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Rajat Sharma’s Blog: हम सभी हर दिन महिला दिवस मनाएं

महिलाओं को समानता दें, सम्मान दें, सुरक्षा दें। इसे महिलाओं पर अहसान नहीं, अपनी जिम्मेदारी समझें।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: March 09, 2021 19:30 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

पूरे विश्व में हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इस दिन भारत में लोग देश का मान बढ़ाने वाली महिलाओं को सम्मानित करते हैं। व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि महिला दिवस कम से कम अगले तीन या चार साल तक हर दिन मनाया जाना चाहिए। कारण, हम सभी इस बात से अवगत हैं कि भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की घटनाएं बढ़ रही है। हमें पता है कि घर से दूर रहने वाली महिलाएं किस हद तक असुरक्षित महसूस करती हैं। कैसे कुछ मनचले सड़कों पर, दफ्तरों में और यहां तक कि घरों में  महिलाओं के साथ कैसा सलूक करते हैं। हमें हर दिन, हर वक्त महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के बारे में सोचना होगा। सिर्फ एक दिन महिला दिवस मना लेना ही काफी नहीं है।

एक तरफ तो हमारे प्राचीन ग्रंथों और सांस्कृतिक लोकाचार में महिलाओं को सम्मान दिया गया है, उनकी प्रशंसा की गई है तो दूसरी तरफ वास्तविक जीवन में महिलाओं को अपमान, उत्पीड़न और अत्याचार का सामना करना पड़ता है। हमारे प्राचीन ग्रंथ मनु स्मृति में कहा गया है, ‘जहां स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं, और जहां स्त्रियों का सम्मान नहीं होता है, वहां किए गए समस्त अच्छे कर्म भी निष्फल हो जाते हैं।’

भारत में हर मिनट घरेलू हिंसा की एक घटना दर्ज होती है। भारत में हर 16 मिनट में एक महिला के साथ बलात्कार होता है। हर घंटे सामूहिक बलात्कार की  एक घटना होती है। हम सोच भी नहीं सकते कि हमारी माताओं और बेटियों को हर दिन क्या-क्या सहना पड़ता है।

जब कोई महिला काम के लिए घर से निकलती है तो उसे हर पल चौकन्ना रहना पड़ता है। रास्ते में, बस में, मेट्रो में, हर जगह सावधानी बरतनी पड़ती है। यहां तक कि दफ्तर पहुंचने के बाद भी उसे मनचलों से हर वक्त सावधान रहना पड़ता है। ये लोग कहीं से भी, कभी भी हमला कर सकते हैं।

नई टेक्नॉलजी के आने के बाद तो महिलाओं को दफ्तरों और किराए के मकानों में वॉशरूम का इस्तेमाल करते हुए भी चौकन्ना रहना पड़ता है। डिपार्टमेंटल स्टोर्स के चेंजिंग रूम्स में भी काफी सावधानी रखनी पड़ती है। कोई नहीं जानता कि कब कोई घात लगाए बैठा शख्स किसी महिला की तस्वीर को मॉर्फ करके उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देगा।

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का मानना है कि महिलाओं के खिलाफ ज्यादातर अपराध या तो करीबी रिश्तेदारों, या जान-पहचान के लोगों द्वारा किए जाते हैं। लेकिन यह बात सिर्फ अपराध तक सीमित नहीं है। आप और हम जानते हैं कि चाहे सड़क हो या दफ्तर, हर जगह महिलाओं पर बुरी नजर रखने वाले लोग मौजूद हैं। दफ्तरों, घरों और सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं को अपमान और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। सोमवार की रात हमारे प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमारे पत्रकारों ने उन महिलाओं से बात की जो पेट्रोल पंप पर काम करती हैं, सेना, वायुसेना एवं पुलिस में सेवारत हैं, और नर्सों के रूप में दिन-रात अस्पतालों में जुटी हुई हैं।

कई महिला कर्मचारियों ने बताया, कैसे कुछ लोग उनसे द्विअर्थी बातें करते हैं, भद्दे कमेंट्स करते हैं लेकिन उन्हें नजरअंदाज करना पड़ता है। उन महिलाओं की मानसिक पीड़ा के बारे में सोचें जिन्हें अश्लील टिप्पणियां झेलनी पड़ती हैं और इसके साथ ही अपना काम भी करते रहना पड़ता है, क्योंकि उन्हें अपने परिवार का पालन पोषण भी करना पड़ता है।

