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Rajat Sharma’s Blog: राज्यों से मेरी अपील है कि केंद्र के साथ टकराव में आम लोगों को बख्श दें

सोमवार को सिर्फ 532 घरेलू उड़ानों का संचालन किया गया और 39,231 यात्री अपनी मंजिल तक पहुंच पाए। यह लॉकडाउन से पहले रोजाना संचालित होने वाली लगभग 2500 घरेलू उड़ानों का पांचवा हिस्सा था।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: May 26, 2020 14:37 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

भारत में सोमवार को COVID-19 के 6,087 नए मामले सामने आए जिसके बाद संक्रमितों की कुल संख्या बढ़कर 1.42 लाख हो गई। वहीं, 62 दिनों की बंदी के बाद देश में घरेलू हवाई सेवा फिर से शुरू हो गई, जिससे एविएशन इंडस्ट्री को बड़ी राहत मिली। हालांकि, पहला दिन हजारों यात्रियों के लिए निराशाजनक साबित हुआ। कई राज्य सरकारों द्वारा हवाई यात्रा की अनुमति देने से मना करने के बाद अंतिम समय में लगभग आधी उड़ानें रद्द करनी पड़ीं। सोमवार को सिर्फ 532 घरेलू उड़ानों का संचालन किया गया और 39,231 यात्री अपनी मंजिल तक पहुंच पाए। यह लॉकडाउन से पहले रोजाना संचालित होने वाली लगभग 2500 घरेलू उड़ानों का पांचवा हिस्सा था।

फ्लाइट्स के अंतिम समय में रद्द होने के चलते लगभग सभी प्रमुख हवाई अड्डों पर अराजकता फैल गई। नागरिक उड्डयन मंत्री ने देर रात घोषणा की कि आंध्र प्रदेश आज (मंगलवार) से हवाई सेवाओं की इजाजत देने के लिए सहमत हो गया है और पश्चिम बंगाल 28 मई से आने वाली फ्लाइट्स के लिए इजाजत देगा। पश्चिम बंगाल की सरकार अम्फान चक्रवात से हुई तबाही के चलते पैदा हुई समस्याओं से निपटने में व्यस्त है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे शुरू में उड़ानों की इजाजत देने के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि मुंबई एक हॉटस्पॉट बन गया है। लेकिन जब नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप पुरी ने खुद उनसे बात की तो उन्होंने मुंबई में 25 फ्लाइट्स को लैंड करने और इतनी ही फ्लाइट्स को यहां से उड़ान भरने की इजाजत दी। हालांकि इसके चलते आखिरी वक्त में कई फ्लाइट्स को कैंसिल करना पड़ा।

असम, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, बिहार, पंजाब, असम और आंध्र प्रदेश की सरकारों ने भी कंफ्यूजन को बढ़ाते हुए अपने राज्यों में आने वाले हवाई यात्रियों के लिए अलग-अलग दिशा-निर्देश जारी किए। कुछ राज्यों ने यात्रियों के लिए इंस्टिट्यूशनल क्वॉरन्टीन को अनिवार्य कर दिया। दिल्ली से बेंगलुरु पहुंचने वाले हवाई यात्री उस समय भड़क गए जब उन्होंने बगैर क्वॉरन्टीन के केंद्रीय मंत्री डी. वी. सदानंद गौड़ा को अपनी कार में एयरपोर्ट से बाहर जाते देखा। गौड़ा ने दावा किया कि वह अपने काम के सिलसिले में बेंगलुरु गए थे और उनके लिए क्वॉरन्टीन की जरूरत नहीं थी। उन्होंने तो यहां तक दावा किया कि वह एक स्पेशल फ्लाइट में भी जा सकते थे, लेकिन उन्होंने नियमित घरेलू उड़ान में जाने का विकल्प चुना क्योंकि वह अपने ओहदे का गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहते थे।

