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Rajat Sharma's Blog: इस्लामिक स्टेट (K) का पाकिस्तान कनेक्शन

पाकिस्तान का कनेक्शन इस्लामिक स्टेट(खुरासान) और तालिबान दोनों से है। दक्षिण एशिया में कहीं भी आतंकवादी हमला हो, बेगुनाहों का खून बहे तो बात घूम फिर कर पाकिस्तान की सरज़मीं तक पहुंच ही जाती है।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published : August 28, 2021 16:06 IST
India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

अमेरिका ने शनिवार को अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत में ड्रोन हमला कर ये दावा किया कि उसने काबुल एयरपोर्ट पर बम धमाके की साजिश रचनेवाले इस्लामिक स्टेट (खुरासान) के आतंकवादी को मार गिराया है। गुरुवार को काबुल एयरपोर्ट के पास हुए बम धमाकों में 13 अमेरिकी सैनिकों समेत कुल 182 लोगों की मौत हो गई थी। यूएस सेंट्रल कमांड के एक अधिकारी ने कहा-'अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत में मानव रहित हवाई हमला किया गया। शुरुआती संकेत मिले हैं कि हमने अपने टारगेट को मार गिराया।'

 
अमेरिकी विदेश विभाग ने शुक्रवार को ऐलान किया कि अमेरिकी सैनिक 31 अगस्त के बाद काबुल एयरपोर्ट से निकल जाएंगे। विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा- हम 31 अगस्त तक यहां से रवाना हो जाएंगे। तबतक हम अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं। हम इस एयरपोर्ट को अफगान लोगों को वापस सौंप रहे हैं।' इसका मतलब ये हुआ कि एक सितंबर से पूरा काबुल एयरपोर्ट तालिबान के कब्जे में आ जाएगा। हालांकि तालिबान ने पहले ही काबुल एयरपोर्ट के ज्यादातर हिस्सों पर कब्जा कर लिया है और अब वह पूरी तरह से इसे अपने नियंत्रण में लेने के लिए तैयार है।
 
वहीं दूसरी ओर हजारों अफगान अभी भी देश से बाहर निकलने का इंतजार कर रहे हैं। हालांकि इसकी संभावना बहुत कम रह गई है। व्हाइट हाउस ने दावा किया है कि काबुल पर तालिबान के कब्जे से एक दिन पहले यानी 14 अगस्त तक काबुल से 1,09,200 लोगों को निकाला गया है। काबुल एयरपोर्ट पर ब्लास्ट के बाद शुक्रवार को भी करीब 4500 लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया।
 
पूरी दुनिया के लोग यह जानना चाहते हैं कि इस्लामिक स्टेट (खुरासान) ने काबुल एयरपोर्ट के पास क्यों खून-खराबा किया? आईएस (खुरासान) पाकिस्तान से ऑपरेट होता है और आतंकी नेटवर्क हक्कानी से इसका गहरा संबंध है। अब सवाल ये है कि आखिर आईएस (खुरासान) को इन बम हमलों से क्या हासिल हुआ? क्या ऐसा इसलिए किया गया कि वह अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहता था? या, क्या अमेरिका, तालिबान और आम अफगान को निशाना बनाने के पीछे बड़ी ताकतें काम कर रही थीं? 
 
गुरुवार की शाम ब्लास्ट के बाद काबुल एयरपोर्ट के बाहर का नजारा दिल दहला देने वाला था। चारों ओर शव बिखरे पड़े थे। ब्लास्ट के 24 घंटे बाद भी पीड़ितों के सैकड़ों बैग, सामान और कागजात बिखरे पड़े थे। एयरपोर्ट की दीवार से सटा हुआ नाला ब्लास्ट में हताहत हुए लोगों के खून से लाल हो गया था।
 
अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने आपको काबुल एयरपोर्ट के बाहर अपनी बारी का बेताबी से इंतजार कर रही भारी भीड़ का वीडियो दिखाया। इसमें कई लोग जगह नहीं मिलने पर नाले के पानी में भी खड़े थे। अधिकांश लोग बच्चों के साथ एयरपोर्ट के अंदर दाखिल होने की जद्दोजहद कर रहे थे। लेकिन अचानक हुए विस्फोट ने सबकुछ बदलकर रख दिया। चारों और लाशें ही लाशें थीं। मांस के लोथड़े, चीख पुकार और खून ही खून बिखरा हुआ था। 
 
ब्लास्ट के कुछ ही घंटों के बाद उसी जगह पर फिर से हजारों की भीड़ जुट गई। भीड़ एयरपोर्ट के अंदर घुसने की कोशिश करने लगी क्योंकि लोग किसी भी कीमत पर अफगानिस्तान छोड़ना चाहते हैं। अमेरिकी सैनिकों ने एंट्री के सभी गेट को वेल्डिंग करके बंद कर दिया। इस अराजकता और निराशा के बीच एक सवाल अभी भी बना हुआ है कि अब जबकि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिक चले गए हैं और अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो गया है, तालिबान और अमेरिका के बीच शांति समझौता हो चुका है तो फिर काबुल एयरपोर्ट पर हमला किसने और किस मकसद से किया? तालिबान की लीडरशिप ऐसा बिल्कुल नहीं चाहेगी कि दुनिया के सामने उसकी छवि खराब हो क्योंकि आंतकवादी हमले का सबसे ज्यादा नुकसान तालिबान को होगा। इस ब्लास्ट में तालिबान के 28 गार्ड की भी मौत हो गई। 
 
आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (खुरासान) ने अपने फिदायीन हमलावर अब्दुल रहमान अल-लोगारी की तस्वीर जारी की। लोगारी काबुल यूनिवर्सिटी का स्टूडेंट था। उसने विस्फोटक बेल्ट पहन रखी थी, और उसका चेहरा काले कपड़े से ढका हुआ था। केवल उसकी आंखें दिखाई दे रही थीं। वह एयरपोर्ट के बाहर अफगानों की भीड़ के बीच से गुजरते हुए उस जगह तक पहुंचा जहां अमेरिकी सैनिक लोगों की तलाशी ले रहे थे। उसने अपनी बारी का इंतजार किया और जैसे ही  उसकी तलाशी शुरू हुई उसी दौरान उसने ब्लास्ट कर दिया और तबाही मचा दी। 
 
उधर, नॉर्दन एलायंस के नेता और अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह ने आईएस (खुरासान) के इरादों को लेकर ट्वीट किया । उन्होंने कहा कि ' अफगानिस्तान में आईएसआईएस या DAESH फर्जी है। तालिबान और हक्कानी की स्यूसाइड स्लीपर सेल को खास टारगेट बेचे जाते हैं और फिर बेचने वाले इसकी जिम्मेदारी लेते हैं। इस तरह से आईएसआईएस के नाम पर इस नरसंहार के लिए पाकिस्तानी आईएसआई और तालिबान जिम्मेदार हैं। यहां निंदा के मायने खो गए हैं।'
 
एक अन्य ट्वीट में सालेह ने लिखा-' हमारे पास जो भी सबूत हैं उनसे पता चलता है कि आईएस(खुरासान) के सदस्यों की जड़ें तालिबान और खासतौर से हक्कानी नेटवर्क से जुड़ी हुई हैं जो कि अभी काबुल से ऑपरेट हो रहा है। तालिबान आईएआईएस से अपने संबंधों को खारिज करता है लेकिन यह कुछ उसी तरह से है जैसे पाकिस्तान क्वेटा शूरा को लेकर इनकार करता आया है। तालिबान ने अपने गुरु यानी पाकिस्तान से अच्छे सबक सीख लिए हैं। अमरुल्ला सालेह पाकिस्तान के आलोचक रहे हैं और ये उम्मीद भी थी कि उनकी ऐसी ही प्रतिक्रिया आएगी। लेकिन यह सच है कि इस्लामिक स्टेट (खुरासान) पाकिस्तान की ही आतंक फैक्ट्री का एक प्रोडक्ट है।
 
