पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को एक चुनावी रैली में कहा कि ‘मेरा मन करता है कि मोदी को लोकतंत्र का करारा तमाचा मारूं’। एक सूबे की सरकार की संवैधानिक प्रमुख केंद्र सरकार के संवैधानिक प्रमुख के खिलाफ ऐसे शब्दों का इस्तेमाल कर रही थीं। यह वाकई चौंकाने वाली बात है।
इसमें कोई शक नहीं है कि ममता बनर्जी एक तेजतर्रार और जमीनी नेता हैं जिन्होंने वामदलों को काफी लंबे संघर्ष में पछाड़कर अपनी पार्टी का जनाधार बनाया है। वह वास्तव में एक फायरब्रांड नेता हैं और लोग उनके जुझारूपन की दाद देते हैं। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि वह राजनीतिक लाभ के लिए प्रधानमंत्री का अपमान कर सकती हैं। किसी राज्य का मुख्यमंत्री भारत के प्रधानमंत्री के खिलाफ इस तरह की अपमानजनक टिप्पणी कैसे कर सकता है?
चुनाव आएंगे, जाएंगे। कोई नेता जीतेगा, कोई हारेगा। यह सब लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल अस्वीकार्य है। और ममता नाराज क्यों है? वह नाराज इसलिए हैं क्योंकि वह नहीं चाहतीं कि जिन्हें वह ‘बाहरी’ बुलाती हैं वे लोग बंगाल में आएं और मुस्लिम तुष्टीकरण का मुद्दा उठाकर हिंदू वोटों को उनसे छीन लें।
बीजेपी 'जय श्री राम' के नारे और दुर्गा पूजा की मूर्तियों के विसर्जन पर प्रतिबंध के मुद्दे को उठाकर यह आरोप लगाती रही है कि तृणमूल कांग्रेस की सरकार बंगाल में हिंदुओं को दरकिनार कर रही है और मुसलमानों का तुष्टिकरण कर रही है। बीजेपी के नेता ममता की गलतियों को एक बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं, और ममता ने अब यह महसूस करना शुरू कर दिया है कि सिर्फ मुस्लिम वोटों से ही काम नहीं चलने वाला।
यही वजह है कि उन्होंने अपना रुख बदल लिया है और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को ‘बाहरी’ बता रही हैं। इस तरह से वह बंगाली बनाम बाहरी का मुद्दा उठाना चाहती हैं। इन्हीं सियासी सरगर्मियों के चलते पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री अपनी चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री के खिलाफ तीखी टिप्पणियां कर रही हैं। (रजत शर्मा)
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