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Rajat Sharma’s Blog: पंजाब के किसान आंदोलन को वामपंथी झुकाव वाले उनके नेताओं ने कैसे हाइजैक कर लिया

जब संसद ने नए कृषि कानूनों को मंजूरी दी, तो इन वामपंथी नेताओं ने भोले-भाले किसानों को भड़काया और आंदोलन पर अपना कब्जा कर लिया।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: December 12, 2020 18:24 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

शुक्रवार की रात अपने प्राइम टाइम शो 'आज की बात' में हमने दिखाया था कि किस तरह वामपंथी झुकाव वाले और मोदी विरोधी किसान नेताओं ने दिल्ली में किसानों के आंदोलन को हाईजैक कर लिया है। ये वो किसान नेता हैं जो सरकार से टकराव चाहते हैं। ये  वो किसान नेता हैं जो किसी भी तरह से समझौता नहीं होने देना चाहते। केंद्रीय कृषि मंत्री ने शुक्रवार को भी कहा कि हम बात करने को तैयार हैं, आप हमें ये बताइए कि कानून में कमी कहां है, किसान कानून में क्या बदलाव चाहते हैं। लेकिन आंदोलन पर कब्जा करके बैठे मुट्ठी भर किसान नेताओं ने इसका जबाव नहीं दिया, बल्कि ये कहा कि आंदोलन और तेज होगा। उन्होंने घोषणा की है कि दिल्ली के रास्ते बंद कर दिए जाएंगे, रेलवे ट्रैक पर धरने होंगे जिससे कि सामान्य जनजीवन थम जाए।

ये किसान नेता कौन हैं जो बातचीत में रुकावट पैदा कर रहे हैं? वे कौन लोग हैं जिनका झुकाव साफतौर पर नक्सलियों की तरफ है? उनमें से किसने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारों का महिमामंडन किया था? इन किसान नेताओं के बारे में देश को जरूर मालूम होना चाहिए। किसान आंदोलन को लीड कर रहे बड़े चेहरों में एक नाम सतनाम सिंह पन्नू का है। सतनाम सिंह पन्नू किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के अध्यक्ष हैं। किसान मजदूर संघर्ष कमेटी का गठन 2007 में हुआ था। फिलहाल इस संगठन के 5,000 सदस्य हैं और इसका असर तरनतारन, गुरदासपुर, फिरोजपुर और अमृतसर में है।

दूसरे किसान नेता हैं दर्शन पाल सिंह, जो क्रांतिकारी किसान मोर्चा के प्रमुख हैं। दर्शन पाल सिंह वही किसान नेता हैं जिन्होंने गुरुवार को शरजील इमाम, उमर खालिद जैसे राष्ट्रविरोधी तत्वों और एल्गार परिषद के कार्यकर्ताओं की जेल से रिहाई की मांग करने वाले पोस्टरों के समर्थन में बयान दिया था। क्रांतिकारी किसान मोर्चा सीपीआई-एम के प्रति निष्ठा रखता है, और इसके 700 से ज्यादा सदस्य हैं। इस संगठन का पंजाब के बठिंडा, फिरोजपुर, फरीदकोट, संगरूर और पटियाला जिलों में असर है।

तीसरे किसान नेता जोगिंदर सिंह उगराहां हैं, जिन्होंने भारतीय किसान यूनियन एकता (उगराहां) की स्थापना की थी। इस संगठन के फेसबुक पर 46,000 फॉलोवर्स हैं। बीकेयू (उगराहां) का दबदबा पंजाब के अमृतसर, बठिंडा, बरनाला, गुरदासपुर और लुधियाना जैसे जिलों में ज्यादा है। यह संगठन लेफ्ट की तरफ झुकाव रखने वाले 34 किसान-मजदूर संगठनों को एक प्लेटफॉर्म पर लाने में कामयाब रहा है।

चौथे नंबर पर भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरी कलां हैं। पहले ये बच्चों को साइंस पढ़ाते थे और अब एक किसान नेता हैं। माना जाता है कि पंजाब में होने वाले किसान आंदोलन के पीछे इनका ही दिमाग है। सुखदेव अपने कॉलेज यूनियन के प्रेजिडेंट भी बने थे, और इनका झुकाव माओवादियों की तरफ था। वह एक बार ‘रेल रोको’ आंदोलन करते हुए बुरी तरह घायल भी हो गए थे। 

