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Rajat Sharma’s Blog: मोदी के तीनों कृषि बिल निश्चित तौर पर किसानों के हित में हैं

कांग्रेस ने अपने पिछले चुनावी घोषणापत्र में किसानों के लिए इन उपायों का वादा किया था। फरवरी 2011 में जब डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, उन्होंने एक बेहतर मार्केटिंग चेन बनाने के लिए डिलीवरी सिस्टम को आधुनिक बनाने का आह्वान किया था।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: September 19, 2020 18:14 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

संसद द्वारा इस हफ्ते पारित तीन कृषि विधेयकों को लेकर निहित स्वार्थों के चलते कुछ समूह और कुछ राजनीतिक दल, जिनमें मुख्य रूप से कांग्रेस शामिल है, किसानों के मन में संदेह और आशंकाएं पैदा कर रहे हैं। हालांकि कुछ किसान संगठनों ने 25 फरवरी को 'भारत बंद' का आह्वान किया है, लेकिन कई राजनीतिक दलों और उनके किसान संगठनों ने पहले ही विभिन्न राज्यों में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में बीजेपी की सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने भी विधेयकों का विरोध किया है और उनकी मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को तीनों कृषि विधेयकों के बारे में किसानों को गुमराह करने के लिए विपक्ष, विशेष रूप से कांग्रेस पर हमला बोला। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बिहार में कई परियोजनाओं की शुरुआत करते हुए मोदी ने इस कदम को ‘ऐतिहासिक’ बताया और आरोप लगाया कि तथाकथित किसानों के विरोध प्रदर्शनों को उन ‘बिचौलियों’ ने हवा दी है जिनके व्यावसायिक हितों को इन विधेयकों से चोट पहुंचेगी। उन्होंने किसानों से कहा कि वे बिचौलियों द्वारा फैलाई जा रही आधारहीन अफवाहों पर ध्यान न दें और इन बिलों का समर्थन करें क्योंकि इससे उनकी कमाई में वृद्धि होगी और बिचौलियों का खात्मा होगा।

प्रधानमंत्री ने किसानों को आश्वासन दिया कि गेहूं, चावल और अन्य कृषि उपज की न्यूनतम समर्थन मूल्य खरीद जारी रहेगी और कृषि विपणन निकायों (कृषि मंडियों) की व्यवस्था को खत्म नहीं किया जाएगा। मोदी ने कहा कि ये तीन कृषि बिल पिछले 7 दशकों में किसानों पर थोपे गए प्रतिबंधों से मुक्त करेंगे। मोदी ने कहा, ‘ऐसी पार्टियां हैं जिन्होंने दशकों तक देश पर शासन किया है और अब किसानों को गुमराह करने की कोशिश कर रही हैं। इन दलों ने पिछले चुनाव के दौरान अपने घोषणापत्र में इन उपायों का वादा किया था, लेकिन अब जब एनडीए ने ऐसा किया तो वे इसका विरोध कर रहे हैं।

आइए, एक-एक करके तीनों विधेयकों को समझते हैं। सबसे पहले, कृषक उपज व्‍यापार और वाणिज्‍य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक एक इको-सिस्टम बनाएगा जहां एक किसान भारत में कहीं भी अपनी उपज बेच सकता है। इसके अंतर्गत इंटर-स्टेट और इंट्रा-स्टेट ट्रेडिंग, यहां तक कि इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग की भी इजाजत होगी। किसान विपणन में आने वाली लागत पर बचत करेंगे। वर्तमान व्यवस्था के तहत एक किसान केवल APMC या एक पंजीकृत लाइसेंसधारी या राज्य सरकार के माध्यम से ही अपनी उपज बेच सकता है। वह अपनी उपज को ई-ट्रेडिंग या इंट्रा-स्टेट ट्रेडिंग के माध्यम से नहीं बेच सकता है। विपक्ष का कहना है कि किसानों को एपीएमसी से पर्याप्त कीमत मिलती थी, बाजार विनियमित होता था और राज्य सरकारें मंडी शुल्क कमाती थीं। सरकार का कहना है कि APMC और MSP को खत्म नहीं किया जाएगा और यह व्यवस्था जारी रहेगी।

दूसरी बात, कृषक (सशक्‍तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्‍वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक के चलते रिस्क किसानों से ट्रांसफर होकर उन लोगों पर शिफ्ट हो जाएगा जो उनके साथ कॉन्ट्रैक्ट अग्रीमेंट करेंगे। कॉन्ट्रैक्ट खेती के लिए एक राष्ट्रीय ढांचा प्रदान किया जाएगा। एक किसान अपनी उपज को निश्चित दरों पर बेचने के लिए कंपनियों, प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं, निर्यातकों और बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ अनुबंध या कॉन्ट्रैक्ट कर सकता है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग अग्रीमेंट में कृषि उत्पादों के ग्रेड, गुणवत्ता, मानकों और कीमतों के लिए नियम और शर्तें निर्धारित होंगी। सरकार का कहना है भले ही उत्पादों की कीमत में गिरावट आ जाए, किसानों को समझौते में तय दरों के अनुसार ही भुगतान किया जाएगा। समझौते में बोनस और प्रीमियम का भी प्रावधान होगा।

