व्हीकल (UAV) हो। लेकिन जहां तक छोटे-छोटे ड्रोन्स की बात है तो उन्हें डिटेक्ट करने के लिए इन रडार्स को ऑपरेशनलाइज नहीं किया गया है, क्योंकि अगर इन्हें छोटे-छोटे ड्रोन्स को भी डिटेक्ट करने के लिए लगा दिया तो फिर इसे हैंडल करना काफी मुश्किल हो जाएगा। ऐसे में किसी परिंदे के उड़ने पर भी ये अलर्ट मोड पर आ जाएगा और ये एक बड़ा ड्रॉबैक है।
हमारे सशस्त्र बलों के पास एंटी-ड्रोन जैमर हैं, जो एक निश्चित दायरे में आने पर ड्रोन को न्यूट्रलाइज यानी कि बेअसर कर सकते हैं। इन्हें 200 मीटर दूरी से भी न्यूट्रलाइज किया जा सकता है। साथ ही, DRDO (डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन) ने एक एंटी-ड्रोन डिवाइस विकसित की है जो किसी माइक्रो ड्रोन को 3 किलोमीटर की दूरी पर ही इंटरसेप्ट कर सकता है। हमारी सेनाओं के पास हाई पावर्ड इलेक्ट्रो मैग्नेटिक सिस्टम भी मौजूद हैं, जो एक निश्चित ऊंचाई पर उड़ने वाले ड्रोन को हवा में ही जाम कर सकते हैं। लेकिन इस सिस्टम का इस्तेमाल एयरपोर्ट्स या उसके आसपास के इलाके में नहीं हो सकता क्योंकि इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक पल्स सिस्टम फ्लाइट्स के मूवमेंट में गड़बड़ी पैदा कर सकता है और एयर कंट्रोल सिस्टम को भी जाम कर सकता है।
क्या हमारी सेनाएं एक साथ बड़े ड्रोन अटैक का मुकाबला करने के लिए तैयार हैं? जिस तरह टिड्डियां झुंड में आती हैं, और कुछ ही मिनट में सारी फसल नष्ट कर देती हैं ऐसे ही हजारों ड्रोन्स आ जाएं तो उनसे कैसे निपटा जाएगा? हमारे पास कई हॉबी ड्रोन्स हैं जिन्हें ग्रेनेड कैरियर या फिर छोटे IED कैरियर के तौर पर डिवेलप किया जा सकता है। इन ड्रोन्स का इस्तेमाल बम गिराने या मिसाइल दागने के लिए किया जा सकता है। कई ड्रोन्स में स्टेल्थ फीचर्स होते हैं यानी कि वे रडार को भी चकमा दे सकते हैं। इजराइल ने तो ड्रोन और मिसाइल हमलों को रोकने के लिए पूरा का पूरा एक कमांड सेंटर बनाया है। कुछ हफ्ते पहले दुनिया ने देखा था कि फिलीस्तीन के आतंकवादियों की तरफ से दागी जा रही मिसाइलों को इजराइल के आयरन डोम सिस्टम ने कैसे हवा में ध्वस्त कर दिया था। और अब तो इजराइल ने ऐसे ड्रोन्स भी बना लिए हैं जो पिनपॉइन्ट अटैक्स कर सकते हैं। अफगानिस्तान और पाकिस्तान में आतंकियों एवं उनके ठिकानों को नष्ट करने के लिए अमेरिकी सेना ने सालों तक रीपर ड्रोन और प्रीडेटर ड्रोन का इस्तेमाल किया था। ऐसी खबरें हैं कि भारतीय नौसेना समुद्र की निगरानी के लिए जल्द ही ऐसे 30 प्रीडेटर ड्रोन मिल सकते हैं।
पिछले साल हुई जंग के दौरान अज़रबैजान ने आर्मेनिया के अंदर कई जगहों पर ड्रोन्स के जरिए बम गिराए थे। भारत को अपनी सीमाओं पर 2 दुश्मनों, चीन और पाकिस्तान से लोहा लेना होता है, और ड्रोन हमलों के मुकाबले के लिए अपने सशस्त्र बलों को अत्याधुनिक तकनीक से लैस करने की जरूरत है। जैमर या लेजर बीम का इस्तेमाल करके दुश्मन के ड्रोन को बेअसर किया जा सकता है। चीनी कमर्शियल ड्रोन जो कि बाजारों में खुलेआम बिकते हैं, 10 किलो तक विस्फोटक ले जा सकते हैं। एंटी-ड्रोन सिस्टम, जिसे पिछले साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के के मौके पर तैनात किया गया था, की सीमा 2 से 3 किलोमीटर है। इसमें रडार के जरिए ड्रोन की पहचान करने और फिर लेजर बीम का इस्तेमाल करके उसे निशाना बनाने की क्षमता है।
यह बात तो सभी जानते हैं कि जब भी भारत कश्मीर घाटी में शांति की पहल शुरू करता है, तो सीमा के दूसरी तरफ मौजूद आतंकी गुट और उनके पाकिस्तानी आका ऐक्टिव हो जाते हैं और अमन की कोशिश को नाकाम करने के लिए ताबड़तोड़ हमले करने लगते हैं। घाटी में अब स्थिति शांतिपूर्ण है, आतंकवादियों को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया है, मुख्यधारा के राजनीतिक दल चुनाव के लिए कमर कस रहे हैं और पिछले 2 सालों के दौरान तमाम विकास परियोजनाएं ने आकार लिया है। पाकिस्तान के अंदर बैठे सरकारी और गैर सरकारी तत्व अब राज्य में हिंसा और तबाही मचाने के लिए बेताब हैं।
पिछले तीन दशकों में पाकिस्तान की कोशिश ज्यादा से ज्यादा आतंकियों का घुसपैठ कराने की रही है, लेकिन लगता है कि अब रणनीति बदल गई है। आतंकियों के राजनीतिक आका ड्रोन के जरिए हमलों को अंजाम देना चाहते हैं। वैसे तो 2019 से ही वे कश्मीर में हथियार और पंजाब में ड्रग्स भेजने के लिए ड्रोन्स का इस्तेमाल कर रहे थे, लेकिन यह एक छोटे पैमाने पर था। ऐसा पहली बार हुआ है कि हमारे सैन्य प्रतिष्ठानों के खिलाफ ड्रोन का इस्तेमाल किया गया था।
मुझे हमारे सशस्त्र बलों में काम करने वाले हमारे रणनीतिकारों पर पूरा भरोसा है। ड्रोन हमले का मुकाबला करने के लिए इजराइल पहले से ही कंप्यूटराइज्ड फायर कन्ट्रोल सिस्टम का इस्तेमाल करता रहा है। इजराइल ने ऐसे अडवॉन्स्ड रडार बनाए हैं जो ड्रोन्स के साथ-साथ UAVs का भी पता लगा सकते हैं। हमारी फौज के कमांडरों को लोगों को यह भरोसा दिलाने की जरूरत है कि हमारी सेनाएं सीमापार से होने वाले ड्रोन अटैक्स का तेजी से और सटीकता के साथ मुकाबला करने में पूरी तरह सक्षम हैं। इस तरह की खौफनाक साजिशों का जड़ से खात्मा करने के लिए एक बड़ी जवाबी कार्रवाई की जरूरत है ताकि पाकिस्तान के अंदर बैठे आतंकी समूहों के आकाओं को सबक सिखाया जा सके। (रजत शर्मा)
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