असम में सोमवार राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के दूसरे ड्राफ्ट के सार्वजनिक होने और 40 लाख से ज्यादा विदेशियों की पहचान के बाद बीजेपी और विपक्षी दलों के बीच बहस काफी तेज हो चली है। विपक्षी पार्टियां खासतौर से कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस यह आरोप लगा रही है कि एक समुदाय विशेष के लोगों को जानबूझकर एनआरसी से बाहर रखा गया है।
मंगलवार को इंडिया टीवी ने असम के धुबरी इलाके के उन स्थानीय लोगों के बारे में बताया जिनके नाम एनआरसी में नहीं हैं। इनमें से अधिकांश हिंदू हैं। यह उन आरोपों को नकारने के लिए काफी है जिसमें यह कहा जा कहा जा रहा है कि असम में बने एनआरसी में केवल मुसलमानों को निशाना बनाया गया है। वास्तविकता यह है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर असम में अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की पहचान की जा रही है। पहचान की प्रक्रिया के लिए सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बाकायदा गाइडलाइन तय की गई है। इसलिए इस मसले पर सियासत की गुंजाइश बहुत कम है।
जहां तक एनआरसी में लोगों के नाम छूटने का सवाल है, असम के 3.30 करोड़ लोगों के आंकड़े को मैन्युअली वेरीफाई करना एक बड़ा काम है और इस काम को करने वाले इंसान ही हैं, इनसे गलती तो हो सकती है। सरकार ने बार-बार कहा है कि जिन लोगों के नाम एनआरसी ड्राफ्ट में नहीं है उन्हें अगले दो महीनों में इसे ठीक कराने के लिए पूरा मौका दिया जाएगा। वे लोग अपनी आपत्ति दर्ज करा सकेंगे। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को आदेश दिया कि वह एनआरसी ड्राफ्ट में गड़बड़ियों को ठीक करे। कोर्ट ने लोगों की आपत्तियां-दावों का निपटान करने के लिए मानक परिचालन प्रक्रिया (standard operating procedures) तैयार करने का निर्देश दिया जिससे इस साल 31 दिसंबर तक अंतिम ड्राफ्ट का प्रकाशन किया जा सके। इसलिए विरोधी दल सरकार पर भले भरोसा न करे और न ही बीजेपी पर यकीन करें, लेकिन सुप्रीम कोर्ट पर तो भरोसा करना चाहिए। और इस विवाद को राजनीतिक रंग देने के बजाए उन्हें एनआरसी के फाइनल ड्राफ्ट का इतंजार करना चाहिए।
इस बात में तो किसी भी दल या संगठन में कोई शक या दो राय नहीं है कि विदेशी और अवैध प्रवासियों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर निकालना ही चाहिए। लेकिन इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि करीब सभी राजनीतिक दल इस मुद्दे पर राजनीतिक लाभ बटोरने की कोशिश कर रहे हैं।
कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस को लगता है कि एनआरसी में जिन लोगों के नाम नहीं हैं वो उनके समर्थक हैं। इसलिए ये लोग इस पूरी कवायद को मुस्लिम विरोधी के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर बीजेपी राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रीय संसाधनों से जोड़कर इस मामले को उठा रही है। ये देश के लोगों के लिए एक भावनात्मक मुद्दा है इसलिए बीजेपी को लग रहा है कि चुनावी अंकगणित में उसे लाभ मिलेगा। लेकिन ये कहना कि एनआरसी के जरिए असम में बसे दूसरे राज्यों के लोगों की पहचान कर उन्हें निकाला जाएगा या ये कहना कि इस तरह की मांग दूसरे राज्यों में भी उठ सकती है, ये ठीक नहीं है। यह राज्यों के बीच का मुद्दा नहीं है। यह उन विदेशियों की पहचान करने का मुद्दा है जो अवैध रूप से भारत में रह रहे हैं। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की बात सही है कि विरोधी दलों के नेता असली मुद्दे से लोगों का ध्यान हटाने की कोशिश कर रहे हैं और झूठी बातें फैलाकर डर का मौहाल बना रहे हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 'रक्तपात' और 'गृहयुद्ध' की चेतावनी दी है। ममता आरोप लगा रही हैं कि एनआरसी के नाम पर लोगों को बांटने की कोशिश की जा रही है। असल में ममता बनर्जी ने जो बात कही वो राजनीतिक लिहाज से गलत है। ममता की बात देश की शान्ति और सुरक्षा के हिसाब से भी सही नहीं है। ममता को यह समझना चाहिए कि अगर हिंसा होती है तो फिर इस तरह के बयानों के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा। वे काफी अनुभवी नेता हैं और जानती हैं कि किस तरह एक असंयमित टिप्पणी देश को नुकसान पहुंचा सकती है।
ये बात तो किसी से छिपी नहीं है कि बड़ी संख्या में अवैध बांग्लादेशी ममता के गृह राज्य पश्चिम बंगाल में रहते हैं। ये भी सब जानते हैं कि पश्चिम बंगाल और असम के बॉर्डर से देश में घुसे बांग्लादेशी बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और दिल्ली तक फैले हैं। कुछ राज्यों में ऐसी घटनाएं हुई हैं जब ये लोग अपराध करके बांग्लादेश भाग गए।
अवैध बांग्लादेशी प्रवासी भविष्य में देश की लिए बड़ी समस्या बन सकते हैं इसलिए इस पर विचार और इसका समाधान जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर कड़ा फैसला लिया है और सभी राजनीतिक दलों को राजनीति करने की बजाए मिल बैठकर व्यावहारिक रास्ता निकालना चाहिए कि कैसे विदेशी लोगों को वापस उनके घर भेजा जाए ताकि हमारे अपने नागरिकों को राष्ट्रीय संसाधनों पर अपना अधिकार प्राप्त हो। (रजत शर्मा)