इस्लामिक स्टेट (खुरासान) का चीफ शहाब अल मुहाजिर नाम का आतंकी है जो पहले पाकिस्तान से ऑपरेट होने वाले हक्कानी नेटवर्क से जुड़ा था। इतना ही नहीं इस संगठन का एक और टॉप कमांडर असलम फारुखी पाकिस्तान का ही नागरिक है। वह पाकिस्तान के खैबरपख्तूनख्वा प्रांत के ओराकजई इलाके का रहने वाला है। आईएस (खुरासान) में शामिल होने से पहले उसने लश्कर-ए-तैयबा और तहरीके-तालिबान पाकिस्तान के लिए काम किया था।  जब उसे अफगान डिफेंस फोर्स ने नंगरहार प्रांत से गिरफ्तार किया था तो उसने यह बात मानी थी कि वह काबुल और जलालाबाद में सिराजुद्दीन हक्कानी नेटवर्क के लिए काम करता था। उसने पूछताछ में यह भी बताया था कि आईएस (खुरासान) का ठिकाना रावलपिंडी में है, जहां पाकिस्तानी सेना और आईएसआई का मुख्यालय स्थित है। फारूकी को बगराम एयरबेस जेल भेज दिया गया था, लेकिन तालिबान द्वारा काबुल पर कब्जा करने के बाद उसे अन्य कैदियों के साथ जेल से रिहा कर दिया गया।
 
हक्कानी नेटवर्क का खाकिलुर रहमान हक्कानी हमेशा आईएस (खुरासान) के टॉप लीडर्स के संपर्क में रहता है। हक्कानी के इशारे पर आईएस(खुरासान) ही अशरफ गनी के शासन के दौरान काबुल में आतंकी हमलों को अंजाम देता था। रिपोर्ट्स के मुताबिक पाकिस्तान ने जब अंतरराष्ट्रीय दबाव  के बाद 2015 में हक्कानी नेटवर्क पर बैन लगाया था तो उसी के बाद 2015 में एक विकल्प के तौर पर आईएस( खुरासान) की शुरुआत हुई थी। उसके बाद से ये ग्रुप अब तक 100 से ज्यादा आत्मघाती हमले कर चुका है। नोट करनेवाली बात ये है कि इऩ हमलों में अफगान नागरिकों, वहां की फौज के साथ नाटो सैनिकों को निशाना बनाया गया, जिसका सीधा फायदा तालिबान को मिला। 2016 में तो नाटो फोर्सेज के कमांडर जनरल जॉन निकोलसन ने ये बात ऑन रिकॉर्ड कही थी कि आईएस (खुरासान) में 70 प्रतिशत आतंकवादी पाकिस्तान से ताल्लुक रखते हैं। जो लोग इस आतंकी ग्रुप के लिए काम कर चुके थे उनका भी कहना है कि सारे बड़े कमांडर पाकिस्तान से आते थे और पाकिस्तान ही हथियारों और फंडिंग का इंतजाम करता था।
 
इस्लामिक स्टेट (खुरासान) का गठन 2015 में अफगानिस्तान के नंगरहार और कुनार प्रांतों में हुआ था।खुरासान फारसी शब्द है इसका मतलब है जहां से सूरज उगता है या उगते सूरज की भूमि। इस संगठन के लोग ईरान, दक्षिण तुर्कमेनिस्तान और उत्तरीअफगानिस्तान के कुछ इलाके को मिलाकर खुरासान कहते हैं और इनका लक्ष्य ये है कि इस पूरे खुरासान इलाके पर उनका राज हो। शुरुआत में इस्लामिक स्टेट (खुरासान) और तालिबान के बीच कोई मतभेद नहीं था मगर जैसे-जैसे तालिबान पश्चिमी देशों के करीब आने लगा, अमेरिका के साथ बातचीत की टेबल पर आया और बातचीत शुरू हुई तो खुरासान ने तालिबान से दूरी बना ली। उसने तालिबान पर जिहाद और जंग का मैदान छोड़ने का आरोप लगाया और कहा कि तालिबान ने सत्ता के लिए पश्चिमी देशों के सामने घुटने टेक दिए। इसके बाद से इस्लामिक स्टेट (खुरासान) ने खुद को कट्टर इस्लामिक ग्रुप के तौर पर पेश किया। उसने अफगान सेना और तालिबान के साथ अमेरिकी सैनिकों पर भी हमले शुरू कर दिए।
 
