'गॉड्स ओन कंट्री' के नाम से मशहूर केरल की राजनीति आमतौर पर दो ध्रुवों में बंटी रही है। कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट और माकपा नीत वाम डेमोक्रेटिक फ्रंट का दशकों से केरल के राजनीतिक परिदृश्य पर दबदबा रहा है। भारतीय जनता पार्टी, जिसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्थकों का समर्थन हासिल हैं, केरल में आज तक एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत पाई है।
ये सारी बातें इसलिए बताई जा रही हैं क्योंकि गुरुवार की शाम को तिरुवनंतपुरम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी रैली में जुटी भारी भीड़ हैरान करती है। रैली में लोगों ने समय-समय पर होने वाली तालियों की गड़गड़ाहट के बीच प्रधानमंत्री के भाषण को ध्यान से सुना। केरल में पिछले सप्ताह हुई प्रधानमंत्री मोदी की एक अन्य रैली में भी इसी तरह की भारी भीड़ जुटी थी। मैंने केरल की राजनीति को जानने वाले कई राजनीतिक पंडितों से बात की, और उन्होंने भी कहा कि इतनी भारी भीड़ हैरान करती है। इसका अर्थ है कि केरल का आम मतदाता प्रादेशिक और राष्ट्रीय राजनीति पर मोदी के विचारों को सुनना चाहता है।
इस सवाल पर बहस की जा सकती है कि क्या लोगों की यह भारी भीड़ वोटों में तब्दील होगी? क्या केरल में भाजपा लोकसभा में अपना खाता खोल पाएगी? इसका फैसला होना अभी बाकी है। मोदी ने गुरुवार को कर्नाटक में भी चुनावी रैलियों को संबोधित किया। प्रधानमंत्री मोदी की खासियत यह है कि वह अलग-अलग जगहों पर लोगों की भावनाओं के आधार पर मुद्दों को बदलते रहते हैं। कर्नाटक में उन्होंने रैली में आए लोगों को बताया कि कैसे कर्नाटक जेडी(एस)-कांग्रेस गठबंधन सरकार आपस में ही लड़ रही है और मुख्यमंत्री एच. डी. कुमारस्वामी को सरकार चलाने में तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
दूसरी ओर, केरल में मोदी ने भाजपा और आरएसएस समर्थकों की हत्याओं के बारे में बात की, और रैली में मौजूद लोगों को बताया कि कांग्रेस और सीपीआई (एम) ने किस तरह से ’अवसरवाद’ की राजनीति करती रही हैं। मोदी ने बताया कि कैसे ये दोनों खेमे केरल में तो प्रतिद्वंद्वी हैं, लेकिन केंद्र में एक-दूसरे का समर्थन करते हैं। मुझे लगता है कि केरल में मोदी की रैलियों में जुटने वाली भारी भीड़ आम मतदाताओं के मूड में बदलाव की तरफ इशारा कर रही है और भाजपा को इससे फायदा हो सकता है। (रजत शर्मा)
देखें, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 18 अप्रैल 2019 का पूरा एपिसोड