मैं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का एक पॉलिटिकल फाइटर के रूप में सम्मान करता हूं। वर्तमान में वह विपक्ष की एक दमदार आवाज हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी के रूप में उन्हें बगैर किसी डर के अपने विचारों को रखने का पूरा अधिकार है। गुरुवार को कोलकाता में एक रैली को संबोधित करते हुए ममता बनर्जी ने सीएए और एनआरसी के मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में जनमत संग्रह की मांग की।
तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो को यह बात पता होनी चाहिए कि पूरी दुनिया भारत के लोकतांत्रिक संस्थानों का सम्मान करती है। किसी राज्य के मुख्यमंत्री के लिए संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक पर संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में जनमत संग्रह कराने की मांग बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और अनर्गल है।
जहां तक नागरिकता संशोधन अधिनियम और नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर का सवाल है, आम लोगों के मन में ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब दिए जाने की जरूरत है। लोग पूछ रहे हैं कि क्या केवल मुसलमानों को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने के लिए कहा जाएगा और अन्य समुदायों को छूट दी जाएगी। इसका उत्तर है: अभी तो NRC का मसौदा भी तैयार नहीं है और यदि इसे लागू भी किया गया तो यह भाषा, जाति या समुदायों के आधार पर नहीं बल्कि सभी पर लागू होगा।
यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या लोगों को 1971 से पहले के दस्तावेज जमा करने के लिए कहा जाएगा। मैंने यह सवाल वरिष्ठ स्तर पर सरकार को सौंपा था, और जवाब था, नहीं। 1971 के पूर्व के दस्तावेज केवल असम के मामले में मांगे गए थे, क्योंकि 1971 की कट-ऑफ तारीख असम समझौते में निर्धारित की गई थी। शेष देश के लिए मतदाता पहचान पत्र या इसी तरह के दस्तावेज पर्याप्त होंगे। माता-पिता या दादा-दादी से संबंधित कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा, तो चिंता की कोई बात नहीं है।
आपकी वोटर आईडी, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, राशन कार्ड, हाई स्कूल प्रमाण पत्र या इसी तरह का कोई अन्य दस्तावेज आपकी नागरिकता साबित करने के लिए पर्याप्त होगा। मैं अब कुछ ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं की ओर इशारा करूंगा जो सीएए के विरोध के नाम पर हो रही हैं। अहमदाबाद में गुरुवार को भीड़ ने कुछ पुलिसकर्मियों पर हमला किया, और जब अपने फोर्स की बस में सवार होने की कोशिश में एक पुलिसकर्मी नीचे गिर गया, तो लोगों ने उसे बुरी तरह से पीटा। क्या विरोध के नाम पर कोई इस तरह की कार्रवाई को सही ठहरा सकता है?
ऐसे हालात पैदा होने के बाद अगर पुलिस लाठीचार्ज करे, फायरिंग करे या भीड़ के खिलाफ फोर्स का इस्तेमाल करे तो क्या उसकी कार्रवाई जायज नहीं होगी? क्या जो कार्यकर्ता नागरिकता कानून पर हो रहे विरोध-प्रदर्शन का समर्थन कर रहे हैं, वे एक पुलिसकर्मी पर भीड़ द्वारा किए गए ऐसे हमलों का बचाव करेंगे? या भीड़ का निशाना बने पुलिसकर्मी को जिम्मेदार ठहराया जाएगा, और भीड़ के द्वारा की गई कार्रवाई जायज मानी जाएगी?
मैं यह भी बताना चाहूंगा कि 7 मुसलमानों ने आगे आकर पुलिसकर्मियों को पथराव से बचाया। उन्हें कड़ी मशक्कत करनी पड़ी क्योंकि कोई भी उनकी बात सुनने के लिए तैयार नहीं था। ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब मिलना बेहद जरूरी है। इन सवालों के जवाब हमारे लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए काफी मायने रखते हैं। (रजत शर्मा)
देखें, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 19 दिसंबर 2019 का पूरा एपिसोड