सात साल से ज्यादा लंबे इंतजार के बाद आखिरकार मंगलवार को दिल्ली की अदालत ने वर्ष 2012 के चर्चित निर्भया गैंगरेप मर्डर केस में चारों दोषियों को फांसी देने के लिए डेथ वॉरंट जारी कर दिया। इन चारों बलात्कारी-हत्यारों को 22 जनवरी को सुबह सात बजे तिहाड़ जेल में फांसी दी जाएगी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सतीश कुमार अरोड़ा ने अपने आदेश में लिखा- 'जब उन्हें पर्याप्त समय और अवसर दिया जा चुका है तो फिर डेथ वॉरंट जारी करने में देरी की कोई गुंजाइश नहीं है।' इन चारों दोषियों के पास अभी-भी दो हफ्ते का वक्त है कि वे सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटिशन या राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल कर सकते हैं।
निर्भया का मामला एक सटीक उदाहण है कि हमारे देश की न्याय व्यवस्था में जघन्य अपराध करने वालों को सजा दिलाना कितना मुश्किल है। इन चारों दोषियों ने जघन्य अपराध किया था। निचली अदालत से लेकर शीर्ष अदालत तक जो तथ्य और सबूत रखे गए वो संदेह से परे नहीं थे। फिर भी न्याय में देरी हुई।
इन चारों ने ऐसा जघन्य अपराध किया जिसे सुनकर बड़े-बड़े अपराधियों की रूह कांप जाए। इस केस में गवाह और सबूत तो थे ही साथ ही देश की जनता का जबरदस्त दबाव था कि इन अपराधियों को जल्दी से जल्दी सजा दी जाए। दिल्ली पुलिस ने मामले की जांच में देर नहीं लगाई और इसके बाद भी डेथ वॉरंट पर साइन होने में सात साल लग गए।
अब हमारे दिमाग में ये सवाल उठता है कि बलात्कार पीड़िता और उसके परिवारों पर क्या गुजरती है जब उन्हें ऐसे भीषण अपराधों का सामना करना पड़ता है। लेकिन उनके मामलों को व्यापक प्रचार नहीं मिलता है। इन परिवारों के पास न तो आम जनता का कोई समर्थन है और न ही कोई बड़ा वकील इनका केस लड़ने के लिए आगे आता है। ये लोग कई वर्षों से अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं। इन्हें न्याय कब मिलेगा?
केवल निर्भया को इंसाफ मिल जाने से कुछ नहीं होगा। पूरे आपराधिक न्याय प्रणाली को इस तरह से बदलना होगा ताकि पीड़ितों के परिवारों को लंबा इंतजार न करना पड़े और अपराधी इस तरह की व्यवस्था का लाभ उठाते हुए जेलों के अंदर आराम से वक्त न बिता पाएं।
बेशक, निर्भया कांड के चारों दोषियों को फांसी देने से एक मजबूत संदेश जाएगा और अपराधियों के मन में भय पैदा होगा, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि 'देर से मिला न्याय भी अन्याय से कम नहीं' है। सात साल तक अदालतों के चक्कर लगाने के बाद निर्भया के माता-पिता को न्याय मिला। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि अभी-भी कम से कम दो हजार गैंगरेप के केस ऐसे हैं जो पिछले दस सालों से ज्यादा वक्त से देश की अदालतों में लंबित हैं।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक देश भर में पिछले दो साल के दौरान बलात्कार के 67 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई लेकिन किसी बलात्कारी को फांसी के फंदे पर नहीं लटकाया गया।
लेकिन इसके लिए सिर्फ अदालत को दोषी ठहराना ठीक नहीं है। हमारे पूरे सिस्टम में कमी है। निचली अदालत से लेकर हाईकोर्ट तक जजों की कमी है। जजों के पद खाली पड़े हैं। अदालतों में इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी है। एक सौ तीस करोड़ की आबादी वाले मुल्क में सिर्फ सात फॉरेन्सिक लैब्स हैं।
केवल न्यायपालिका को ही दोष देने से काम नहीं चलेगा। हमें पूरी व्यवस्था में बेहतरी के लिए तेजी से बदलाव लाने होंगे। पूरी व्यवस्था दुरूस्त होगी तभी जाकर ऐसे अपराधियों को सही वक्त पर और कम समय में सजा मिल पाएगी। तभी निर्भया जैसी हजारों निर्दोष पीड़ितों को जल्द से जल्द न्याय मिलेगा और बलात्कारियों को इस तरह के जघन्य कृत्य करने से पहले बार-बार सोचना होगा। (रजत शर्मा)
देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 07 जनवरी 2019 का पूरा एपिसोड