इराक के मोसुल में आईएसआईएस आतंकियों द्वारा निर्माण कार्य में लगे 39 भारतीय कर्मचारियों के अपहरण के चार साल बाद सरकार ने बुधवार को अंतत: संसद में यह ऐलान किया कि डीएनए जांच के जरिए सभी बंधकों की मौत की पुष्टि हुई है। रेगिस्तानी इलाके में डीप पेनेट्रेशन रेडार की मदद से एक टीले की खुदाई कर इनके अवशेषों को बाहर निकाला गया।
यह पूरी दुनिया को पता है कि इराक में पिछले पांच साल से क्या हालात हैं, किस तरह से ISIS निर्दोष लोगों की हत्या करने में क्रूरता की हद तक जा रहा है। इस आतंकी संगठन की क्रूरता की पराकाष्ठा से पूरी दुनिया वाकिफ है। ईराक में लाखों लोग अपनी जान गवां चुके हैं और जमीन के नीचे लाशें ही लाशें हैं। ISIS की क्रूरता के शिकार इन भारतीयों के रेगिस्तान में दफन अवशेषों का पता लगाना और उन्हें निकालकर भारत में रहनेवाले उनके रिश्तेदारों के DNA सैंपल से मिलान करवाना पूर्व आर्मी चीफ और विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह के लिए बेहद कठिन काम था। जनरल वीके सिंह ने जिस तरह से लापता भारतीयों के बारे में पता लगाया और उनके अवशेषों को खोजा और पहचान की, यह काबिले तारीफ है।
जहां तक इस मामले में देरी का सवाल है तो यह सभी जानते हैं कि इस दौरान मोसुल पूरी तरह से ISIS के नियंत्रण में रहा। जब इराकी सेना ने फिर से मोसुल पर अपना नियंत्रण स्थापित किया उसके बाद अपहृत भातीयों की खोज के प्रयास शुरू हुए। कोई भी सरकार बिना सबूत के विदेश में फंसे अपने 39 नागरिकों की मौत पुष्टि कैसे कर सकती है। एक व्यक्ति जो कि वहां से बच निकला था, उसके कहने पर सरकार 39 लोगों की मौत की पुष्टि कैसे कर दे। राजनीतिक दलों को यह महसूस करना चाहिए कि यह मामला इंसानियत का है, इसलिए इसपर सियासत तो नहीं होनी चाहिए। (रजत शर्मा)