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Rajat Sharma’s Blog: कोरोना महामारी के कारण अनाथ हुए बच्चों की मदद कैसे करें

अगर आपको ऐसे किसी बच्चे के बारे मे पता चले जिसके माता-पिता की कोरोना की वजह से मौत हो गई है या उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है, तो आप जल्द से जल्द 1098 पर सूचित करें या पुलिस को बताएं।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: June 03, 2021 19:24 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

आज मैं भारत के उन हजारों बच्चों के बारे में बात करना चाहता हूं जो कोरोना महामारी के कारण अनाथ हो गए। ये एक साल से कम की उम्र से लेकर 18 साल तक के हैं। ये बच्चे कमजोर वर्ग से ताल्लुक रखते हैं क्योंकि उनकी बुनियादी जरूरतों की देखभाल करने वाला अब कोई नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार ने आधिकारिक तौर पर ऐसे 2,110 बच्चों के बारे में बताया है जिन्होंने अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया है या जिनके सिर पर अब कोई साया नहीं है। बिहार में 1,327 और केरल ने 952 बच्चे कोरोना महामारी के चलते अनाथ हुए हैं।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि महामारी के चलते 1,742 बच्चे अनाथ हो गए हैं, और इनमें से कम से कम 140 बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है, जबकि 7,464 बच्चों ने अपने माता-पिता में से किसी एक को खो दिया है। इन सभी बच्चों को भोजन, आश्रय, वस्त्र और शिक्षा की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों से मार्च 2020 से इस साल 29 मई तक की अवधि के दौरान अनाथ हुए बच्चों के बारे में डेटा अपलोड करने को कहा है।

फिलहाल, कोई भी इस बारे में यकीन से नहीं कह सकता कि वास्तव में कोरोना के कारण भारत में कितने बच्चे अनाथ हुए हैं। एक तरफ जहां राज्य सरकारें महामारी के चलते अनाथ हुए बच्चों के बारे में आंकड़े जुटाने के लिए हाथ-पांव मार रही हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले ही पीएम केयर्स फंड के जरिए इन बच्चों की मुफ्त शिक्षा और देखभाल के लिए कदम उठाए हैं। कोविड-19 के कारण माता-पिता दोनों या माता-पिता में से जीवित बचे या कानूनी अभिभावक/दत्तक माता-पिता को खोने वाले सभी बच्चों को 'पीएम-केयर्स फॉर चिल्ड्रन' योजना के तहत सहायता दी जाएगी।

पीएम केयर्स 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले प्रत्येक बच्चे के लिए 10 लाख रुपये का कोष बनाने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन की गई एक योजना के माध्यम से योगदान देगा। 18 वर्ष की आयु से अगले 5 वर्षों तक उच्च शिक्षा की अवधि के दौरान उनकी व्यक्तिगत जरूरतों को पूरा करने के लिए मासिक वित्तीय सहायता/छात्रवृति देने के लिए उपयोग किया जाएगा, और 23 वर्ष की आयु पूरी करने पर, उसे व्यक्तिगत और व्यावसायिक उपयोग के लिए एकमुश्त के रूप से कोष की राशि मिलेगी। 10 वर्ष से कम आयु के बच्चों को नजदीकी केन्द्रीय विद्यालय या निजी स्कूल में डे स्कॉलर के रूप में प्रवेश दिलाया जाएगा। फंड से बच्चे की फीस, यूनिफॉर्म, पाठ्य पुस्तकों और नोटबुक पर होने वाले खर्च का भुगतान किया जाएगा। 11-18 वर्ष की आयु के बच्चों को केंद्र सरकार के किसी भी आवासीय विद्यालय जैसे कि सैनिक स्कूल, नवोदय विद्यालय आदि में प्रवेश दिलाया जाएगा। उच्च शिक्षा के लिए, बच्चे को शिक्षा ऋण दिलाने में सहायता की जाएगी और इस ऋण पर लगने वाले ब्याज का भुगतान पीएम केयर्स फंड द्वारा किया जाएगा।

