बुधवार की रात ऐतिहासिक नागरिकता संशोधन विधेयक 125-99 के बहुमत से राज्यसभा से पारित हो गया। इसके साथ ही पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं एवं 5 अन्य अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का रास्ता साफ हो गया। राष्ट्रपति द्वारा अपनी सहमति देने के बाद यह विधेयक कानून बन जाएगा। अब जब इस मामले पर चल रही तीखी बहसबाजी खत्म हो गई है, तो ये समझने की जरूरत है कि इस बिल के पास होने का असर क्या होगा।
भारत में शरण लेने के लिए इन तीन पड़ोसी देशों से आए लाखों अल्पसंख्यक कानून की नजरों से छिपते रहे हैं। वे वापस अपने मूल देशों में भेजे जाने के डर से अपनी पहचान छिपाकर रहा करते थे। ये लोग आखिरकार राहत की सांस लेंगे। वे अब खुलकर बाहर आ सकते हैं, अपनी पहचान को जाहिर कर सकते हैं और भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं। जो लोग धार्मिक उत्पीड़न के जलते भारत में शरण लेने के लिए मजबूर थे, अंतत: वे अब एक नया जीवन जी सकते हैं।
जरा इन तीन पड़ोसी देशों से धार्मिक उत्पीड़न के चलते भारत में शरण लेने के लिए मजबूर किए गए हिंदुओं, सिखों, ईसाइयों, बौद्धों और पारसियों के मन में फैले डर की कल्पना करें। उनकी महिलाएं लगातार डर के साए में जीती थीं। उन्हें यौन उत्पीड़न, अपहरण और जबरन धर्म परिवर्तन की शिकार होने का डर सताया करता था। भारत की नागरिकता न होने के चलते ये शरणार्थी शिक्षा, नौकरी और वोट के अधिकार से वंचित रह गए। मानवीय हित में लाया गया यह नया कानून उन्हें नागरिकता प्रदान करेगा ताकि वे धार्मिक आधार पर डर को पीछे छोड़कर स्वतंत्र जीवन जी सकें।
असम के लोगों को इस विधेयक से डरने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि यह वहां की जनसांख्यिकी, संस्कृति, भाषा या नौकरियों पर कोई असर नहीं डालेगा। इसी तरह, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और अरुणाचल प्रदेश में लोगों को भी इस विधेयक से डरने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि इन राज्यों में स्थानीय लोगों को बाहर से आने वालों से बचाने लिए इनर लाइन परमिट सिस्टम की व्यवस्था की गई है।
गृह मंत्री अमित शाह ने एक बेहद ही महत्वपूर्ण पक्ष रखा है कि यह विधेयक नागरिकता देने के लिए है, न कि नागरिकता लेने के लिए। भारत में रहने वाले मुसलमानों को इस विधेयक से डरने की कोई जरूरत नहीं है। यह कानून उनके जीवन, शिक्षा, नौकरी या नागरिकता को प्रभावित करने वाला नहीं है। इसलिए उन्हें निहित स्वार्थों के चलते कुछ समूहों द्वारा फैलाए जा रहे अफवाहों पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है।
CAB को लेकर हो रहे विरोध के हिंसक होने के बाद अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा दिया गया है और असम के गुवाहाटी एवं डिब्रूगढ़ में सेना को बुलाया गया है। असम और त्रिपुरा के अधिकांश हिस्सों में इंटरनेट को सस्पेंड कर दिया गया है। यह स्थिति वास्तव में गंभीर चिंता का विषय है। केंद्र सरकार को राज्य सरकारों के साथ बढ़िया तरीके से कोऑर्डिनेट करके असम और अन्य उत्तर पूर्वी राज्यों के लोगों के मन से डर को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए।
समझा जा सकता है कि लोगों में यह डर मुख्य रूप से असम में एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स) के लागू होने की वजह से है। ये दोनों मुद्दे पूरी तरह से अलग हैं। NRC अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वाले प्रवासियों की पहचान करने के लिए है, जबकि CAB पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश जैसे इस्लामिक राज्यों के उन अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए है, जिन्होंने भारत में शरण ली है। CAB किसी भी तरीके से असमियों की नौकरियों को प्रभावित करने नहीं जा रहा है। केंद्र को असमिया छात्रों और युवाओं से बात करनी चाहिए और सभी आशंकाओं को दूर करना चाहिए। इसके साथ ही, अफवाह फैलाने वालों पर कार्रवाई की जानी चाहिए। (रजत शर्मा)
देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 11 दिसंबर 2019 का पूरा एपिसोड