पिछले कई महीनों से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी पार्टी राफेल एयरक्राफ्ट सौदे का ब्यौरा सरकार से मांग रही है। लोकसभा चुनाव में अभी आठ महीने बाकी हैं और विपक्षी दल इस सौदे को एक बड़ा मुद्दा बनाने की योजना बना रहा है। राहुल गांधी यह पूछ रहे हैं कि यूपीए सरकार द्वारा तय की गई कीमत से ज्यादा कीमत पर मोदी सरकार क्यों राजी हुई।
बुधवार को मीडिया के कुछ वर्गों ने रक्षा मंत्रालय और भारतीय वायुसेना द्वारा तैयार उन दस्तावेजों तक अपनी पहुंच बना ली जिसमें यह साफ दर्शाया गया है कि एनडीए सरकार द्वारा खरीदे गए प्रत्येक राफेल एयरक्राफ्ट की कीमत यूपीए सरकार द्वारा तय कीमत से 59 करोड़ रुपये कम है। एयरक्राफ्ट की कीमत, हथियार, सिस्टम, सिमुलेटर, रखरखाव, मरम्मत सहयोग और तकनीकी सहयोग, इन सबको ध्यान में रखते हुए मौजूदा सरकार द्वारा खरीदे गए प्रत्येक एयरक्राफ्ट की कीमत 1,646 करोड़ रुपये है, जबकि यूपीए सरकार के दौरान एक एयरक्राफ्ट के लिए 1,705 करोड़ रुपये का भुगतान किया जाना था।
यह पूरा मुद्दा राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। किसी भी रक्षा सौदे में गोपनीयता जरूरी होती है और कांग्रेस पार्टी यह जानती है कि इस समझौते में गोपनीयता एक शर्त है जिसका पालन सरकार को करना होगा। सरकार राफेल डील की जानकारी सार्वजनिक नहीं कर पाएगी क्योंकि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान पहुंचेगा। इसी मजबूरी का फायदा उठाकर कांग्रेस जानबूझ कर सरकार को घेरने की कोशिश कर रही है।
इस सौदे के अहम बिंदुओं और किस तरह के अत्याधुनिक प्रणालियों से लैस यह विमान होगा, इसपर ज्यादा जानकारी देना राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ होगा। इसलिए बेहतर है कि इसे यहीं बंद किया जाए। सियासत के लिए बहुत से मुद्दे हैं। देश की सुरक्षा के सवाल पर सियासत ठीक नहीं है। (रजत शर्मा)