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RAJAT SHARMA BLOG: पद्मावत विवाद: वोट बैंक की राजनीति के चलते सख्ती नहीं बरत रही राज्य सरकारें

फिल्म पद्मावत को सुप्रीम कोर्ट और सेंसर बोर्ड दोनों से हरी झंडी मिली है। आम जनता भी इस पक्ष में है कि फिल्म दिखाई जानी चाहिए लेकिन कुछ मुट्ठीभर लोग गिरफ्तारी के भय के बिना गुंडागर्दी कर रहे हैं। ये लोग देश को पूरी दुनिया में बदनाम कर रहे हैं और इन्हे

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Updated : January 25, 2018 19:32 IST
Rajat Sharma Blog
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फिल्म पद्मावत के रिलीज होने से ठीक एक दिन पहले देशभर के मल्टीप्लेक्स थियटर मालिकों ने चार राज्यों: राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और गोवा में इसे नहीं दिखाने का फैसला किया। सिनेमा हॉल मालिक लगातार हालात पर नजर बनाए हुए थे और उन्होंने यह पाया कि राज्य सरकारें और उनकी पुलिस उन प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सख्ती नहीं बरत रही है जो कि गुंडागर्दी, बसों पर पथराव और आगजनी कर रहे हैं।

​सबसे निंदनीय घटना गुरुग्राम में हुई जहां बदमाशों ने स्कूल बस पर पथराव किया और बच्चों को अपनी जान बचाने के लिए सीट के नीचे छिपना पड़ा। गुजरात में प्रदर्शनकारियों ने एक एंबुलेंस पर हमला कर दिया। कोई भी राजपूत इन निंदनीय कृत्यों में शामिल नहीं होगा। राणा प्रताप के वंशज कभी स्कूली बच्चों या एंबुलेंस पर हमला नहीं करेंगे। जिन लोगों ने भी इस वारदात को अंजाम दिया है उनपर कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसे गुंडे राजपूत समुदाय को बदनाम करते हैं, पद्मावत को नहीं।

​फिल्म पद्मावत को सुप्रीम कोर्ट और सेंसर बोर्ड दोनों से हरी झंडी मिली है। आम जनता भी इस पक्ष में है कि फिल्म दिखाई जानी चाहिए लेकिन कुछ मुट्ठीभर लोग गिरफ्तारी के भय के बिना गुंडागर्दी कर रहे हैं। ये लोग देश को पूरी दुनिया में बदनाम कर रहे हैं और इन्हें रोकनेवाला कोई नहीं है।

मेरा मानना है कि राज्य सरकारों के इस रुख के पीछे वोट बैंक की राजनीति हो रही है। इन राज्यों में राजनीतिक दलों को राजपूतों के वोट की फ्रिक है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश से काफी पहले यूपी, हरियाणा, मध्यप्रदेश और राजस्थान ने यह घोषणा कर दी थी कि वे अपने यहां पद्मावत फिल्म दिखाने की इजाजत नहीं देंगे। सुप्रीम कोर्ट ने विशेष तौर पर इन राज्यों से प्रतिबंध हटाने को कहा। राज्य सरकारों ने पुनर्विचार याचिका डाली, वो भी खारिज हो गई। यह सब करके राज्य सरकारों ने अपने वोट बैंक तक यह संदेश दे दिया कि उन्होंने फिल्म को रोकने के लिए हरसंभव कोशिश की। अब सुप्रीम कोर्ट का आदेश तो मानना पड़ेगा। राज्य सरकारों ने मल्टीप्लेक्सेज को सुरक्षा मुहैया कराई लेकिन पुलिस को प्रदर्शनकारियों के खिलाफ ताकत का इस्तेमाल कम करने को कहा गया। 

इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं। पहला, राजपूतों में यह संदेश जाएगा कि सरकार की पूरी हमदर्दी उनके साथ है। दूसरा, अगर पुलिस ने सख्ती की तो करणी सेना जैसे संगठनों को इसे बड़ा मुद्दा बनाने का मौका मिलेगा। गुजरात में दलितों के आंदोलन में पुलिस की ताकत के इस्तेमाल का अंजाम वहां की सरकार देख चुकी है। हरियाणा में जाट आंदोलन के वक्त पुलिस ने बल प्रयोग किया था। लाठीचार्ज और फायरिंग में कुछ लोगों की जान चली गई। पुलिस की कार्रवाई ने आंदोलन में आग लगाने का काम किया। राज्य सरकारें दूध की जली हैं इसलिए छांछ भी फूंक-फूंक कर पीना चाहती हैं और इसका पूरा फायदा करणी सेना के कार्यकर्ता उठा रहे हैं। मुझे लगता है जब लोग एक बार फिल्म देख लेंगे तो फिर प्रदर्शन खत्म हो जाएंगे और यह पता चलेगा कि करणी सेना ने कितनी बड़ी गलती की थी। (रजत शर्मा)

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