बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने गुरुवार को राज्यसभा में कांग्रेस की अगुवाई वाली विपक्षी पार्टियों पर स्पष्ट जीत दर्ज की। एनडीए के उम्मीदवार, जाने-माने पत्रकार और जनता दल (यूनाइटेड) के सदस्य हरिवंश ने राज्यसभा उपसभापति के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार बी. के. हरिप्रसाद को सीधे मुकाबले में अच्छे अंतर (125-101) से हराया।
सैद्धांतिक तौर पर कांग्रेस के नेतृत्व वाली गैर-बीजेपी पार्टियों का सदन में बहुमत है लेकिन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पासा पलट कर रख दिया। सबसे पहले नजदीकी सहयोगी शिरोमणि अकाली दल और शिवसेना जैसी पार्टियों को मनाया और उसके बाद बीजू जनता दल, एआईएडीएमके, तेलंगाना राष्ट्र समिति, इंडियन नेशनल लोकदल और अन्य निर्दलीय को साथ करके जरूरी समर्थन हासिल कर लिया।
वहीं दूसरी तरफ विपक्षी खेमे में वाईएसआर कांग्रेस वोटिंग से अलग रही। आम आदमी पार्टी और पीडीपी के सांसद भी गैरहाजिर रहे। स्पष्ट तौर पर गंभीरता की कमी की वजह से विपक्ष की रणनीति विफल रही।
मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं इसकी वजह बताता हूं। राज्यसभा में सदन के नेता और केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली किडनी ट्रांसप्लांट की वजह से एम्स के डॉक्टरों की सलाह पर पिछले चार महीने से अपने घर पर मेडिकल आइसोलेशन में थे। लेकिन गुरुवार को उप-सभापति के चुनाव में वोटिंग में हिस्सा लेने के लिए डॉक्टर्स की इजाजत लेकर सदन में आए।
यह एक स्पष्ट उदाहरण है कि एनडीए ने इस चुनाव को कितनी गंभीरता से लिया। वहीं विरोधी खेमे में कई सांसद चुस्त-दुरूस्त होने के बाद भी वोटिंग के दौरान गैरहाजिर रहे। वोटिंग के दौरान विरोधी दलों के 12 सांसद सदन से गैरहाजिर रहे। अगर ये सभी सांसद सदन में मौजूद रहते और कांग्रेस उम्मीदवार बी.के. हरिप्रसाद को वोट देते तो कम-से-कम हार का अंतर तो कम हो सकता था। अगर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अरविन्द केजरीवाल को फोन कर लेते तो उनके उम्मीदवार को आम आदमी पार्टी के तीन वोट मिल जाते।
वहीं दूसरी तरफ जेडीयू सुप्रीमो नीतीश कुमार ने खुद फोनकर बीजेडी अध्यक्ष नवीन पटनायक से उनकी पार्टी का समर्थन मांगा। राहुल गांधी भी नवीन पटनायक को फोन कर समर्थन हासिल करने की कोशिश कर सकते थे। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि राज्यसभा में विपक्ष का पलड़ा भारी होने के बाद भी बेहतर फ्लोर मैनेजमेंट और गंभीरता के कारण एनडीए ने जीत हासिल की। (रजत शर्मा)