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BLOG: मुंबई हादसा हमारे देश में जान कितनी सस्ती है, उसकी तस्वीर है

ये सोचकर ही दुख होता है और देख कर यकीन नही होता कि आज भी रेलवे के पास ऐसे पुल हैं जो अंग्रेजों के जमाने में बने थे....जो 106 साल पहले बने थे।

Written by: India TV News Desk
Updated : September 30, 2017 18:32 IST
Mumbai Stampede, Rajat Sharma's blog
Mumbai Stampede, Rajat Sharma's blog

यह यकीन कर पाना वास्तव में कठिन है कि भारतीय रेलवे के ओवरब्रिज एक सदी पहले के बने हुए हैं। ये ओवरब्रिज और ब्रिज अंग्रेजों के जमाने में करीब सौ साल पहले बने थे और आज भी चल रहे हैं। शायद ही दुनिया का कोई बड़ा मुल्क ऐसा होगा जहां इतने पुराने ब्रिज और संकरे ब्रिज आज भी इस्तेमाल होते हैं। एलिफिंस्टन ओवर ब्रिज संकरा था और मुंबई के सबअर्बन ट्रेन में सफर करनेवाले करीब 3 लाख पैसेंजर्स रोजाना इस ओवरब्रिज का इस्तेमाल करते थे। आजादी के 70 साल बाद भी हम कहां खड़े हैं? यह इस हकीकत की एक भयानक तस्वीर है कि हमारे देश में जान कितनी सस्ती है।

 
इस हादसे में जिन लोगों की मौत हुई उनका क्या कसूर था? क्या उनका कसूर ये था कि वो आम आदमी थे? क्या उनका कसूर ये था कि वो मुंबई की लोकल में सफर करते थे? क्या उनका कसूर ये था कि वो मुंबई की उस ब्रिज से गुजर रहे थे जिसकी सीढ़ियां संकरी थी, जहां पर चलने की जगह नहीं थी? क्या उनका कसूर ये था कि वो बारिश होते हुए भी अपनी ड्यूटी पर जाना चाहते थे? अब अगर नया ब्रिज बन भी जाए और रास्ते चौड़े हो भी जाएं तो भी ये लोग कभी लौटकर नहीं आ पाएंगे। सिर्फ इस बात को बार-बार याद दिलाएंगे कि हमारे देश में आदमी की कीमत कुछ भी नहीं।
 
यह सवाल उठाए गए हैं कि पूर्व चेतावनी के बाद भी नए ओवरब्रिज का निर्माण क्यों नहीं कराया गया। सच तो ये है कि रेलवे हमारी इकॉनॉमी का एक अहम हिस्सा है। रेलवे की अपनी अलग एक दुनिया है। हमेशा यह बताया जाता है कि जितनी ऑस्ट्रेलिया की आबादी है उतने लोग रोजाना हमारे यहां ट्रेन में सफर करते हैं। इतना बड़ा रेलवे का नेटवर्क है, लेकिन जिस तरह से आज ये हादसा हुआ और जिस तरह से पिछले दो बड़े रेल एक्सीडेंट हुए, इससे यह बात बार-बार साबित हो जाती है कि पिछले 70 साल में रेलवे का इस्तेमाल राजनैतिक फायदे के लिए किया गया। ना सेफ्टी पर ध्यान दिया गया, ना रिस्ट्रक्चरिंग पर। सारा ध्यान इस बात पर रहा कि कहां से नई ट्रेन चलाई जाए और वो ट्रेन कौन से स्टेशन पर किसकी कॉन्स्टिट्युएंसी पर रुके। सुरेश प्रभु का दावा है कि उन्होंने पिछले तीन साल में इस दिशा में बहुत काम किया लेकिन पिछले तीन हादसों में यह काम कहीं दिखाई नहीं दिया।  (रजत शर्मा)

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