Monday, December 23, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. भारत
  3. राष्ट्रीय
  4. Rajat Sharma’s Blog: अंगदान के मौजूदा कानूनों में बदलाव की जरूरत

Rajat Sharma’s Blog: अंगदान के मौजूदा कानूनों में बदलाव की जरूरत

अंगदान के लिए जो कानून बने हैं, वे पुराने वक्त के हिसाब से बने हैं और अब उनमें बदलाव की जरूरत है।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published : June 10, 2021 17:33 IST
Rajat Sharma Blog, Rajat Sharma Blog on Organ Donation, Rajat Sharma Blog Kamini Patel
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

आज मैं सूरत की 46 वर्षीय महिला कामिनी पटेल के परिजनों को सलाम करना चाहता हूं। कामिनी को ब्रेन हैमरेज के बाद ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया था। मानवता दिखाते हुए परिजनों ने ब्रेन डेड हो चुकीं कामिनी पटेल के शरीर से ऑर्गन हार्वेस्टिंग की इजाजत दे दी। अधिकारियों ने भी तत्परता दिखाई और बेहद ही सावधानी से सड़क एवं हवाई मार्ग द्वारा अंगों को अहमदाबाद, मुंबई और हैदराबाद भेजा जिससे 7 लोगों को नई जिंदगी मिल गई।

कामिनी पटेल सूरत के बारडोली तालुका की रहने वाली थीं। उसके दिल, फेफड़े, लीवर, किडनी और आंखों को तुरंत 3 अलग-अलग शहरों में मौजूद डोनर्स के पास भेजा गया। कामिनी को 19 मई को हाई ब्लड प्रेशर की वजह से ब्रेन हैमरेज हुआ था। उन्हें सूरत के शेल्बी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां न्यूरोसर्जन्स ने सर्जरी की थी।

वह लगातार कोमा में रहीं और 5 जून को डॉक्टरों की एक टीम ने उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया। कामिनी के पति भरत पटेल एक किसान हैं। वह एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और अमेरिका स्थित एक ग्रुप का हिस्सा हैं जो कोविड -19 पीड़ितों की मदद करने में सक्रिय रहा है। डोनेट लाइफ नाम के एक एनजीओ ने कामिनी के परिवार से संपर्क किया और उनके पति और 2 बेटे ऑर्गन हार्वेस्टिंग के लिए राजी हो गए।

इसके बाद बेहद ही सावधानी से ऑपरेशन की प्लानिंग की गई और इसे मुस्तैदी के साथ अंजाम दिया गया। दिल को सूरत से मुंबई भेजा जाना था और 4 घंटे के भीतर ही इसका ट्रांसप्लांट होना था, दोनों फेफड़े हैदराबाद भेजे जाने थे, और किडनी एवं लीवर अहमदाबाद में डोनर्स को दिए जाने थे ताकि इनको वक्त रहते मरीजों के शरीर में ट्रांसप्लांट किया जा सके। इस ऑपरेशन के हर हिस्से को सावधानी से अंजाम देना था। कामिनी के परिजनों ने अंतिम बार उन्हें हॉस्पिटल के बेड पर लेटे देखा, उनके बेटे अपनी मां के पैरों पर सिर रखकर रोए और फिर बाहर आ गए। इसके तुरंत बाद डॉक्टरों की टीम ICU में गई और ऑर्गन हार्वेस्टिंग शुरू कर दी जिसमें ऑर्गन्स को प्रिजर्व करने का प्रोसेस भी शामिल था। इसके साथ ही, अहमदाबाद, मुंबई और हैदराबाद में डॉक्टरों की टीम ऑर्गन्स के आने बाद उनके ट्रांसप्लांट के लिए आईसीयू में तैयार थी।