मुझे लगता है कि सदानंद गौड़ा अगर क्वॉरन्टीन में नहीं जाना चाहते थे तो उन्हें यह फ्लाइट नहीं लेनी चाहिए थी। यदि वह रेग्युलर फ्लाइट में गए तो उन्हें अन्य यात्रियों के लिए लागू नियमों का पालन करना चाहिए था। वीवीआईपी और आम लोगों के लिए अलग-अलग कायदे-कानून नहीं हो सकते। यदि केंद्रीय मंत्री होने के नाते गौड़ा को कोई जरूरी सरकारी काम करना था तो वह एक स्पेशल फ्लाइट या चार्टर्ड फ्लाइट ले सकते थे। हम उम्मीद करते हैं कि हमारे मंत्री कानून और नियमों का पालन करते हुए औरों के लिए उदाहरण पेश करेंगे। बड़ी बात यह है कि यात्रियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा, जो कि साफतौर पर नागरिक उड्डयन मंत्रालय और राज्य सरकारों के बीच समन्वय की कमी को दिखाता है।

नागरिक उड्डयन मंत्री ने गुरुवार को ऐलान किया था कि देश में एयर ट्रैफिक 25 मई को फिर से शुरू हो जाएगा। उनके पास 4 दिन का समय था और उन्होंने दावा किया था कि सारी तैयारियां पूरी हो गई हैं। यात्रियों और एयरलाइंस के लिए प्रोटोकॉल के नए नियम बनाए गए थे, टिकटों की बुकिंग की गई थी, फ्लाइट शेड्यूल हो चुकी थीं, फ्लाइट्स शुरू होने से कुछ ही घंटों पहले उन्हें रद्द कर दिया गया। यात्रियों के साथ कम्युनिकेशन की कमी के चलते एयरपोर्ट्स पर माहौल अराजक हो गया। 

इसी तरह मुंबई के बांद्रा टर्मिनस में बंगाल जाने का इंतजार कर रहे लगभग 3,000 प्रवासियों को उस समय घोर निराशा हुई, जब उनकी स्पेशल ट्रेनों को रद्द कर दिया गया। ऐसा क्यों हुआ, यह रेल मंत्री पीयूष गोयल द्वारा एक के बाद एक किए गए कई ट्वीट्स से साफ पता चल रहा था। उन्होंने ट्वीट किया कि रात के 12 बज चुके हैं और महाराष्ट्र सरकार की तरफ से सोमवार के लिए निर्धारित 125 ट्रेनों की डिटेल्स और पैसेंजर लिस्ट नहीं आई है। उन्होंने लिखा, ‘मैंने अधिकारियों को आदेश दिया है कि फिर भी प्रतीक्षा करे और तैयारियां जारी रखें।’

मंत्री ने फिर ट्वीट किया: ‘मैं महाराष्ट्र सरकार से अनुरोध करता हूं कि कृपया हमें ट्रेनों, उनके गंतव्यों और यात्रियों की लिस्ट भेजें। हम प्रतीक्षा कर रहे है और पूरी रात काम कर कल की ट्रेनों की तैयारी करेंगे। कृपया पैसेंजर लिस्ट अगले एक घंटे में भेज दें।’ रेल मंत्री ने अंत में ट्वीट किया: ‘महाराष्ट्र की 125 ट्रेनों की सूची कहाँ है? 2 बजे तक, केवल 46 ट्रेनों की लिस्ट प्राप्त हुईं जिनमें से 5 पश्चिम बंगाल और ओडिशा की हैं जो चक्रवात अम्फान के चलाई नहीं जा सकती हैं।’ जवाब में शिवसेना नेताओं ने रेल मंत्री पर तंज कसते हुए कहा कि यूपी को जाने वाली एक स्पेशल ट्रेन फिर ओडिशा कैसे पहुंच गई।