यह योजना बहुत अच्छी है, सरकार की नीयत भी साफ है और इस योजना से वाकई में बच्चों को सहारा मिलेगा। लेकिन सवाल ये है कि जिन बच्चों के लिए ये ऐलान किया गया है, उन तक इनका फायदा कैसे पहुंचेगा? बच्चे तो छोटे हैं, दीन दुनिया की इतनी समझ नहीं है, वे सरकार का दरवाजा खटखटाने कहां जाएंगे? क्या हम छोटे या किशोर अनाथ बच्चों से सरकारी विभागों में जाने, फॉर्म भरने, प्रमाण पत्र जमा करने और इस योजना का लाभ उठाने की उम्मीद कर सकते हैं? इसलिए मुझे लगता है ऐसे मासूम बच्चों की मदद करने के लिए सरकार के अफसरों को बच्चों के पास जाना होगा, बच्चे सरकार के पास नहीं आ पाएंगे। राज्य सरकार को चाहिए कि अपने अफसरों को इन बच्चों के पास भेजे, पूरी डीटेल इकट्ठी करे, और स्कॉलरशिप या ऐडमिशन या एजुकेशन लोन आसानी से उपलब्ध कराए। इसका पूरा दारोमदार राज्य सरकारों पर है, जिन्हें केंद्र सरकार को डेटा उपलब्ध कराना होगा।

विभिन्न राज्यों में अनाथ हुए बच्चों की संख्या को लेकर पहले से ही काफी कन्फ्यूजन है। एक तरफ जहां NCPCR ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि महामारी के दौरान कुल 9,346 बच्चे या तो अनाथ हो गए हैं, या बेसहारा हो गए हैं, तो दूसरी तरफ महाराष्ट्र सरकार की तरफ से अलग से एफिडेविट दाखिल हुआ जिसमें बताया गया कि 4,451 बच्चे ऐसे हैं जिन्होंने कोरोना की वजह से अपने माता-पिता में से किसी एक को या दोनों को खो दिया। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी के मंत्रालय ने बताया कि सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक 25 मई तक 577 बच्चे अनाथ हुए हैं। कुछ लोगों ने इन आंकड़ों को लेकर सोशल मीडिया पर सवाल उठा दिए तो मंत्रालय की तरफ से सफाई दी गई कि NCPCR की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में जो आंकड़े दिए गए वे एक मार्च 2020 से लेकर अब तक के हैं, जबकि स्मृति ईरानी के मंत्रालय ने सिर्फ 1 अप्रैल से लेकर 25 मई तक का डेटा शेयर किया था।

मुझे लगता है कि यह एक संवेदनशील मुद्दा है और इसे लेकर सियासत नहीं होनी चाहिए। केंद्र और राज्य दोनों को प्रयास करके उन सभी अनाथ बच्चों तक पहुंचना चाहिए जिन्हें रोटी, कपड़ा, मकान और शिक्षा के रूप में सरकारी मदद की जरूरत है। ऐसे बेसहारा बच्चों तक पहुंचना कोई बहुत बड़ा काम नहीं है, सिर्फ राज्य सरकारों में इच्छाशक्ति की जरूरत है। मैंने बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में अपने रिपोर्टर्स से महामारी के दौरान अनाथ हुए बच्चों का पता लगाने के लिए कहा, और जमीन पर हालात बहुत ही भयावह नजर आए। यदि हमारे रिपोर्टर कुछ ही घंटों में इन अनाथ बच्चों तक पहुंच सकते हैं, तो राज्य सरकारों की विशाल मशीनरी जल्दी से जल्दी इन बच्चों का पता लगाकर उनका रिकॉर्ड केन्द्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट तक क्यों नहीं पहुंचा सकती?

हमारी रिपोर्टर गोनिका अरोड़ा गया जिले के डुमरिया गांव में गईं और 11 साल के अनाथ बच्चे शत्रुघ्न और उसके 8 साल के भाई से मुलाकात की। इन बच्चों की मां डोमनी देवी, जो कि एक मजदूर थीं , की अप्रैल में कोरोना से मौत हो गई, जबकि इनके पिता कई साल पहले ही चल बसे थे। अब शत्रुघ्न और उसके भाई अकेले रह गए हैं। उनके पास घर के नाम पर टूटी-फूटी दीवारें हैं, उसके अंदर एक कच्ची अंधेरी कोठरी है। इस कोठरी में सामान के नाम पर एक बॉक्स है जो माता-पिता की मौत के बाद किसी NGO ने इन बच्चों को दिया है। 11 साल के इस अनाथ बच्चे को ईंट ढोने के लिए मजदूरी के रूप में 300 रुपये रोज मिलते हैं, जिससे वह मुश्किल से खुद के और अपने भाई के लिए उस खाने का इंतजाम करता है जिसे दोनों भाई मिलकर पकाते हैं। मेरा सवाल है कि सरकार की तरफ से इन अनाथ बच्चों तक कौन पहुंचेगा, उनका डीटेल केंद्र को भेजेगा, और सरकारी मदद के उन तक आसानी से पहुंचने की व्यवस्था करेगा ताकि ये दोनों बच्चे बड़े होकर सक्षम नागरिक बन सकें?