इन नेताओं में पांचवां नाम सुरजीत सिंह फूल का है, जो भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी) के स्टेट प्रेजिडेंट हैं। बीकेयू (क्रांतिकारी) की स्थापना 2004 में हुई थी और इस संगठन का झुकाव भी CPI(M) की तरफ है। फिलहाल इस संगठन से 1,000 से ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं। इस संगठन का पंजाब के बठिंडा, संगरूर, फाजिल्का, फरीदकोट, फिरोजपुर, मोगा और पटियाला जिलों पर अच्छा असर है। माओवादियों से रिश्ते होने के आरोप में पंजाब पुलिस ने एक बार उन्हें गिरफ्तार भी किया था।

सरवन सिंह पंधेर एक अन्य किसान नेता हैं, जो पहले किसान मजदूर संघर्ष कमिटी के जोनल प्रेजिडेंट थे और अब कार्यकारी उपाध्यक्ष हैं। किसान आंदोलन का एक बड़ा चेहरा बूटा सिंह बुर्ज गिल भी हैं, जो बीकेयू (दाकुंडा) के अध्यक्ष हैं और CPI(M) की तरफ झुकाव रखते हैं। बूटा सिंह 1984 से ही किसानों के लिए काम कर रहे हैं और 2004 में उन्होंने अपनी एक पार्टी भी बनाई थी। उनका संगठन अजमेर सिंह लाखोवाल के बीकेयू (लाखोवाल) के साथ मिलकर काम करता है।

अजमेर सिंह लाखोवाल बीकेयू (लाखोवाल) के प्रमुख हैं जिसकी स्थापना 1992 में हुई थी। अजमेर सिंह लाखोवाल 1994 में उस वक्त विवादों में आ गए थे, जब उन्होंने इंदिरा गांधी के हत्यारों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह की तारीफ की थी। उन्हें 1999 में ट्रैक्टर खरीद घोटाले के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था। वह शिरोमणि अकाली दल के करीबी हैं। भारतीय किसान यूनियन (लाखोवाल) के पंजाब के अलग-अलग हिस्सों में 7,000 से ज्यादा सदस्य हैं और अमृतसर, फतेहगढ़ साहिब, फरीदकोट, गुरदासपुर, होशियारपुर, लुधियाना, मनसा, पटियाला, रोपड़ और संगरूर में इसकी अच्छी पकड़ है। अजमेर सिंह लाखोवाल कई बार कनाडा घूमकर आए हैं, जहां उनका बेटा रहता है। वह अकाली दल की मदद से पंजाब मंडी बोर्ड के चेयरमैन भी चुने गए थे।

एक अन्य नेता जगमोहन सिंह हैं, जो पंजाब सरकार के को-ऑपरेटिव डिपार्टमेंट में काम करते थे। वह पहले बीकेयू (एकता) में थे और इस समय बीकेयू दाकुंडा के महासचिव हैं। निर्भय सिंह धूडिके, जो कीर्ति किसान संघ के प्रमुख हैं, का सीपीआई (एमएल) के साथ करीबी रिश्ता है। उनके संगठन का अमृतसर, पठानकोट, जालंधर और संगरूर में अच्छा असर है। उनके संगठन में 5,500 से भी ज्यादा सदस्य हैं और पंजाब में एक बस जलाने के लिए उन्हें 3 साल की सजा भी हो चुकी है। माओवादी गतिविधियों के सिलसिले में पुलिस ने एक बार उनके घर पर छापा भी मारा था, लेकिन वह भाग निकले थे।

कमलप्रीत सिंह पन्नू किसान संघर्ष कमिटी की पंजाब इकाई के प्रमुख हैं। इस संगठन की स्थापना 2000 में हुई थी। किसान संघर्ष कमिटी से 1,500 से ज्यादा लोग जुड़े हैं और इस संगठन का झुकाव CPI(M) की ओर है। कंवलप्रीत सिंह पन्नू के संगठन का दबदबा कपूरथला, जालंधर, तरनतारन और गुरदासपुर जिलों में है। सतनाम सिंह अजनाला नाम के एक अन्य नेता हैं, जो रिवॉल्यूशनरी मार्क्सिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया से जुड़े हैं। वह बठिंडा, रोपड़, संगरूर और तरन तारन जिलों में जम्हूरी किसान सभा चलाते हैं। सतनाम सिंह अजनाला पार्टी के मुखिया मंगत राम के खास माने जाते हैं। 

