आज मैं आपके साथ एक परेशान करने वाली खबर शेयर करना चाहता हूं। इंडिया टीवी के रिपोर्टर मनीष प्रसाद दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल गए थे। अस्पताल के मेडिसिन डिपार्टमेंट में काम करने वाली आशा नाम की एक महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता इंडिया टीवी का माइक देखकर उनके पास आईं। आशा ने मनीष को बताया कि तबलीगी जमात के लोगों ने उनके साथ बदसलूकी की थी। तबलीगी जमात के इन सदस्यों को पिछले महीने निजामुद्दीन मरकज से सुल्तानपुरी के क्वॉरन्टीन सेंटर में ट्रांसफर कर दिया गया था। यह घटना उस वक्त की है जब जमातियों को कोरोना वायरस स्क्रीनिंग के लिए एलएनजेपी अस्पताल लाया गया था।
आशा ने बताया कि जब वह वॉर्ड के अंदर जमात के लोगों के लिए खाना लेकर गईं, तो उन्होंने उनके साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया। जमातियों में से एक ने उनकी गर्दन पकड़ ली और आशा को वह खाना खाने के लिए मजबूर करने की कोशिश की। जमात के लोगों ने उनका पीपीई कवर फाड़ दिया। खुद को बचाने के लिए आशा को वॉर्ड से बाहर भागना पड़ा। उन्होंने बताया कि घटना की कोई वीडियो या ऑडियो रिकॉर्डिंग नहीं है, लेकिन वह पूरी दुनिया को बताना चाहती थीं कि उनके साथ किस तरह बदसलूकी की गई। आशा को सलाम जो इस भयावह घटना के बावजूद जमात के रोगियों की देखभाल में लगी हैं। उन्होंने इंडिया टीवी को बताया कि शुरू में टीवी चैनलों पर जमात के लोगों की हरकतों के बारे में आने वाली खबरों पर उन्हें यकीन नहीं होता था, लेकिन अपने साथ हुई बदसलूकी के बाद उनकी सोच बदल गई।
मैं तबलीगी जमात के लोगों और उनके चीफ मौलाना साद से कुछ सवाल पूछना चाहता हूं: आशा का कसूर क्या था? क्या उसका कसूर यह था कि वह जमात के लोगों को जो खाना दे रही थी वह उनकी पसंद का नहीं था? क्या उसका कसूर यह है कि वह अभी भी जमात के रोगियों की सेवा उसी समर्पण भाव से करती है जैसे पहले करती थी? मैं मौलाना और जमात के लोगों से गुजारिश करूंगा कि वे इंडिया टीवी पर आशा का पूरा इंटरव्यू देखें, और फिर जवाब दें। उन्हें देश को बताना चाहिए कि जमातियों ने डॉक्टरों, नर्सों एवं अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ बदसलूकी क्यों की।
दो या तीन दिन पहले मैंने रिपोर्ट दिखाई थी कि इंदौर और अन्य जगहों पर जमातियों ने अस्पतालों से बाहर आने के बाद डॉक्टरों और नर्सों की तारीफ की थी। मुझे लग रहा था कि जमात के लोगों का व्यवहार बदल गया होगा, लेकिन आशा के इंटरव्यू को देखने के बाद मैंने इसे अपने सभी दर्शकों को दिखाने का फैसला किया ताकि उन्हें पता चले कि हमारे डॉक्टर, नर्स और स्वास्थ्यकर्मी किन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। जब यह घटना हुई तब आशा देवी अकेली थीं, लेकिन जमात के नेताओं को समझना चाहिए कि हम सब से ऊपर भी कोई है। उपरवाला सब देख रहा है और एक दिन आएगा जब इन लोगों को अपनी करतूतों का हिसाब देना होगा।
