अपने शो 'आज की बात' में शुक्रवार की रात मैंने 2 बेहद ही खौफनाक घटनाओं का जिक्र किया था। इनमें से एक घटना राजस्थान की थी, जबकि दूसरी वारदात छत्तीसगढ़ में हुई थी। ये दोनों ही घटनाएं दिखाती हैं कि जिस पुलिस को कानून व्यवस्था को बनाए रखने की जिम्मेदारी मिली है, उसमें किस हद तक सड़ांध पैदा हो गई है। राजस्थान में हुई घटना में करौली के एक गांव में दबंगों ने एक मंदिर की जमीन हड़पने के लिए उसके पुजारी पर पेट्रोल डाला और उनके साथ-साथ उसकी झोपड़ी को भी आग के हवाले कर दिया।
लोकल पुलिस ने इस मामले को खुदकुशी के रूप में दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वहीं, छत्तीसगढ़ की घटना में एक आदिवासी लड़की के साथ 7 लोगों ने गैंगरेप किया, जिसके बाद पीड़िता ने आत्महत्या कर ली। बलात्कारियों ने मामला दबाने के लिए स्थानीय पुलिस अधिकारी को 10,000 रुपये की रिश्वत दी और 3 महीने तक FIR दर्ज करने की गुहार लगाने के बाद पीड़िता के पिता ने भी जहर पी लिया।
ये दोनों ही मामले इस बात के जीवंत उदाहरण है कि विभिन्न राज्यों की पुलिस किस तरह से अपराधियों के साथ मिलीभगत में काम कर रही है। मैंने मंदिर के पुजारी के दबंगों द्वारा जिंदा जलाए जाने का वीडियो देखा है। ये दृश्य इतने भयावह हैं कि इन्हें टीवी पर नहीं दिखाया जा सकता। 50 वर्षीय पुजारी बाबूलाल वैष्णव ने इन गुंडों में से एक, कैलाश मीणा को बुकना गांव में बुधवार को अपने ऊपर हुए हमले का मास्टरमाइंड बताया। वैष्णव ने अगले दिन जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल में दम तोड़ दिया।
पुलिस ने बताया कि सारा झगड़ा ग्राम पंचायत द्वारा राधा गोपाल मंदिर को दान में दी गई 15 बीघा जमीन को लेकर था। पुजारी अपने परिवार के साथ मंदिर के पास एक फूस की झोपड़ी में रह रहे थे। वह पिछले कई सालों से इस जमीन पर खेती करते आ रहे थे। इस हत्या ने राजस्थान में ब्राह्मण समाज को सड़क पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया और सूबे की सत्ता पर काबिज कांग्रेस एवं विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी में जमकर आरोप-प्रत्यारोप हुए।
मौत से पहले अपने आखिरी बयान में पुजारी ने कैलाश मीणा और 5 अन्य लोगों का नाम लेते हुए कहा कि इन्हीं लोगों ने उन्हें और उनकी झोपड़ी को जलाया है। शुरुआत में पुलिस ने यह कहकर घटना को कमतर दिखाने की कोशिश की कि पुजारी ने ही खुद को आग लगा ली थी, लेकिन घटना का वीडियो वायरल होने के बाद राज्य सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा। पुजारी के परिजनों ने मुआवजे के रूप में 50 लाख रुपये और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की मांग की है। अब तक कैलाश मीणा सहित 2 आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है।
मैंने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का ट्वीट देखा है जिसमें उन्होंने इस घटना की निंदा की है और आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई का वादा किया है। गहलोत ने ट्वीट किया, ‘राजस्थान सरकार इस दुखद समय में शोकाकुल परिजनों के साथ है। दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।’
सवाल यह नहीं है कि अब क्या ऐक्शन लिया जाएगा। सवाल यह है राजस्थान के गांवों में हालात क्या हैं। यदि मीडिया इस जघन्य अपराध के मामले को न उठाता, तो स्थानीय पुलिस घटना का सारा दोष पुजारी पर मढ़कर इस मामले को दबा देती। जांच अधिकारी ने तो अपनी रिपोर्ट में यह कहा था कि पुजारी ने ही खुद को आग लगाई थी। अगर मीडिया ने हत्यारों के साथ जांच अधिकारी की मिलीभगत को उजागर नहीं किया होता, तो पुजारी के परिवार को कभी न्याय नहीं मिलता। हत्यारे खुलेआम घूम रहे होते।
पुलिस से मेरी अपील है के कि अत्याचार से संबंधित मामलों में थोड़ा संवेदनशील रहे। यह कोई एकलौती ऐसी घटना नहीं है। ऐसे सैकड़ों मामले हैं जिनमें गरीबों और दलितों को पुलिस द्वारा न्याय से वंचित किया गया है।
छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में एक नाबालिग आदिवासी लड़की ने 3 महीने पहले 7 लोगों द्वारा गैंगरेप किए जाने के बाद आत्महत्या कर ली थी। उसके पिता ने FIR दर्ज करने के लिए पुलिस अधिकारियों से कई बार गुहार लगाई, लेकिन स्थानीय पुलिस ने मदद नहीं की। हताशा होकर पीड़िता के पिता ने जहर पी लिया। जब इस खबर ने स्थानीय मीडिया में सुर्खियां बटोरीं तब कहीं राज्य की पुलिस ने मामले का संज्ञान लिया। इसके बाद पोस्टमॉर्टम के लिए लड़की की लाश को कब्र से निकाला गया।
मैंने अपने रिपोर्टर अनुराग अमिताभ को इस माओवाद-प्रभावित इलाके में मामले की विस्तार से जांच करने के लिए भेजा था। उन्होंने पाया कि स्थानीय पुलिस इंस्पेक्टर ने बलात्कारियों से 10,000 रुपये रिश्वत लेकर FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया था। इसके साथ ही आरोपियों को छोड़ दिया गया। आरोपी से रिश्वत लेने वाले पुलिस इंस्पेक्टर को सस्पेंड कर दिया गया है। पुलिस ने इस मामले में 6 लोगों को गिरफ्तार किया है।
यह घटना साफ तौर पर दिखाती है कि गरीब लोगों को न्याय पाने के लिए किस तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। बलात्कारियों से रिश्वत लेने और गैंगरेप की FIR दर्ज करने से इनकार करने पर पुलिस अधिकारी को सिर्फ सस्पेंड कर देना एक बहुत ही मामूली सजा है। यह गरीबों के दिलों में कानून के प्रति भरोसे की हत्या से कम नहीं है। हमारे रिपोर्टर ने गांववालों के बीच 12 घंटे बिताए और उन लोगों के बयान लिए जिनके सामने बलात्कारियों ने पुलिस इंस्पेक्टर को रिश्वत दी थी।
मेरा सवाल है कि 3 महीने का वक्त बर्बाद करने के बाद पुलिस अब क्या हासिल कर पाएगी? छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को इस मामले में दखल देना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भ्रष्ट पुलिसकर्मियों और बलात्कारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए। यदि इस मामले में जल्दी ऐक्शन न हुआ तो हो सकता है कि अदालत को उसी तरह दखल देना पड़े, जिस तरह इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाथरस गैंगरेप मामले में दिया था। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 09 अक्टूबर, 2020 का पूरा एपिसोड