अब जरा देखें कि बांद्रा टर्मिनस पर गरीब मजदूरों के साथ क्या हुआ। ये मजदूर मुंबई से हावड़ा जाना चाहते थे, रजिस्ट्रेशन फॉर्म और हेल्थ सर्टिफिकेट सभी के पास था, लेकिन अचानक उनसे कहा गया कि कोई भी ट्रेन पश्चिम बंगाल नहीं जाएगी, क्योंकि राज्य सरकार ने वहां चक्रवात के कारण ट्रेनों की आवाजाही को रोक दिया है। कई कार्यकर्ता स्टेशन पर ही रोने लगे, क्योंकि वे मकान के किराए का हिसाब-किताब करके अपना सारा सामान बांधकर घर जाने के लिए पूरी तरह तैयार होकर आए थे। कई मजदूर इस मनमाने फैसले को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से बेहद नाराज नजर आए।

पीयूष गोयल की बात सही है कि गाड़ियां बिना किसी डेटा और बगैर प्लानिंग के ट्रेनों को नहीं चलाया जा सकता। रेलवे को पहले से यह पता होना चाहिए कि प्रवासी मजदूरों को कहां भेजना है और ट्रेनें किन स्टेशनों पर रुकेंगी। चूंकि जिन राज्यों में ट्रेनों से मजदूर पहुंचेंगे, वहां उन्हें क्वॉरन्टीन में रखना होगा इसलिए सरकारों को पहले से बसों की व्यवस्था करनी होगी ताकि उन्हें क्वॉरन्टीन सेंटर्स तक पहुंचाया जा सके। हो सकता है कि चक्रवात के बाद पश्चिम बंगाल सरकार राहत और पुनर्वास के काम में व्यस्त हो, लेकिन सवाल यह उठता है कि वह 1 मई से 15 मई तक क्या कर रही थी? राज्य सरकार ने स्पेशल ट्रेनों की मांग क्यों नहीं की? ममता बनर्जी एक संवेदनशील राजनीतिज्ञ हैं और मुझे उम्मीद है कि वह पश्चिम बंगाल लौटने वाले अपने लोगों का ध्यान रखेंगी, चाहे वह हवाई मार्ग से जाएं या ट्रेन से।

भारतीय रेलवे ने अब तक 3,060 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई हैं जिनपर सवार होकर 40 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर अपने गृह राज्यों में पहुंच चुके हैं। इनमें से सिर्फ बिहार में 1,029 ट्रेनों से 15,41,794 मजदूर लौटे हैं। सोमवार को भी 119 ट्रेनों में से 1,96,350 मजदूर बिहार आए हैं, लेकिन राज्य सरकार बसों की कमी का सामना कर रही है। सरकार के पास इन प्रवासी मजदूरों को क्वॉन्टीन सेंटर्स तक पहुंचाने के लिए पर्याप्त संख्या में बसें नहीं हैं। हजारों प्रवासियों और उनके रिश्तेदारों को पटना जंक्शन और दानापुर स्टेशन पर चिलचिलाती धूप में बसों के लिए घंटों तक इंतजार करना पड़ा। सोशल डिस्टैंसिंग के नियमों की जमकर धज्जियां उड़ीं, बसों पर बैठने के लिए जमकर मारामारी हुई और एक-एक सीट पर चार-चार लोगों ने बैठकर यात्रा की।

साफ है कि कोरोना वायरस के प्रसार से बचने के लिए मजदूरों के बीच किसी भी  तरह की सावधानी नहीं बरती जा रही है। ये दृश्य डरावने हैं। ऐसा लगता है कि बसों के भीतर हर जगह वायरस बैठा हुआ है। इसमें कोई शक नहीं कि प्रवासियों की संख्या बहुत ज्यादा है, लेकिन पड़ोसी राज्य यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने वापस आए 24 लाख मजदूरों को बेहतर इंतजाम करते हुए क्वॉरन्टीन सेन्टर में भेज दिया। अन्य राज्य उनसे सीख ले सकते हैं। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 25 मई, 2020 का पूरा एपिसोड

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