Rajat Sharma’s Blog: न टेस्टिंग, न अस्पतालों में बेड? क्या ध्वस्त होने की कगार पर है दिल्ली का हेल्थ सिस्टम?
Rajat Sharma’s Blog: न टेस्टिंग, न अस्पतालों में बेड? क्या ध्वस्त होने की कगार पर है दिल्ली का हेल्थ सिस्टम?
COVID रोगियों के लिए दिल्ली के अस्पतालों में 8,000 से ज्यादा बेड्स का इंतजाम किया गया है जिनमें से 4,500 बेड सरकारी और लगभग 3,500 बेड प्राइवेट अस्पतालों में हैं।
कोरोना वायरस से संक्रमण के मामलों और मौतों में बढ़ोत्तरी के साथ ही सोशल मीडिया पर ऐसे कई मैसेज वायरल हो रहे हैं जिनमें कहा जा रहा है कि अस्पताल में बेड की आस में दिल्ली में मरीज दम तोड़ रहे हैं। टेस्टिंग, इलाज और हेल्थ सिस्टम की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। इंडिया टीवी के पत्रकारों ने राजधानी और आसपास के बड़े अस्पतालों में जाकर देखा तो पाया कि हालात उतने खराब भी नहीं हैं जितने बताए जा रहे हैं।
COVID रोगियों के लिए दिल्ली के अस्पतालों में 8,000 से ज्यादा बेड्स का इंतजाम किया गया है जिनमें से 4,500 बेड सरकारी और लगभग 3,500 बेड प्राइवेट अस्पतालों में हैं। सरकारी अस्पतालों में लगभग 2,500 बेड खाली पड़े हैं क्योंकि मरीज प्राइवेट अस्पतालों को तरजीह दे रहे हैं। प्राइवेट अस्पतालों में अधिकांश बेड भर गए हैं और इनकी मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। इन सबके बीच, सोशल मीडिया पर ऐसी अफवाहें फैलाई जा रही हैं कि दिल्ली में लगभग एक लाख लोगों की मौत हुई है और अस्पताल मौतों के वास्तविक आंकड़ों को छिपा रहे हैं।
ऐसे भी मैसेज वायरल हो रहे हैं जिनमें कहा गया है कि विभिन्न कारणों का हवाला देते हुए अस्पताल मरीजों का इलाज करने से इनकार कर रहे हैं। दिल्ली सरकार ने हल्के लक्षणों वाले लोगों से घर पर रहने और सेल्फ-ट्रीटमेंट का विकल्प चुनने की अपील की है। इस अपील की सोशल मीडिया पर ये कहकर गलत व्याख्या की जा रही है कि दिल्ली के अस्पताल अब महामारी से निपटने में असमर्थ हैं। लोग अब सवाल कर रहे हैं कि क्या हमारे अस्पतालों में बेड, ऑक्सिजन और वेंटिलेटर की कमी है। वे शवगृहों के भरा होने की अफवाहों को देखते हुए यह भी पूछ रहे हैं कि अस्पतालों के बाहर रेफ्रिजरेटेट ट्रकों को क्यों खड़ा किया गया है। सोशल मीडिया पर फैल रही अफवाहों के आधार पर यह भी पूछा जा रहा है कि क्या श्मशानों और कब्रिस्तानों के कतारें लग रही है।
इस बीच दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने शुक्रवार को राजधानी के अस्पतालों में सिर्फ दिल्ली के निवासियों के इलाज की इजाजत देने के राज्य सरकार के फैसले को पलट दिया। दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूप में अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए उन्होंने आदेश जारी किया कि किसी भी मरीज के इलाज से इसलिए इनकार नहीं किया जाएगा कि वह दिल्ली का निवासी नहीं है। मुझे लगता है कि दिल्ली और पड़ोसी राज्यों में COVID मामलों में तेजी के साथ दिल्ली के बाहर के अस्पतालों में बिस्तरों और उचित इलाज की कमी हो सकती है, और मरीज इलाज के लिए दिल्ली आने को तरजीह दे सकते हैं। इसके चलते निश्चित रूप से दिल्ली के अस्पतालों पर भारी बोझ पड़ेगा, और हो सकता है कि हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर ऐसे दबाव को झेल न पाए। यदि दूसरे राज्यों के लोग दिल्ली के अस्पतालों में भर्ती होने लगेंगे तो दिल्ली के लोगों के लिए इलाज करवाना निश्चित रूप से मुश्किल हो जाएगा।
मुझे उपराज्यपाल के फैसले के पीछे का तर्क समझ में नहीं आया। यदि दिल्ली का हेल्थ सिस्टम बिखर जाता है तो इससे किसका फायदा होगा? किसी के मन के मुताबिक फैसले लेने की बजाय हम सभी को दिल्ली के मरीजों के इलाज की सुविधाएं देने के बारे में सोचना चाहिए। केंद्र और दिल्ली सरकार दोनों को मिलकर महामारी से निपटने के लिए काम करना चाहिए। हम एक असाधारण स्थिति का सामना कर रहे हैं और ऐसे में असाधारण फैसले लेने की जरूरत है। ऐसे मुद्दों पर राजनीति की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।