ये पहला मौका नहीं है जब इस्लामिक स्टेट (खुरासान) ने अमेरिकी सैनिकों पर हमला किया हो और अमेरिका ने पलटवार किया है। इससे पहले अमेरिका ने 2017 में अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत में इस्लामिक स्टेट(खुरासान) के लड़ाकों पर बम गिराया था। GBU-43B मैसिव ऑर्डनंस एयर ब्लास्ट नाम के इस बम को मदर ऑफ ऑल बम भी कहा जाता है। करीब 10 हज़ार किलो के इस बम को नंगरहार प्रांत में उन सुरंगों और गुफाओं वाले इलाकों में फेंका गया जहां इस्लामिक स्टेट(खुरासान) के आतंकी छिपे थे। माना गया कि इस हमले ने इस्लामिक स्टेट(खुरासान) की कमर तोड़ दी लेकिन गुरुवार काबुल एयरपोर्ट पर हमला करके खुरासान ग्रुप ने अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी। 
 
काबुल एयरपोर्ट पर गुरुवार को हुए हमले के बाद बहुत सारे समीकरण बदले हैं। तालिबान को लग रहा है कि कहीं नाटो फोर्सेज को तालिबान पर शक न हो इसलिए तालिबान बार-बार सफाई दे रहा है। इस्लामिक स्टेट(खुरासान) ने हमले की जिम्मेदारी ले ली है और खुरासान का पाकिस्तान कनैक्शन सामने आ रहा है। भारत ने हमले से पहले ही पाकिस्तान में इस्लामिक स्टेट(खुरासान) की गतिविधियां बढ़ने की जानकारी पूरी दुनिया के साथ शेयर की थी इसलिए पाकिस्तान भी संभलकर बोल रहा है। पाकिस्तान खुद को अफगानिस्तान का दोस्त और तालिबान का करीबी दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा है। इसीलिए पाकिस्तान के वजीरे आजम इमरान खान बार-बार कह रहे हैं कि अफगानिस्तान आजाद हो गया है। अफगानिस्तान ने गुलामी की बेडियां तोड़ दी है।
 
यहां समझने वाली बात ये है कि पाकिस्तान का कनेक्शन इस्लामिक स्टेट(खुरासान) और तालिबान दोनों से है। दक्षिण एशिया में कहीं भी आतंकवादी हमला हो, बेगुनाहों का खून बहे तो बात घूम फिरकर पाकिस्तान की सरज़मीं तक पहुंच ही जाती है। कहीं पाकिस्तान का प्रत्य़क्ष तौर हाथ होता है तो कहीं परोक्ष रूप से। कहीं स्टेट एक्टर्स होते हैं तो कहीं नॉन स्टेट एक्टर्स। और ये  साफ है कि काबुल में जो ब्लास्ट हुआ उसे इस्लामिक स्टेट (खुरासान) ने पूरी प्लानिंग और पूरी तैयारी के साथ अंजाम दिया। उसने टारगेट भी बहुत सोच समझ कर चुना। इस हमले में अमेरिकियों, तालिबान और आम अफगान नागरिकों को निशाना बनाया गया। अफगानिस्तान को लेकर भारत के लिए फिलहाल वेट एंड वॉच की रणनीति ही बेहतर होगी। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 27 अगस्त, 2021 का पूरा एपिसोड

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