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Rajat Sharma’s Blog- मुंबई आग: मॉल में कोविड अस्पताल बनाने की इजाजत कैसे मिली?

हैरानी की बात तो ये है कि मॉल के तीसरे फ्लोर पर एक कोविड अस्पताल चल रहा था, और इसके सेकंड फ्लोर पर बने वैंक्वेट हाल में पार्टियां हो रही थीं।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: March 27, 2021 18:25 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

घोर लापरवाही के एक मामले में गुरुवार की आधी रात मुंबई के भांडुप में स्थित 4 मंजिला ड्रीम्स मॉल के टॉप फ्लोर पर चल रहे एक अस्पताल में भीषण आग लग गई। दुर्घटनास्थल से 11 शव बरामद हुए। नगर निगम द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, इनमें से 2 कोरोना के मरीज थे और उनकी मौत अस्पताल में पहले ही हो गई थी, जबकि बाकी के 9 लोगों की मौत दम घुटने से हुई। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने बताया कि इनमें से 7 लोग वेंटिलेटर पर थे, और उनके साथ-साथ 2 और मरीजों को बचाया नहीं जा सका।

यह अस्पताल सरकारी लापरवाही, बेईमानी और बदइंतजामी की बेमिसाल नजीर है। आप जानकर हैरान हो जाएंगे कि 107 बेड का यह अस्पताल एक ऐसे मॉल के टॉप प्लोर पर चल रहा था जिसमें मल्टीप्लेक्स, शॉप्स, खाने-पीने की दुकानें, बैंक्वेट हॉल, रेस्तरां और बार हैं। यह प्रशासनिक अक्षमता का एक जीता-जागता उदाहरण है। सनराइज हॉस्पिटल, जिसे एक कोविड अस्पताल घोषित किया था, उसमें OPD भी थी, ICU भी था और CCU भी था। मॉल में बने इस हॉस्पिटल में मरीजों के लिए वेंटिलेटर और ऑक्सिजन का भी इंतजाम था, लेकिन बस एक चीज नहीं थी। यहां फायर सेफ्टी के इंतजाम नहीं किए गए थे। मुंबई फायर सर्विसेज ने इस मॉल के फर्स्ट और सेकंड फ्लोर के लिए नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट नहीं दिया था, लेकिन इसके टॉप फ्लोर पर अस्पताल चलाने की इजाजत दे दी थी।

आग मॉल के फर्स्ट फ्लोर पर स्थित एक दुकान से शुरू हुई और जल्दी ही टॉप फ्लोर तक पहुंच गई। अस्पातल में अग्निशामक यंत्र तो थे, लेकिन आग से उठ रहे धुएं पर काबू पाने के लिए कोई इंतजाम नहीं था। मरीजों के बच निकलने के लिए वहां कोई सुरक्षित रास्ता भी नहीं था।

हैरानी की बात तो ये है कि मॉल के तीसरे फ्लोर पर एक कोविड अस्पताल चल रहा था, और इसके सेकंड फ्लोर पर बने वैंक्वेट हाल में पार्टियां हो रही थी। इस मॉल की पहली मंजिल पर दुकानें गुलजार थीं, जहां रोज सैकड़ों लोग आते थे। कुल मिलाकर कहा जाए तो एक ही छत के नीचे कोरोना के मरीज भी थे, पार्टियां भी होती थीं और लोग शॉपिंग भी करते थे। इतना सब हो रहा था और कोई देखने वाला नहीं था।

जिस वक्त मॉल में आग लगी, उस समय अस्पताल में 78 मरीज भर्ती थे। आग लगने की खबर मिलते ही फायर ब्रिगेड की 22 गाड़ियां मौके पर पहुंचीं। रात भर फायर ब्रिगेड के लोग आग बुझाने के लिए मशक्कत करते रहे। लेकिन आग इतनी जबरदस्त थी कि सुबह तक उसपर काबू पाने का काम चल रहा था। हालांकि फायर ब्रिगेड ने अस्पताल में भर्ती 67 मरीजों को क्रेन की मदद से बाहर निकाला और उन्हें दूसरे अस्पतालों में भेज दिया गया।

मुंबई की मेयर किशोरी पेडनेकर पहले तो यह जानकर हैरान रह गई थीं कि एक मॉल के टॉप फ्लोर पर अस्पताल कैसे चल रहा था। लेकिन जब मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि मुंबई में कोरोना के मरीजों के लिए बेड और वेंटिलेटर की कमी होने के चलते राज्य सरकार ने मॉल में अस्पताल चलाने की इजाजत दी थी, तब पेडनेकर ने अपने सुर बदल लिए।