हमारे रिपोर्टर मनीष भट्टाचार्य ने जयपुर में टोंक रोड पर 17 साल के अनाथ मनन से मुलाकात की। अप्रैल के पहले हफ्ते तक मनन अपने खुशहाल परिवार में अपने माता-पिता के साथ रहता था। पहले मनन के पिता की 8 अप्रैल को कोरोना से मौत हुई, और इसके 7 दिन बात उनकी मां भी चल बसीं। अब इस दुनिया में मनन अकेला रह गया। उसे संभालने वाला या उसके सिर पर हाथ रखने वाला कोई नहीं है, फिर भी मनन ने हिम्मत नहीं हारी। माता-पिता की मौत को डेढ़ महीने से ज्यादा का वक्त हो चुका है। वह रात को अपने दोस्त के घर सोता है, वहीं खाना खाता है, क्योंकि कोरोना के कारण अब तक कोई रिश्तेदार उसके घर नहीं आया है। मनन का कहना है कि उसे सबसे ज्यादा दिक्कत इस बात की है कि माता-पिता का डेथ सर्टिफिकेट नहीं मिल रहा है, और जब तक सर्टिफिकेट नहीं मिलेगा तब तक उसे कोई सरकारी मदद नहीं मिल पाएगी। सरकार की तरफ से मनन तक कौन पहुंचेगा?

कुछ ऐसा ही मामला जयपुर के गायत्री नगर में रहने वाली राजेश सिंह की विधवा पत्नी का है। अप्रैल में राजेश सिंह की एक अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी के चलते मौत हो गई। घर में राजेश की पत्नी और 2 छोटे-छोटे बच्चे हैं। राजेश अपने परिवार में एकलौते कमाने वाले थे। राजेश की विधवा पत्नी डेथ सर्टिफिकेट बनवाने के लिए दर-दर भटक रही हैं, ताकि वह सरकारी सहायता के लिए दावा कर सकें। उनके पास कौन सरकारी कर्मचारी पहुंचेगा?

ग्रामीण इलाकों में स्थिति और जटिल है, जहां हजारों लोग कोविड से संक्रमित थे। उनमें से ज्यादातर कभी किसी अस्पताल नहीं गए, झोलाछाप डॉक्टरों से दवा ली और फिर उनकी मौत हो गई। दूसरे, अनाथ बच्चे मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए सरकारी कार्यालयों में जाने की हालत में नहीं हैं, और इसलिए सरकारी मदद के लिए गुहार नहीं लगा सकते। राजस्थान में बूंदी जिले में स्थित दलेलपुरा गांव में ही कम से कम 2 परिवार ऐसे हैं, जिनमें वयस्क लोगों की कोरोना से मौत हो गई और अब बच्चों की देखरेख करने वाला कोई नहीं बचा। एक परिवार तो ऐसा था जिसमें सिर्फ 3 भाई-बहन बचे हैं। 7 साल पहले पिता की मौत हो गई, और मां कोरोना की चपेट में आकर चल बसीं। उन्होंने गांववालों से इलाज के लिए 50 हजार रुपये का कर्ज भी लिया था। अब सबसे बड़े बेटे को अपने भाई-बहन की परवरिश भी करनी है और गांववालों का कर्ज भी उतारना है। सरकार की तरफ से इस परिवार तक कौन पहुंचेगा?

जैसलमेर से करीब 230 किमी दूर नोख गांव है। यहां एक परिवार ऐसा है जिसमें मां पहले ही चल बसी थीं, और पिता को पिछले महीने कोरोना ने छीन लिया। केवल 2 बच्चे बचे हैं जिनकी देखभाल करने वाला अब कोई नहीं है। अलवर जिले में 2 बहनों ने अपने माता-पिता को खो दिया। उनके पिता की मौत पहले ही हो चुकी थी और पिछले महीने कोरोना के चलते मां की भी जान चली गई। सरकार की ओर से एक भी अधिकारी इन दोनों अनाथ बच्चों से मिलने नहीं आया। इन बच्चों से कौन मिलेगा और आधिकारिक आंकड़ों में उनका नाम जोड़ेगा?

