उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने प्रधानमंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखकर यूपी मदरसा शिक्षा बोर्ड और देश के अन्य मदरसा बोर्ड को खत्म करने की मांग करते हुए सभी मदरसों को सेंट्रल या राज्य शिक्षा बोर्ड से जोड़ने की सिफारिश की है। अपनी चिट्ठी में रिजवी ने आरोप लगाया है कि अधिकांश मदरसे मुस्लिम धर्मगुरुओं द्वारा चलाए जा रहे हैं जो कि मुस्लिम बच्चों को गलत धार्मिक शिक्षा दे रहे हैं और उन्हें राष्ट्र निर्माण के अवसर में भागीदारी से वंचित कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर रिजवी ने कहा कि आजादी के 70 साल में मदरसों में पढ़नेवाले गिने-चुने मुस्लिम ही सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर पाए और यह तब संभव हुआ जब उन्होंने आधुनिक शिक्षा का विकल्प चुना। उन्होंने दावा किया, 'मदरसों से आतंकवादी भी बड़ी संख्या में निकल रहे हैं।'
यह बात सही नहीं है कि मदरसों में आतंकवादी तैयार होते हैं। मदरसों में दीन की तालीम दी जाती है जो ठीक है लेकिन उसके साथ-साथ आधुनिक शिक्षा भी जरूरी है। मदरसों में अगर आधुनिक शिक्षा मिलेगी तो इससे मुस्लिम बच्चों का भविष्य सुधरेगा। राजस्थान, उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में बहुत से मदरसों में कंप्यूटर लगाए गए हैं। वहां सीबीएसई या राज्य शिक्षा बोर्ड के सभी विषय पढ़ाए जा रहे हैं। दूसरे राज्यों में भी ऐसा हो सकता है।
जहां तक मदरसों में कट्टरपंथी मानसिकता के नौजवान तैयार करने का इल्जाम है तो आतंकवादी कहीं भी पैदा हो सकते हैं, ऐसा नहीं कि मदरसों के अंदर ही आतंकवादी पैदा होते हैं। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी कोई मदरसा तो नहीं है, यह आधुनिक शिक्षा का बड़ा केंद्र है। वहां PhD करने वाला छात्र आतंकवादी बन जाता है और कश्मीर में जाकर बंदूक थाम लेता है। इसलिए मदरसों को बंद करने का सुझाव अव्यवहारिक है। हां, उन्हें आधुनिक जरूर करना चाहिए। (रजत शर्मा)