बलदेव सिंह निहालगढ़ CPI की किसान इकाई अखिल भारतीय किसान सभा को चलाते हैं और बठिंडा, मोगा, मानसा और पटियाला में उनके काफी समर्थक हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण किसान नेता रुलदू सिंह मानसा हैं जो सीपीआई की तरफ झुकाव रखने वाले संगठन पंजाब किसान यूनियन को चलाते हैं। इस संगठन के लुधियाना, मानसा और मुक्तसर में 2,500 सदस्य हैं। हन्नान मोल्लाह सीपीआई(एम) के बड़े नेता हैं और अखिल भारतीय किसान सभा के प्रमुख हैं। वह पश्चिम बंगाल से सीपीआई(एम) के सांसद थे और उन्होंने कुल 8 बार लोकसभा चुनाव जीता था। इस समय वह अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के एक वरिष्ठ नेता हैं।

संक्षेप में कहें तो पंजाब के अधिकांश किसान नेताओं की मॉडरेट और एक्सट्रिमिस्ट, दोनों तरह की लेफ्ट पार्टियों के प्रति निष्ठा है। पंजाब की राजनीति में एक दौर था, जब हरकिशन सिंह सुरजीत सहित कई कम्युनिस्ट नेताओं की किसानों के संगठनों पर अच्छी पकड़ थी। हालांकि, वर्तमान में इन किसान नेताओं का किसानों की भलाई से कम ही लेना-देना है और फिलहाल ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कृषि नीतियों के विरोध के अपने राजनीतिक एजेंडे पर चल रहे हैं। एक वक्त था जब ये वामपंथी किसान नेता आढ़तियों के खिलाफ थे, बिचौलियों को किसानों का खून चूसने वाला कहते थे, लेकिन अब उन्होंने किसानों के आंदोलन को गति देने के लिए अपने साथ बड़ी संख्या में आढ़तियों को भी शामिल किया है।

जब संसद ने नए कृषि कानूनों को मंजूरी दी, तो इन वामपंथी नेताओं ने भोले-भाले किसानों को भड़काया और आंदोलन पर अपना कब्जा कर लिया। जब-जब सरकार ने अपने और किसानों के बीच पुल बनाने की कोशिश की, इन वामपंथी नेताओं ने उसमें पलीता लगा दिया। इन्होंने न बात आगे बढ़ने दी, और न ही रास्ता निकलने दिया। वे किसानों के आंदोलन की दिशा बदलने में भी कामयाब हो गए, और गुरुवार को उन्होंने सामने आकर राष्ट्रविरोधी तत्वों और प्रो-नक्सल नेताओं की रिहाई के लिए किसानों से नारे लगवाए। शुक्रवार को किसानों को जब ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग के लोगों शरजील इमाम, उमर खालिद और वरवरा राव एवं गौतम नवलखा जैसे नक्सली समर्थक बुद्धिजीवियों की असलियत पता चली, तो उन्होंने इनके पोस्टर, तख्तियां और बैनर खुद ही हटा दिए।

लेकिन चिंता की बात यह है कि ये राष्ट्रविरोधी तत्व और उनके समर्थक अभी भी किसानों के बीच मौजूद हैं और एक संगठित तरीके से काम कर रहे हैं। इन तत्वों का झुकाव खालिस्तानी और कश्मीरी अलगाववादियों के साथ-साथ माओवादियों की तरफ है जो बगावत में लगे हुए हैं। खुफिया एजेंसियों ने आगाह किया है कि ये तत्व किसानों के आंदोलन का फायदा उठाकर अशांति और हिंसा को जन्म दे सकते हैं।

सरकार और किसानों के बीच संघर्ष की बात ही बहुत डराने वाली और परेशान करने वाली है, इसलिए अब ज्यादा सावधानी की जरूरत है। ईश्वर न करें, कभी भी ऐसी परिस्थिति पैदा हो। आंदोलनकारी किसानों को तीन मोर्चों पर सतर्क रहने की जरूरत है। पहला किसानों को ध्यान रखना होगा कि कहीं देश विरोधी ताकतें किसान आंदोलन में घुसकर अपने खतरनाक इरादों को अंजाम देने में कामयाब न हो जाएं। दूसरी ध्यान रखने वाली बात ये है कि जिन लोगों के राजनीतिक मंसूबे हैं, जो किसानों को ढाल बनाकर आगे बढ़ रहे हैं, उनसे किसानों को दूर रहना होगा। और तीसरा मोर्चा कोविड-19 का है, क्योंकि यदि आंदोलन लंबा खिंचता है तो यह महामारी किसानों के लिए घातक साबित हो सकती है। उन्हें जितनी जल्दी सही सलाह मिलेगी, उतना ही बेहतर होगा। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 11 दिसंबर, 2020 का पूरा एपिसोड

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