प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक उत्कृष्ट वक्ता होने के साथ ही चतुर राजनीतिज्ञ भी हैं। वे देशभर में अपनी चुनावी रैलियों के हर भाषण में राष्ट्रीय सुरक्षा और कश्मीर का मुद्दा उठा रहे हैं। मोदी सवाल कर रहे हैं कि भारतीय वायुसेना के बालाकोट (पाकिस्तान) हमले को लेकर विपक्ष संदेह क्यों जता रहा है। वे यह भी पूछ रहे हैं कि कांग्रेस उन दलों का समर्थन क्यों कर रही है, जो कश्मीर में 'दो राष्ट्रपति और दो संविधान' के पक्ष में हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं कि बालाकोट हवाई हमले के नतीजों पर सवाल उठा रही कांग्रेस, एनसीपी और एमएनएस नेताओं के प्रति लोगों में नाराजगी है। यह तब देखने को मिला जब मैं नागपुर और मुंबई में इंडिया टीवी के शो 'आप की आवाज' में लोगों से बात कर रहा था। लोग खुले तौर पर विपक्ष के उन नेताओं की आलोचना कर रहे थे जो सेना की सर्जिकल स्ट्राइक और वायुसेना द्वारा बालाकोट में किए गए हमले को लेकर संदेह जता रहे हैं।
असल में मोदी ने जनता की नब्ज पकड़ ली है और लगभग अपनी हर जनसभा में वे इस मुद्दे को उठा रहे हैं। प्रधानमंत्री लगातार आरोप लगा रहे हैं कि विपक्ष के नेता 'पाकिस्तान की भाषा' बोल रहे हैं।
इसके साथ मोदी ने कश्मीर के मुद्दे को भी जोड़ा है, जहां नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने सरकार को अनुच्छेद 35 ए और अनुच्छेद 370 को हटाने की चुनौती दी है। ये अनुच्छेद कश्मीर को विशेष दर्जा और विधायी शक्तियां प्रदान करते हैं। ये नेता खुले तौर पर 'दो प्रधानमंत्री और दो संविधान' की वकालत कर रहे हैं, और मोदी फिर से इन कश्मीरी नेताओं के ऐसे बयानों पर जनता के गुस्से को निकाल रहे हैं। वहीं कांग्रेस और एनसीपी के नेता इस मुद्दे पर सीधा-सीधा जबाव देने से बच रहे हैं।
शुक्रवार को थल सेना, नौसेना और वायुसेना के करीब 150 रिटायर्ड अधिकारियों ने राष्ट्रपति को एक संयुक्त चिट्ठी लिखी जो कि आर्म्ड फोर्स के सर्वोच्च कमांडर हैं। इस चिट्ठी में नेताओं द्वारा आर्म्ड फोर्स के 'राजनीतिकरण' का विरोध किया गया। हालांकि ये भी सही है कि इस चिट्ठी में किसी राजनीतिक दल या किसी नेता का नाम नहीं लिखा है। इसमें आरोप लगाया गया है कि राजनीतिक दलों के नेता सीमा-पार हमले का श्रेय लेने की कोशिश कर रहे हैं।
जब यह संयुक्त चिट्ठी मीडिया में आई तो दो पूर्व चीफ, जनरल एस.एफ. रोड्रिग्स और एयर मार्शल एन.सी. सूरी ने कहा कि इस चिट्ठी में नाम शामिल करने से पहले उनकी सहमति नहीं ली गई है। एक अन्य पूर्व आर्मी वाइस चीफ लेफ्टिनेंट जनरल एम.एल नायडू ने कहा कि उन्होंने ऐसी किसी चिट्ठी पर हस्ताक्षर नहीं किया है। राष्ट्रपति भवन के सूत्रों ने कहा कि राष्ट्रपति को अभी यह चिट्ठी नहीं मिली है।
इस चिट्ठी का मसौदा तैयार करने वाले रिटायर्ड अधिकारियों में से एक ने बाद में कहा कि पिछले चालीस साल में पहली बार ऐसा हुआ है जब सरकार ने फौज को पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादी अड्डों को खत्म करने की इजाजत दी हो। स्वाभाविक रूप से, यह एक मजबूत सरकार द्वारा लिया गया साहसी फैसला था, और इसका श्रेय सरकार को मिलना चाहिए और सरकार को इस पर वोट मांगने का हक भी है। लेकिन सेना को 'मोदी की सेना' कहना और चुनावी पोस्टर्स में विंग कमांडर अभिनंदन की तस्वीर लगाकर वोट मांगना गलत है। (रजत शर्मा)
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