विश्व हिंदू परिषद रविवार को अयोध्या में धर्म सभा का आयोजन करने जा रही है। वहीं, शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे भी अपनी पार्टी के नेताओं के साथ सरयू नदी के किनारे आरती में भाग लेंगे। इन दो बड़ी घटनाओं को देखते हुए अयोध्या आजकल एक आभासी किले के रूप में तब्दील हो चुकी है। ये दोनों ही संगठन रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए केन्द्र पर जल्द अध्यादेश लाने का दबाव डाल रहे हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर जनवरी से सुनवाई करने वाला है।
समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट को तुरंत स्वत: संज्ञान लेकर अयोध्या में सेना तैनात करने पर विचार करना चाहिए। उत्तर प्रदेश की सरकार ने पहले ही कानून और व्यवस्था को संभालने के लिए 4,000 पुलिसकर्मियों के अलावा बीएसएफ, सीआरपीएफ, रैपिड ऐक्शन फोर्स और राज्य पीएसी की तैनाती कर रखी है। इसके अलावा मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में अतिरिक्त बल की तैनाती की गई है, फिर भी अल्पसंख्यक समयुदाय के लोगों द्वारा अयोध्या से पलायन की खबरें आ रही हैं।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अयोध्या में राम मंदिर हिंदुओं की आस्था का प्रश्न है और इसके लिए संत सम्मेलन करना लोकतांत्रिक अधिकारों के दायरे में है। लेकिन इस वजह से अफवाहें फैलाकर किसी को डराना जायज नहीं है। अच्छी बात यह है कि उत्तर प्रदेश की सरकार ने अयोध्या में शांति कायम रखने के लिए पुख्ता इंतजाम किए हैं।
शिवसेना और विश्व हिंदू परिषद के नेताओं को इस बात की कोशिश करनी चाहिए कि वहां डर का माहौल न बने, शांति का वातावरण बना रहे। इन नेताओं को भी यह समझना चारिए कि जन्मभूमि पर राम मंदिर का निर्माण भक्ति और सौहार्द के वातावरण में होना चाहिए, और ऐसा कुछ भी नहीं किया जाना चाहिए जिससे सांप्रदायिक तनाव बढ़े। (रजत शर्मा)
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