इंडिया टीवी के पत्रकारों ने ग्राउंड रियलिटी चेक के लिए विभिन्न अस्पतालों का दौरा किया। गंगाराम अस्पताल में अधिकारियों ने कहा कि बहुत कम ऐसे रोगी हैं जिन्हें बिस्तरों की कमी के कारण अस्पताल से लौटाया गया है। हॉस्पिटल सुपरिटेंडेंट ने कहा कि हल्के फ्लू के लक्षण वाले लोगों को प्रारंभिक जांच के लिए अस्पताल के अंदर फ्लू वॉर्ड में भेजा जाता है और जांच के बाद घर भेज दिया जाता है। एम्स ट्रॉमा केयर सेंटर के कोरोना वॉर्ड में एम्स के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉक्टर डी. के. शर्मा ने कहा कि केवल गंभीर या क्रिटिकल मरीजों का इलाज किया जा रहा है और बाकी को हरियाणा के झज्जर में स्थित नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट, जो कि एक COVID समर्पित अस्पताल है, में भेजा जा रहा है। ट्रॉमा सेंटर में 250 बेड में से 105 बेड फुल हैं और 145 बेड खाली हैं।
LNJP अस्पताल में 2,000 बेड में से 1,200 से ज्यादा बेड खाली हैं, जबकि GTB अस्पताल में 1,500 में से 1,400 बेड खाली हैं। ये आंकड़े दिल्ली सरकार द्वारा उनके ऐप पर दिए गए डेटा पर आधारित हैं। सफदरजंग अस्पताल में लगभग सारे बेड फुल हैं, जबकि राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में 500 में से 289 बेड खाली हैं। कुल मिलाकर दिल्ली के अस्पतालों में 8,500 बेड में से 4,400 फुल हैं और 4,150 से ज्यादा बेड खाली हैं। जहां तक वेंटिलेटर की बात है तो एलएनजेपी अस्पताल में 64 में से 54 वेंटिलेटर इस्तेमाल में हैं, जीटीबी अस्पताल के 53 में से केवल 7 वेंटिलेटर पर मरीज हैं, सफदरजंग अस्पताल में 46 वेंटिलेटर और राजीव गांधी अस्पताल में सभी 29 वेंटिलेटर इस्तेमाल में नहीं हैं। दिल्ली में कुल मिलाकर 512 वेंटिलेटर में से केवल 248 इस्तेमाल में हैं और बाकी खाली हैं।
पूर्व सांसद शाहिद सिद्दिकी ने बताया था कि कैसे उनकी भतीजी को दिल्ली के कई अस्पतालों में इलाज नहीं मिल पाया जिसके बाद उनकी मौत हो गई। हमने उन अस्पतालों के हालात जानने की कोशिश की जिन्होंने इलाज से इनकार कर दिया था। साकेत में स्थित मैक्स हॉस्पिटल में सभी 200 बेड, पटपड़गंज के मैक्स हॉस्पिटल में सभी 80, शालीमार बाग के मैक्स हॉस्पिटल में सभी 56, दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल के सभी 137, होली फैमिली हॉस्पिटल में 69 में से 55 और मूलचंद हॉस्पिटल में 28 में से 25 बेड फुल थे। इस बात की जांच होनी चाहिए कि होली फैमिली और मूलचंद हॉस्पिटल ने शाहिद सिद्दिकी की भतीजी के इलाज से इनकार क्यों किया।
मैंने राजधानी में COVID के मौजूदा हालात का अंदाजा लगाने के लिए आपको दिल्ली के विभिन्न अस्पतालों के आंकड़े सुनाए हैं। कुल मिलाकर सामने यह आता है कि प्राइवेट अस्पतालों में अधिकांश बेड भरे हुए हैं जबकि सरकारी अस्पतालों में हजारों बिस्तर खाली पड़े हैं। आम लोगों का मानना है कि सरकारी अस्पतालों में मरीजों की अच्छे से देखभाल नहीं होती है। उन्हें सिस्टम पर भरोसा नहीं है, और दिक्कत की बात यही है।
दिल्ली में हालात पहले से ही बेहद खराब हैं। राजधानी में COVID मामलों (29,943) की कुल संख्या 30,000 के आंकड़े को पार करने वाली है और अभी तक 874 मरीजों की मौत हो चुकी है। दिल्ली में COVID-19 मामलों की सकारात्मकता दर 27 प्रतिशत है। पिछले 24 घंटों में 5,042 लोगों की जांच की गई जिनमें से 1,282 का रिजल्ट पॉजिटिव आया। यह एक परेशान करने वाला ट्रेंड है क्योंकि दिल्ली का हर चौथा नागरिक वायरस से संक्रमित पाया गया है। पिछले एक हफ्ते में कोरोना वायरस से संक्रमित 9,092 मरीज अस्पतालों में आए हैं। 14 मार्च से 31 मई तक कुल 470 मरीजों की जान गई, जबकि 1 जून से 7 तक यह आंकड़ा 812 हो गया। इसका मतलब है कि पिछले सप्ताह दिल्ली में कोरोना वायरस से संक्रमित 342 मरीजों की मौत हुई है।
दिल्ली सरकार और नगर निगम द्वारा दिए गए मौत के आंकड़ों में बहुत ज्यादा अंतर है। मुझे नहीं लगता कि टेक्नॉलजी के इस दौर में कोई भी सरकार आंकड़ों को तोड़-मरोड़ कर मौतों की संख्या छिपा सकती है। आंकड़ों के अंतर को सही करने की जरुरत है। एक तरफ दिल्ली सरकार का कहना है कि वायरस से 874 लोगों की मौत हुई, लेकिन निगम के रिकॉर्ड के मुताबिक कोरोना वायरस से संक्रमित 1,700 से ज्यादा मरीजों का या तो अंतिम संस्कार किया गया या दफनाया गया। इसमें कुछ कम्युनिकेशन गैप या टेक्निकल गलती मालूम होती है। इसे जल्द से जल्द ठीक करने की जरूरत है, वर्ना सोशल मीडिया पर ऐसी अफवाहें फैलने लगेंगी कि दिल्ली में शवों को दफनाने या उनके अंतिम संस्कार के लिए कोई जगह नहीं है। ऐसे कुटिल संदशों को फैलने से पहले ही रोका जाना चाहिए। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 8 जून, 2020 का पूरा एपिसोड
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