इस बिल का विरोध करने वालों का कहना है कि भले ही रेट की गारंटी दी गई हो, लेकिन कीमत तय करने के तरीके के बारे में कोई स्पेसिफिक मैकेनिज्म नहीं बताया गया है। उन्हें डर है कि प्राइवेट कॉर्पोरेट किसानों का शोषण कर सकते हैं। उनका कहना है कि अधिकांश कृषि क्षेत्र असंगठित हैं और उनके पास बड़े कॉर्पोरेट्स से डील करने के लिए संसाधनों की कमी है। वर्तमान में, किसान की उपज पूरी तरह से मॉनसून, उत्पादन से संबंधित अनिश्चितताओं और बाजार की जरूरतों पर निर्भर करती है। इसमें बहुत ज्यादा रिस्क है और किसान को अपनी उपज पर पूरा फायदा नहीं मिलता है। भारत में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कोई नई बात नहीं है। गन्ने की खेती और मुर्गीपालन के क्षेत्र में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पहले से ही चल रही है।

तीसरा है आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक। भारत में अधिकांश कृषि उत्पादों का सरप्लस है, लेकिन आवश्यक वस्तु अधिनियम के कारण कोल्ड स्टोरेज, गोदामों, प्रोसेसिंग और निर्यात में कम निवेश होता है। जब भी किसी फसल का उत्पादन काफी ज्यादा होता है तो किसान कीमतों में गिरावट और खेतों में अनाज और सब्जियों के सड़ने के कारण अच्छे रिटर्न पाने में असफल रहते हैं। नया विधेयक युद्ध, प्राकृतिक आपदाओं, अत्यधिक मूल्य वृद्धि और अन्य स्थितियों को छोड़कर उत्पादन, भंडारण, आवाजाही और वितरण पर सरकारी नियंत्रण को खत्म कर देगा। यह कोल्ड स्टोरेज और फूड सप्लाई चेन को आधुनिक बनाने में मदद करेगा, और अंततः किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के हित में होगा। किसी भी उत्पाद के स्टॉक की सीमा तभी लागू होगी जब उसकी कीमत दोगुनी हो जाएगी। खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया है। विपक्ष का कहना है कि ऐसा करने पर निर्यातक, प्रोसेसर और व्यवसायी फसल के सीजन में जमाखोरी का सहारा लेंगे और इसके चलते कीमतें अस्थिर हो जाएंगी। खाद्य सुरक्षा खत्म हो जाएगी। आलोचकों का कहना है कि इससे बड़े पैमाने पर जमाखोरी और ब्लैकमार्केटिंग को बढ़ावा मिलेगा।

इनमें से ज्यादातर आशंकाएं निराधार हैं। APMC और न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था जारी रहेगी, अंतर सिर्फ इतना होगा कि किसानों को अपने राज्य के अंदर या बाहर, दोनों ही जगहों पर अपनी उपज को खरीदारों को अच्छी कीमत पर बेचने का बेहतर विकल्प मिलेगा। नए कृषि कानून किसानों को बिचौलियों और कमीशन एजेंटों के चंगुल से मुक्त कर देंगे। किसानों को उनकी मेहनत और निवेश की अधिकतम कीमत मिलेगी। ऐसी आशंकाएं जताई जा रही हैं कि कॉर्पोरेट्स किसानों की जमीन हड़प लेंगे, लेकिन नए कानून में यह साफ किया गया है कि कॉर्पोरेट्स की भूमिका केवल उपज की खरीद तक ही सीमित रहेगी और वे न तो किसानों की ज़मीन खरीद सकते हैं और न ही उसे पट्टे पर ले सकते हैं। पंजाब में पेप्सिको पहले से ही आलू की सप्लाई के लिए किसानों के साथ मिलकर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर रही है और यही मॉडल देश के अन्य राज्यों में भी लागू होगा।

यह भी आशंका जताई जा रही है कि किसानों को अपनी उपज की कीमत पाने के लिए कॉर्पोरेट्स के चक्कर लगाने होंगे। नए कानून में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि किसानों से सीधे फसल खरीदने वाली कंपनियों को तुरंत भुगतान करना होगा और ईकॉ-मर्स के जरिए किया गया भुगतान ज्यादा से ज्यादा 3 दिन में किसान के अकाउंट में पहुंच जाना चाहिए।

कांग्रेस ने अपने पिछले चुनावी घोषणापत्र में किसानों के लिए इन उपायों का वादा किया था। फरवरी 2011 में जब डॉक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, उन्होंने एक बेहतर मार्केटिंग चेन बनाने के लिए डिलीवरी सिस्टम को आधुनिक बनाने का आह्वान किया था। उन्होंने तब निजी क्षेत्र को कृषि क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए कहा था। लेकिन अब कांग्रेस ने पूरी तरह से यू-टर्न ले लिया है और अब वह इन विधेयकों को ‘किसान विरोधी’ बता रही है। यह साफ तौर पर वोट बैंक की राजनीति है। सरकार द्वारा किसानों को विधेयकों के प्रावधानों को समझाने के लिए समय मिलने से पहले ही कांग्रेस ने अफवाहों का बाजार गर्म कर दिया।

पिछले 6 सालों से विपक्ष साइडलाइन है, लेकिन अब उसे किसानों के मुद्दे पर सरकार को घेरने का मौका मिल गया है। इस साल बिहार में चुनाव होने वाले हैं और 2022 में पंजाब में भी इलेक्शन होने हैं। इन दोनों ही राज्यों में किसानों का वोट डिसाइडिंग फैक्टर होता है। पीएम मोदी को इस बात का पूरा श्रेय जाता है कि वह किसानों के मन से भय और आशंकाओं के बादलों को दूर करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 18 सितंबर, 2020 का पूरा एपिसोड

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