प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चक्रवात फनि से प्रभावित लोगों को सहायता प्रदान करने के उनके प्रस्ताव को बार-बार ठुकरा दिया। मोदी ने कहा, ‘मैंने चक्रवात के बाद ममता दीदी से टेलीफोन पर 2 बार बात करने की कोशिश की। मैं यह सोचकर इंतजार करता रहा कि वह वापस फोन करेंगी, लेकिन उनका फोन नहीं आया। उनके अंदर इतना अहंकार है कि उन्होंने चक्रवात के मुद्दे पर मुझसे बात ही नहीं की। दीदी ने चक्रवात राहत के साथ भी राजनीति करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।’
10 मिनट के बाद ममता बनर्जी ने पश्चिम मिदनापुर के गोपीबल्लभपुर में अपनी पार्टी की एक रैली को संबोधित करते हुए मोदी के आरोप का जवाब दिया। ममता ने कहा, ‘मैं उन्हें प्रधानमंत्री नहीं मानती, इसलिए मैं चक्रवात की समीक्षा बैठक के लिए उनके साथ नहीं बैठी। मैं उनके साथ एक ही मंच पर नहीं दिखना चाहती। मैं अगले प्रधानमंत्री से बात करूंगी। हम चक्रवात से हुए नुकसान से खुद ही निपट सकते हैं। हमें चुनावों से पहले केंद्र की मदद की जरूरत नहीं है।’
इस तरह के तीखे हमलों के बीच मैं कह सकता हूं कि बंगाल के लोग खुशकिस्मत हैं कि चक्रवात ओडिशा से उनके राज्य तक पहुंचते-पहुंचते कमजोर पड़ गया था। यही वजह है कि वहां ओडिशा की तरह बड़ा नुकसान नहीं हुआ। यदि बंगाल में भी ओडिशा की तरह नुकसान हुआ होता, तो ममता बनर्जी भेदभाव का इल्जाम लगाते हुए केंद्र पर बड़ा हमला बोलतीं।
इसमें कोई शक नहीं कि ममता बनर्जी एक अच्छी राजनीतिक प्रतिद्वंदी हैं। वह जानती हैं कि राजनीतिक हमलों का जवाब कैसे दिया जाता है, लेकिन प्राकृतिक आपदा के समय, जब आम आदमी संकट का सामना कर रहा हो, राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को व्यक्तिगत स्तर पर लाना सही नहीं है। उनका यह कहना ठीक नहीं है कि मैं मोदी को प्रधानमंत्री नहीं मानती और उनसे बात नहीं करूंगी। नरेंद्र मोदी को प्राकृतिक आपदा प्रबंधन का व्यापक अनुभव है। उन्होंने 2001 के गुजरात भूकंप से बहुत कुछ सीखा है।
चक्रवात फनि 3 मई को ओडिशा के तट से टकराया था। इसके एक दिन पहले, 2 मई को प्रधानमंत्री एक मेगा इंटरव्यू देने के लिए हमारे शो में आए थे। जब मैंने शाम को उनका इंटरव्यू लिया तो प्रधानमंत्री ने कहा कि वह चक्रवात से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए अधिकारियों के साथ एक आपदा प्रबंधन बैठक से तुरंत होकर आए थे। उस बैठक में केंद्र और ओडिशा सरकार, दोनों ने बड़े नुकसान से बचने के लिए और ठोस तैयारी करने के लिए रणनीति बनाई। उन्होंने पहले ही ओडिशा में एक लाख से ज्यादा लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना शुरू कर दिया था, और आपदा राहत टीमों को तैनात कर दिया था।
मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया और नवीन पटनायक ने एक मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें पूरा सहयोग प्रदान किया। संयुक्त राष्ट्र ने ओडिशा में लगभग एक लाख लोगों की जान बचाने के लिए आपदा प्रबंधन के तहत की गई कोशिशों की तारीफ की। लेकिन दुर्भाग्य से ममता बनर्जी ने पूरी तरह से अलग रुख अपनाया। यह केंद्र-राज्य संबंधों के लिए अच्छा नहीं है। (रजत शर्मा)
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