ठाकरे ने कहा, ‘कोरोना के मरीजों के इलाज के लिए इस अस्पताल को अस्थाई रूप से इजाजत दी गई थी। हॉस्पिटल का परमिट 31 मार्च को खत्म होने वाला था, लेकिन दुर्भाग्य से इसके पहले ही आग लग गई।’ जहां तक बीएमसी का सवाल है, तो उसने पिछले साल नवंबर में इस मॉल को नियमों के उल्लंघन के लिए नोटिस जारी किया था।

फिलहाल मुंबई पुलिस ने इस मामले में अस्पताल प्रशासन पर लापरवाही बरतने के आरोप में FIR दर्ज कर ली है। मुंबई पुलिस के कमिश्नर ने कहा है कि जो लोग भी दोषी पाए जाएंगे, उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

ड्रीम्स मॉल 2009 में बना था। इस मॉल में करीब एक हजार दुकानें, 2 बैंक्वेट हॉल और एक अस्पताल हैं। कोरोना अस्पताल शुरू करने के लिए इसे पिछले साल कंडीशनल ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट दिया गया था। बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने आरोप लगाया है कि मॉल में हॉस्पिटल चलाने की परमिशन करप्शन ने दी। उन्होंने कहा कि BMC का यही सच है, पैसा दो और कोई भी परमिशन ले लो।

फडणवीस ने सरकार को याद दिलाया कि उसने भंडारा जिले के एक अस्पताल में आग लगने के चलते 10 बच्चों की मौत के बाद सभी अस्पतालों के फायर सेफ्टी ऑडिट के आदेश दिए थे। उद्धव ठाकरे ने जवाब दिया कि अस्पताल का तो फायर सेफ्टी ऑडिट था, लेकिन आग फर्स्ट फ्लोर की एक दुकान से शुरू हुई थी।

इस मॉल को 2009 में राकेश वाधवान की कंपनी HDIL ने बनाया था। लेकिन चूंकि मॉल से कोई फायदा नहीं हुआ, इसलिए बिल्डर BMC और दूसरी सिविक बॉडीज का पैसा नहीं चुका पाया। इसके चलते मॉल का बिजली पानी काट दिया गया। इस मॉल में जिनकी दुकानें थीं वे नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल चले गए। 2016 में NCLT ने मॉल में एक ऐडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त कर दिया, लेकिन हालत नहीं सुधरी। इसी बीच बिल्डर ने मॉल में हॉस्पिटल बना दिया, लेकिन शुरुआत में इसे परमिशन नहीं मिली। लेकिन जब महामारी शुरू हुई, तो BMC ने मई 2020 से 31 मार्च 2021 तक मॉल में हॉस्पिटल चलाने की इजाजत दे दी।

NCLT द्वारा नियुक्त किए गए मॉल के ऐडमिनिस्ट्रेटर राहुल सहस्रबुद्धे ने खुलासा किया कि वह फायर सेफ्टी से जुड़ी कमियों की ओर इशारा करते हुए BMC और फायर डिपार्टमेंट को चिट्ठियां लिख-लिखकर थक गए थे। उन्होंने कहा कि यदि उनकी चिट्ठियों पर ऐक्शन हुआ होता तो आज यह दिन न देखना पड़ता।

BMC की इजाजत से मॉल में हॉस्पिटल खुल जाए, और इसमें न फायर सेप्टी का इंतजाम हो, न पावर बैकअप की सही व्यवस्था हो, न इमरजेंसी एक्जिट के रास्ते हों तो ऐसे में लोग किसे दोष देंगे? मुख्यमंत्री ने तो कह दिया कि कोरोना की महामारी के चलते मॉल में हॉस्पिटल की चलाने की इजाजत दे दी गई, लेकिन जिन लोगों की दुकानें जल गई, जिनके परिवार वाले मौत का शिकार हो गए, उन्हें कौन जवाब देगा? HDIL के मालिक का कनेक्शन PMC बैंक घोटाले से रहा है, और महाराष्ट्र सरकार ने कोरोना महामारी के दौरान भी उनके परिवार के लोगों को घूमने के लिए महाबलेश्वर जाने की इजाजत दी थी।

यही वजह है कि इस मामले पर अभी जमकर सियासत होगी, और जब इल्जाम लगेंगे तो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को सफाई देना मुश्किल हो जाएगा। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 26 मार्च, 2021 का पूरा एपिसोड

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