अजमेर में, 2 कोरोना वॉरियर्स (हेल्थ केयर वर्कर्स), चंद्रावती और उनके पति करतार सिंह, 6 दिनों के अंदर ही कोरोना के चलते चल बसे, लेकिन अस्पताल की डेथ समरी में कोरोना संक्रमण का जिक्र नहीं किया गया, जबकि इलाज के दौरान दोनों की रिपोर्ट कई बार पॉजिटिव आई थी। उनकी दो बेटियां हैं, जो अब अनाथ हैं, लेकिन क्या वे सरकारी मदद के लिए दावा कर सकती हैं?

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, मध्य प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर में 318 बच्चों के सिर से उनके माता-पिता का साया उठा गया। हमारे संवाददाता अनुराग अमिताभ ने बताया कि सिर्फ भोपाल में ही 14 ऐसे परिवार हैं, जिनमें माता-पिता दोनों की मौत हो चुकी है। वह भोपाल में 2 ऐसे भाई-बहनों से मिले, जिन्होंने 6 दिन के अंदर अपने माता-पिता को खो दिया। जयंत के पिता नरेश कुमार एक कॉन्ट्रैक्टर थे और परिवार के अकेले कमाने वाले सदस्य थे। इन बच्चों की मां इंद्राणी की कोरोना के चलते 27 अप्रैल को मौत हो गई, और 3 मई को अस्पताल में पिता ने भी दम तोड़ दिया। जयंत इंजीनियरिंग के थर्ड ईयर के स्टूडेंट हैं। लेकिन अब अचानक पिता के नहीं रहने से उनके सामने पढ़ाई को लेकर ही नहीं, गुजर-बसर को लेकर भी सवाल खड़े हो गए हैं। उनके सिर के ऊपर अब किसी का हाथ नहीं है।

इसमें कोई शक नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के प्रकोप से बेसहारा हुए बच्चों की मदद करने की जो योजना बनाई है, वह अच्छी और साइंटिफिक है, लेकिन इस योजना को लागू करना राज्य सरकारों पर निर्भर करता है। सबसे पहले, राज्य सरकारों को ऐसे सभी परिवारों तक पहुंचना होगा और अनाथ हुए बच्चों के बारे में जल्द से जल्द जानकारी जुटानी होगी, क्योंकि एक-एक दिन मायने रखता है। दूसरे, इन अनाथ बच्चों के लिए कागजी कार्रवाई सुचारू रूप से सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक राज्य सरकार को एक टास्क फोर्स की नियुक्ति करनी चाहिए, ताकि उन्हें मुफ्त राशन और मुफ्त शिक्षा के रूप में सरकारी मदद मिल सके।

अगर आपको ऐसे किसी बच्चे के बारे मे पता चले जिसके माता-पिता की कोरोना की वजह से मौत हो गई है या उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है, तो आप जल्द से जल्द 1098 पर सूचित करें या पुलिस को बताएं। हर राज्य में चाइल्ड वेलफेयर कमिटी होती है जो ऐसे बच्चों की देखभाल करती है। इन अनाथ बच्चों को खुद गोद लेने की कोशिश न करें, क्योंकि CARA (सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी) के नियमों के तहत ऐसा करना गैरकानूनी है। महिला और बाल विकास मंत्रालय के तहत CARA भारतीय बच्चों को गोद लेने के लिए नोडल बॉडी है। राज्य सरकारों की सलाह पर कारा अंतर्देशीय गोद लेने के कार्य में लगी संस्थाओं को मान्यता प्रदान करती है। कारा विदेशी दत्तक संस्थाओं को भी उनके देश के उपयुक्त कानूनों के हिसाब से सूचीबद्ध करती है जिसके बारे में भारतीय मिशन सुझाव देते हैं। इसके साथ ही कारा दत्तक प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने और इसकी बेहतर निगरानी की व्यवस्था करती है।

यदि आपसे कोई ऐसा व्यक्ति संपर्क करे जो कोरोना की वजह से अनाथ हुए बच्चों को बेचने की बात करे, उन्हें गोद लेने की बात करे तो आप स्थानीय पुलिस को तुरंत सूचित करें। अगर कोई आपको ऐसा वॉट्सऐप मैसेज भेजे जिसमें बच्चे को गोद लेने की बात कही गई हो या मदद मांगी गई हो, तो ऐसे मैसेज को बिना सोचे-समझे फॉरवर्ड न करें। ऐसे मैसेज का मकसद लोगों को फंसाना हो सकता है। अनाथ हुए ऐसे बच्चों के बारे में सूचित करने के लिए 1098 या स्थानीय पुलिस से संपर्क करें। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 02 जून, 2021 का पूरा एपिसोड

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