हमारे रिपोर्टरों ने महिला सिक्यॉरिटी गार्ड्स से भी बात की, जो छोटे-छोटे शहरों से काम की तलाश में बड़े शहरों  में आती हैं।  उनमें से कइयों ने बताया कि किस तरह पुरुष उन पर अश्लील और कामुक टिप्पणियां करते रहते हैं। कुछ पुरुष कस्टमर तो इन महिला सुरक्षा गार्ड्स से शारीरिक  तलाशी लेने तक की बात कह देते हैं।

कल्पना करें, एक महिला डरते-डरते अपने घर से काम पर निकलती है, सड़कों पर और दफ्तरों में बदसलूकी का सामना करती है। ये एक दिन की बात नहीं बल्कि रोज़ की कहानी है। उस मानसिक पीड़ा के बारे में सोचिए जिससे उन्हें गुजरना पड़ता है। पुलिस की नौकरी करने वाली महिलाओं के ड्यूटी के घंटे तय नहीं होते, वे देर से घर लौटती हैं। कई बार तो बच्चों को लेकर थाने में ड्यूटी करने वाली महिला पुलिसकर्मियों की तस्वीरें भी हमने देखी हैं, क्योंकि उनके बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं होता है।

हमारी लाखों नर्सें और डॉक्टर पिछले एक साल से कोरोना वायरस से लड़ाई लड़ रहे हैं। जब हम सशस्त्र बलों, पुलिस और स्वास्थ्य सेवाओं में अपने देश की बहादुर महिलाओं के योगदान को देखते हैं, उनकी प्रेरणादायक कहानियां पढ़ते हैं तब हमे गर्व महसूस  होता है, लेकिन जब हम दहेज के कारण होने वाली घरेलू हिंसा,  बलात्कार और मौके-बेमौके महिलाओं के उत्पीड़न की खबरें पढ़ते हैं, तब यह गर्व हवा हो जाता है और हमारे सिर शर्म से झुक जाते हैं।

ऐसी लाखों महिलाएं कभी शिकायत नहीं करतीं। महिला चाहे गृहिणी हो या कामकाजी,  उसे घर की जिम्मेदारी भी संभालनी पड़ती है। हम लाख बराबरी की बातें करते रहें पर सब मानकर बैठे हैं कि घर चलाना तो महिलाओं का काम है, भले ही वे दफ्तरों में भी काम करती हों। काम डबल है, जिम्मेदारी दोगुनी है, पर हक बराबरी का नहीं है। उन्हें फैसले लेने का अधिकार नहीं होता, और न ही पुरुषों की तुलना में समान सम्मान मिलता है।

अब सवाल है कि करें तो क्या करें? मुझे लगता है कि यह हम सब की जिम्मेदारी है कि शुरुआत अपने घर, अपने पड़ोस, अपने आस-पास से करें। महिलाओं को समानता दें, सम्मान दें, सुरक्षा दें। इसे महिलाओं पर अहसान नहीं, अपनी जिम्मेदारी समझें। अपने घरों में लड़कों को सिखाएं कि महिलाओं का आदर कितना जरूरी है और क्यों जरूरी है। अगर कभी लड़के किसी लड़की से बदसलूकी करें तो उन्हें इसकी सजा दें। यदि गुंडे बसों और ट्रेनों के अंदर महिला यात्रियों को परेशान करते हुए दिखें तो चुपचाप खड़े न रहें, बल्कि हस्तक्षेप करें। कल आपके परिवार की किसी महिला के साथ भी ऐसा हो सकता है।

जब हम उन महिलाओं की कहानियां सुनते हैं जिन्होंने शिक्षा हासिल करने के बाद आर्थिक आजादी पाई है तो हमें गर्व की अनुभूति होती है। यही उनकी वास्तविक ताकत है, उनकी ‘शक्ति’ है। ये महिलाएं इस ‘शक्ति’ को अपने दम पर हासिल कर रही हैं। लेकिन समाज इन्हें अपने हिसाब से चलाना चाहता है, इनके मन में डर बैठाने की कोशिश करता है।

अब वक्त आ गया है कि महिलाओं के पक्ष में मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों और गुरुद्वारों से आवाजें उठें, और समाज के दुश्मनों को चेतावनी दी जाए कि महिलाओं के खिलाफ बदसलूकी को कभी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ऐसा करने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा। ऐसा करने के बाद ही हम महिला दिवस मनाने के असली हकदार होंगे।

हमें समाज में जागरूकता पैदा करने और लोगों को शिक्षित करने के लिए अपने इस संकल्प को हर रोज़ दोहराना होगा। दूसरे शब्दों में कहें, तो हमें कम से कम अगले तीन-चार साल तक हर दिन महिला दिवस मनाना होगा। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 08 मार्च, 2021 का पूरा एपिसोड

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