पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार ने मंगलवार को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हेलीकॉप्टर को बांकुडा में उतरने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। ममता की सरकार के इस इनकार के चलते भारतीय जनता पार्टी को अपनी रैली रद्द करनी पड़ी। योगी हालांकि पड़ोसी राज्य झारखंड में बोकारो के पास बारमसिया में अपने हेलिकॉप्टर को उतारने में कामयाब रहे, और उन्होंने पुरुलिया में एक विशाल सभा को संबोधित करने के लिए सड़क मार्ग से लगभग 30 किलोमीटर की यात्रा की।
बीजेपी के दो और वरिष्ठ नेताओं, शिवराज सिंह चौहान और शाहनवाज हुसैन, को मुर्शिदाबाद जिले में रैलियां करने की इजाजत देने से इनकार कर दिया गया। इसी तरह रविवार को योगी के हेलिकॉप्टर को उत्तरी बंगाल के बालूरघाट में उतरने से मना कर दिया गया, और उन्हें फोन पर सभा को संबोधित करना पड़ा। लोगों की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं का गला घोंटने के लिए सार्वजनिक सभाएं करने की अनुमति देने से इनकार किया जा रहा है, वह भी एक ऐसे नेता द्वारा जो खुद ‘लोकतंत्र बचाओ’ के नारे लगा रही हैं।
मैं ममता बनर्जी को याद दिलाना चाहूंगा कि जब वह पश्चिम बंगाल में मार्क्सवादियों से लड़ रही थीं तो उन्हें रैली करने से रोका जाता था और उनके जुलूस पर पत्थर बरसाए जाते थे। यहां तक कि लेफ्ट फ्रंट के गुंडे तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की पिटाई किया करते थे। ममता को लेफ्ट फ्रंट के कैडर्स द्वारा किए जा रहे बम हमलों, पत्थरबाजी और आगजनी के बीच वामपंथी शासन के खिलाफ एक दशक से भी ज्यादा समय तक संघर्ष करना पड़ा था।
इसीलिए मुझे यह देखकर आश्चर्य होता है कि वही नेता बीजेपी के नेताओं को बहाने करके रैली करने से रोक रही हैं और उनके हैलीकॉप्टर नहीं उतरने दे रही हैं। यह लोकतंत्र के लिए अच्छी परंपरा नहीं मानी जा सकती।
प्रत्येक राजनीतिक दल को जनसभाएं करने का अधिकार है, और ममता बनर्जी को पता होना चाहिए कि वह खुद भाजपा शासित राज्यों में लोकसभा चुनाव के दौरान हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल कर प्रचार करेंगी। यदि बीजेपी ने भी ममता को उन्हीं के अंदाज में जवाब देने का फैसला कर लिया तो उसके बाद क्या होगा?
यह सच है कि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में बीजेपी से राजनीतिक मोर्चे पर तगड़ी चुनौती मिल रही है, लेकिन एक अनुभवी राजनेता की हैसियत से उन्हें यह मालूम होना चाहिए कि ऐसी चुनौतियों से राजनीतिक तरीके से कैसे निपटा जाए। विरोधी दलों पर तमाम तरह की रोक लगाने वाले प्रशासनिक आदेशों के जरिए लोकतंत्र का गला घोंटकर इस चुनौती से नहीं निपटा जा सकता।
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