दिल्ली के लगभग 50 प्रतिशत मामले, तमिलनाडु के लगभग 90 प्रतिशत मामले और तेलंगाना में लगभग 60 प्रतिशत मामले तबलीगी जमात के सदस्यों और उनके संपर्क में आए लोगों से जुड़े हैं। उत्तर प्रदेश में कोरोना वायरस से संक्रमण के 1337 मामलों में से आधे से ज्यादा (668) जमात से संबंधित हैं। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में भी यही हालात हैं। अंडरग्राउंड हो चुके जमातियों को अभी भी यूपी के प्रयागराज, रायबरेली और मुरादाबाद में गिरफ्तार किया जा रहा है। लॉकडाउन को लागू हुए 29 दिन हो गए हैं और जमात के लोग अभी भी छिपे हुए हैं। पुलिस उनके छिपने की जगहों और मस्जिदों से उनको ढूंढ़-ढूंढ़कर निकाल रही है।
कुछ लोग पूछ रहे हैं कि न्यूज चैनलों पर कोरोना वायरस से जुड़ी खबरों में तबलीगी जमात का जिक्र क्यों किया जा रहा है। यह सवाल मुझे चौंका देता है। यह एक हकीकत है कि तबलीगी जमात के हजारों सदस्यों ने निजामुद्दीन मरकज में हुई सभा में हिस्सा लिया था। यह भी सच है कि जमात के लोग पूरे भारत में फैल गए, और खतरनाक वायरस के कैरियर बन गए, अन्यथा आज भारत के कोरोना वायरस के आंकड़े इससे अलग और कमतर हो सकते थे। यदि निजामुद्दीन मरकज वह ओरिजिन था जहां से कैरियर्स के जरिए यह वायरस दिल्ली से यूपी, एमपी, तेलंगाना और तमिलनाडु पहुंच गया तो हम क्यों न इसके बारे में बात करें? यदि अस्पतालों में तबलीगी जमात के कार्यकर्ता डॉक्टरों और नर्सों के साथ मारपीट करते हैं, क्वॉरन्टीन सेंटर्स के अंदर गंदगी करते हैं तो हमें इसका जिक्र क्यों नहीं करना चाहिए?
मैं आपको कुछ उदाहरण देता हूं। मंगलवार को मुरादाबाद में 36 वर्षीय डॉक्टर नियामुद्दीन की कोरोना वायरस के मरने की खबर सामने आई थी। वह उस टीम का हिस्सा थे जिसने निजामुद्दीन मरकज का सर्वे किया था। क्या हमें इस तथ्य को दबा देना चाहिए? नोएडा में कोरोना वायरस के 102 मामलों में से 57 सीजफायर कंपनी से जुड़े हैं, तो क्या हमें कंपनी का नाम लेना बंद कर देना चाहिए? बिहार के नालंदा में एक आदमी ने अपने परिवार के 16 लोगों में वायरस फैला दिया, तो क्या हमें यह नहीं कहना चाहिए कि इस शख्स के चलते उसके परिजन संक्रमित हुए हैं?
कई इस्लामिक लीडर्स ने मुझसे कहा कि एक संगठन के कारण पूरे समुदाय को बदनाम किया जा रहा है। मौलाना और उलेमा यह बात मानते हैं कि आदर्श स्थिति तब होती जब मौलाना साद सामने आते और अपने कार्यकर्ताओं से अधिकारियों के साथ सहयोग करने, स्क्रीनिंग एवं इलाज की प्रक्रिया से गुजरने की अपील करते। लोगों ने तब जमात की भूमिका की तारीफ की होती।
यह एक सच्चाई है कि जमात के मुखिया और उनके लोग अभी भी छिपे हुए हैं। मेडिकल टीमों और पुलिस पर अभी भी पथराव किया जा रहा है, उन्हें गालियां दी जा रही हैं। क्वॉरन्टीन करवाने के लिए जाने वाली मेडिकल टीम को भागने के लिए मजबूर किया जाता है। मौलाना साद कम से कम उन चंद जमातियों से कुछ सीख सकते थे, जो कोरोना वायरस के संक्रमण से उबरने के बाद खुले दिल से अपनी जान बचाने वाले डॉक्टरों और नर्सों का शुक्रिया अदा कर रहे हैं। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 21 अप्रैल, 2020 का पूरा एपिसोड