पूरे ऑपरेशन को नेशनल ऑर्गन ऐंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (NOTTO) से जुड़े गुजरात के स्टेट ऑर्गन ऐंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (SOTTO) की मदद से कोऑर्डिनेट किया गया था। चूंकि हार्ट को लेने वाला कोई नहीं था, इसलिए इसे मुंबई के एच.एन. रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल भेज दिया गया। वहीं, पूरे पश्चिमी क्षेत्र में फेफड़ों की जरूरत भी किसी मरीज को नहीं थी, इसलिए इन्हें हैदराबाद के KIMS अस्पताल में एक 31 वर्षीय महिला मरीज के शरीर में ट्रांसप्लांट करने के लिए भेजा गया। एक किडनी अहमदाबाद के स्टर्लिंग अस्पताल में भर्ती मरीज को भेजी गई, जबकि उनकी आंखें सूरत के लोक दृष्टि आई बैंक को दान कर दी गईं।

रात के अंधेरे में शहर के सन्नाटे को चीरती ऐंबुलेंस एक स्पेशल कॉरिडोर के जरिए ऑर्गन को एयरपोर्ट तक ले गई, ताकि उसे हवाई मार्ग से मुंबई भेजा जा सके। आमतौर पर सूरत एयरपोर्ट रात को बंद रहता है, यहां से फ्लाइट्स की आवाजाही नहीं होती है, लेकिन चूंकि दो जिंदगियों का सवाल था, पुलिस और स्थानीय प्रशासन ने चार्टर्ड फ्लाइट्स के जरिए दिल और फेफड़ों को क्रमश: मुंबई और हैदराबाद पहुंचाने के लिए एयरपोर्ट को खोल दिया। सूरत से हैदराबाद की 940 किलोमीटर की दूरी 150 मिनट में पूरी की गई। कामिनी की किडनी और लीवर को 3 घंटे के भीतर एक स्पेशल कॉरिडोर के जरिए सड़क मार्ग से अहमदाबाद पहुंचाया गया। रात में ही अहमदाबाद में एक महिला को कामिनी पटेल की किडनी लगा दी गई, जबकि उनका लीवर 58 साल के एक मरीज को मिल गया।

हैदराबाद के KIMS हॉस्पिटल में 31 वर्षीय महिला मरीज नैना पाटिल के परिवार के लोग आज कामिनी को देवी का दर्जा दे रहे हैं। नैना 18 अप्रैल को कोरोना वायरस की चपेट में आ गई थीं। उन्हें 22 अप्रैल को जलगांव के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन हालत में कोई सुधार नहीं होने के कारण उन्हें KIMS अस्पताल में भर्ती कराने के लिए हैदराबाद ले जाना पड़ा। इस अस्पताल में 15 दिनों तक उनका इलाज चला, लेकिन इस दौरान उनके दोनों फेफड़े बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके थे। उनके पति ने ऑर्गन डोनेशन के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाओं से संपर्क किया लेकिन कई दिनों तक कोई जवाब नहीं मिला।

कई दिन के इंतजार के बाद दुआ कबूल हुई। अचानक 6 जून को नैना के पति के पास सूरत से फोन आया। KIMS अस्पताल के डॉक्टरों ने तुरंत सारे जरूरी परीक्षण किए, और सूरत के डॉक्टरों को जानकारी दी कि ट्रांसप्लांट हो सकता है। दो-ढाई घंटे में फेफड़े हवाई मार्ग के जरिए हैदराबाद पहुंचे और उसी रात उन्हें ट्रांसप्लांट कर दिया गया। नैना और उनके परिवार के लोग उनकी जान बचाने के लिए कामिनी पटेल के परिजनों को धन्यवाद कहते नहीं थक रहे हैं।

आमतौर पर सूरत से अहमदाबाद तक के 260 किलोमीटर के सफर को सड़क मार्ग के जरिए पूरा करने में 5 घंटे का वक्त लगता है, लेकिन 6 जून को ‘ग्रीन कॉरिडोर’ के कारण यह दूरी 3 घंटे में ही तय हो गई। अहमदाबाद के किडनी डिजीज ऐंड रिसर्च सेंटर में 31 साल की एक महिला को किडनी की जरूरत थी। इसी महिला के शरीर में सूरत से आई किडनी ट्रांसप्लांट की गई। जबकि उनकी दूसरी किडनी अहमदाबाद के स्टर्लिंग अस्पताल में 27 साल की एक महिला को लगाई गई। उनका लिवर अहमदाबाद के ही 58 साल के एक मरीज को लगाया गया।

हमें मानवता की यह महान सेवा करने के लिए कामिनी पटेल के परिजनों की सराहना करनी चाहिए। आमतौर पर हमारे समाज के एक बड़े हिस्से में अंगदान को एक सोशल टैबू माना जाता है, इसमें रीति-रिवाज और परंपरा आड़े आ जाते हैं और इसका विरोध करने की जरूरत है। एक परिवार ने ऑर्गन डोनेशन का फैसला किया, एक महिला के अंग दान किए गए और 5 लोगों को नई जिंदगी मिल गई। इसके अलावा 2 और लोग उस महिला की आंखों से फिर से देख सकेंगे। आपको जानकर दुख होगा कि हमारे देश में 40 लाख लोगों में सिर्फ 5 लोग ही अंगदान करते हैं, जबकि अमेरिका में 40 लाख में से 128 और  स्पेन में 188 लोग ऑर्गन्स डोनेट करते हैं।

AIIMS के ऑर्गन रिट्रीवल बैंकिंग ऑर्गनाइजेशन (ORBO) के मुताबिक, हमारे देश में हर साल 1.5 से 2 लाख लोगों को किडनी ट्रांसप्लाट की जरूरत होती है, लेकिन सिर्फ 8000 ट्रांसप्लांट्स ही हो पाते हैं। इसी तरह हर साल 40 से 50 हजार लिवर ट्रांसप्लांट के केस आते हैं, लेकिन मुश्किल से सिर्फ 1,500 लोगों को ही लिवर मिल पाता है। देश में एक साल में कम से कम 15 हजार हार्ट ट्रांसप्लांट्स के केस आते हैं, लेकिन सिर्फ 250 लोगों को ही दिल मिल पाता है। 2.5 लाख ऐसे लोग हैं जिन्हें हर साल कॉर्निया ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है, लेकिन सिर्फ 60,000 लोगों को ही कॉर्निया मिल पाता है।

लोगों को मौत के बाद अंगदान के लिए प्रेरित करने के लिए सामाजिक जागरूकता की जरूरत है। हालांकि एक दिक्कत और है, जीवित लोगों के लीवर ट्रांसप्लांट्स से जुड़े कई मामलों में कानूनी प्रक्रियाओं में काफी वक्त लग जाता है। इसका प्रोसेस इतना लंबा है, इतना कॉम्प्लिकेटेड है कि ज्यादातर मामलों में फाइल जब तक इस टेबल से उस टेबल तक पहुंचती है, और कमिटी डोनेशन को अप्रूवल देती है, तब तक मरीज की मौत हो जाती है।

आज मैंने 45 साल के एक मरीज को लिवर ट्रांसप्लांट के लिए मदद करने की कोशिश की। उनके परिवार में एक बूढ़े पिता और 2 छोटे-छोटे बच्चे हैं, और पूरे परिवार की जिम्मेदारी उनके ऊपर है। उनकी पत्नी अपना लीवर डोनेट करने के लिए तैयार थीं, लेकिन उनका ब्लड ग्रुप नहीं मिलता। अब मैचिंग ब्लड ग्रुप के जो डोनर मिले हैं वह दूर के रिश्तेदार हैं। डॉक्टर्स तैयार हैं और जल्दी ट्रांसप्लांट करना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए मेडिकल बोर्ड का अप्रूवल  चाहिए जो आसान नहीं है। असल में ऑर्गन डोनेशन के लिए जो कानून बने हैं, वे पुराने वक्त के हिसाब से बने हैं और अब उनमें बदलाव की जरूरत है। जब तक इन कानूनों में बदलाव नहीं किया जाता, बड़े पैमाने पर ऑर्गन ट्रांसप्लांट करना बहुत मुश्किल है। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 09 जून, 2021 का पूरा एपिसोड

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement