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Rajat Sharma’s Blog: बिहार के मतदाताओं पर चला मोदी का जादू

इस चुनाव में नरेंद्र मोदी बड़े गेम चेंजर साबित हुए । उन्होंने एक बार फिर साबित किया कि वो हवा का रुख अपनी तरफ मोड़ने का हुनर अच्छी तरह जानते हैं। बिहार के चुनाव पर पूरे देश की नजर थी।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published : November 11, 2020 17:07 IST
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Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

बिहार की जनता ने अपना फैसला सुना दिया है। मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में हुए उपचुनावों के नतीजे भी आ चुके हैं। इन चुनाव नतीजों में भारतीय जनता पार्टी को जबरदस्त जीत मिली है। अगर एक लाइन में कहा जाए तो एक बार फिर ये तय हो गया कि देश की जनता को नरेंद्र मोदी के नाम पर और उनके काम पर यकीन है। बिहार में मंगलवार को आधी रात के आसपास चुनाव आयोग ने सभी नतीजों का औपचारिक ऐलान कर दिया। एनडीए को 125, महागठबंधन 110 और बाकी की 8 सीटें एआईएमआईएम और अन्य के खाते में गई हैं।

अगर विश्लेषण करें तो इस चुनाव की पहली और सबसे बड़ी बात तो ये है कि एक बार फिर साबित हुआ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व पर मतदाताओं का भरोसा पहले के मुकाबले बढ़ा है। दूसरी बात ये है कि बीजेपी पहली बार बिहार में 74 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी है (तेजस्वी के नेतृत्व वाली आरजेडी को 75 सीटें मिली हैं)। अब तक छोटे भाई की भूमिका में रहने वाली बीजेपी अब बिहार सरकार के अंदर बड़े भाई की भूमिका में रहेगी। बिहार में बीजेपी अकेली ऐसी पार्टी है, जिसकी सीटों की संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ है। बाकी सभी पार्टियों की सीटों की संख्या कम हुई है। नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड  की हालत तो सबसे खराब है। बहुत मुश्किल से वह 43 सीटें जीतने में सफल रही है। जेडीयू अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। हाल के दिनों में यह जनता दल यूनाइटेड का सबसे खराब प्रदर्शन रहा है। ये नीतीश कुमार के लिए बड़ा झटका है। 

तीसरी बात ये है कि चुनाव नतीजों से लगता है कि बिहार में जाति और धर्म के आधार पर वोटिंग तो हुई लेकिन विकास की बात और जंगलराज का डर भी मतदाताओं पर हावी रहा। और इन सबका फायदा बीजेपी को हुआ। नीतीश कुमार से लोगों की नाराजगी थी लेकिन लोग लालू के 'जंगलराज' को भूले नहीं हैं। वहीं तेजस्वी बिहार के लोगों को ये यकीन नहीं दिला पाए कि दोबारा जंगलराज नहीं आएगा। 

चौथी बात ये है कि इस चुनाव में चिराग पासवान भी एक फैक्टर थे। हालांकि नतीजों से यह साफ हो गया कि बिहार के लोगों को कन्फ्यूजन पसंद नहीं है। चुनाव में चिराग कन्फ्यूज्ड दिखे। उन्होंने बिहार में खुद को एनडीए से अलग कर लिया और चुनाव मैदान में उतरे। वो मोदी के साथ थे लेकिन नीतीश के खिलाफ थे जबकि नीतीश और मोदी साथ-साथ थे। इसलिए जनता को चिराग तले अंधेरा दिखा। हालांकि चिराग ने एनडीए को और खासकर जेडीयू को काफी नुकसान पहुंचाया।

पांचवीं बात ये है कि असदुद्दीन ओवैसी, उपेन्द्र कुशवाहा और पप्पू यादव चुनाव तो बीजेपी के खिलाफ लड़ रहे थे लेकिन सबका फायदा बीजेपी को मिला। 

छठी बात ये कि राहुल गांधी ने तेजस्वी की मदद से बिहार में कांग्रेस को मजबूत करने की कोशिश की लेकिन नतीजा ये हुआ कि बिहार में कांग्रेस पहले से भी कमजोर हो गई। कांग्रेस का स्ट्राइक रेट बेहद कम रहा और इससे महागठबंधन को काफी नुकसान झेलना पड़ा। 70 सीटों पर चुनाव लड़कर कांग्रेस महज 19 सीटें पाने में सफल रही। 

सातवीं बात ये कि इस बार वाम दलों का स्ट्राइक रेट सबसे अच्छा रहा। महागठबंधन में शामिल वाम दलों ने तेजस्वी की भीड़ जुटाने की ताकत का पूरा फायदा उठाया और 16 सीटें जीतने में कामयाब रहे। सीपीआई-माले-लिबरेशन को 12 सीटें मिली जबकि सीपीआई और सीपीआई-एम को दो-दो सीटें जीतने में कामयाब रही।

अंत में एक बात और साफ हुई कि एग्जिट पोल हों या ओपिनियन पोल, कोई भी मतदाताओं और खासतौर से महिला मतदाताओं के दिल की बात समझने का दावा नहीं कर सकते। इस बार भी बिहार में एग्जिट पोल पूरी तरह से गलत साबित हुए।

इस चुनाव में नरेंद्र मोदी बड़े गेम चेंजर साबित हुए । उन्होंने एक बार फिर साबित किया कि वो हवा का रुख अपनी तरफ मोड़ने का हुनर अच्छी तरह जानते हैं। बिहार के चुनाव पर पूरे देश की नजर थी। कोरोना महामारी की त्रासदी के बीच ये पहला चुनाव था। बिहार राजनीतिक तौर पर बहुत सक्रिय और जागरूक राज्य माना जाता है। शुरुआत में यह दावा किया जा रहा था कि बिहार में बदलाव की तैयारी है। जिस तरह की तस्वीरें आ रही थीं, जिस तरह की बातं सुनाई दे रही थी, उससे ऐसा लग भी रहा था। लेकिन जब 27 अक्टूबर को नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार में उतरे उसके बाद हवा का रूख बदला।  किसी ने नहीं सोचा था कि बिहार में बीजेपी अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन करेगी। प्रदेश में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बन जाएगी। नरेंद्र मोदी की रैलियों ने चुनाव का माहौल पूरी तरह बदल दिया। मोदी की रैलियों और उनके भाषण से चुनाव के दूसरे और तीसरे चरण में चुनाव का रुख बदल गया। नरेंद्र मोदी ने 12 जिलों में रैलियां की जिनसे 101 सीटों पर सीधा असर पड़ा। इन 101 सीटों में से एनडीए ने 59 सीटों पर जीत दर्ज की।

असल में जब तक नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार में नहीं उतरे थे उस वक्त तक महागठबंधन मजबूत दिख रहा था। मोदी ने जब प्रचार शुरू किया तो पहले चरण में उन्होंने माहौल को समझा। उस वक्त तेजस्वी यादव लोगों से 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा कर रहे थे, राहुल गांधी प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर मोदी पर हमला कर रहे थे, चिराग पासवान कन्फ्यूजन पैदा कर रहे थे। मोदी ने पूरे माहौल को अच्छी तरह समझा और इसके बाद दूसरे और तीसरे चरण की रैलियों में उन्होंने बिहार के लोगों को 'जंगलराज' की याद दिलाई। बार-बार कहा कि बिहार के लोग सब सहन कर लेंगे लेकिन बिहार में वो दिन वापस नहीं देखना चाहेंगे जब अपहरण और रंगदारी आम बात थी।

मोदी ने 'जंगलराज', 'जंगराज के युवराज', 'किंडनैपिंग के किंग','दो-दो युवराज' (तेजस्वी और राहुल गांधी) ऐसे तमाम जुमलों का इस्तेमाल किया जो सीधे जनता की समझ में आए। पीएम मोदी ने लोगों को गरीब कल्याण पैकेज की याद दिलाई। मुफ्त राशन की योजना की याद दिलाई। महिलाओं के जन धन खातों में 500-500 रुपये की किश्त भेजे जाने की बात कही। मोदी ने ये भी कहा कि लोगों को दिक्कत तो हुई है लेकिन संकट ही ऐसा था जिससे पूरी दुनिया परेशान थी। सरकार ने लोगों की मुश्किलों को दूर करने की पूरी कोशिश की। मोदी का संदेश स्पष्ट तौर पर जनता के बीच गया और इसका असर दिखा दिया और लोगों ने मोदी की बात पर यकीन किया। उधर, नीतीश की जेडीयू ने भी महिला मतदाताओं को लुभाने की पूरी कोशिश की। 

इस सफलता का श्रेय भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को भी जाता है।  नड्डा बिहार को और बिहार की राजनीति को अच्छी तरह समझते हैं, क्योंकि वो छात्र जीवन में बिहार में रहे। नड्डा ने बिहार में 22 बड़ी जनसभाएं और कई रोड शो किए। उन्होंने सैकड़ों छोटी सभाएं की। बिहार में टिकटों के बंटवारे लेकर पार्टी के कार्यरर्ताओं और नेताओं को एकजुट रखने का काम  नड्डा ने बहुत ही समझदारी से किया।  नड्डा का बिहार से जमीनी जुड़ाव रहा है। वो पटना में पैदा हुए, पटना के सेंट जेवियर्स स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की। फिर पटना यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया। नड्डा बिहार के मिजाज को अच्छी तरह समझते हैं और ये हमने नड्डा की चुनावी रैलियों में भी देखा जब वो खांटी बिहारी अंदाज में लोगों से बात करते दिखाई दिए। वो मिथिलांचल में लोगों से मैथिली में बात करते दिखाई दिए। बड़ी बात ये है कि इस बार नड्डा ने बिहार की जंग जमीन पर अकेले लड़ी। अमित शाह कोरोना पॉजिटिव थे इसलिए बिहार नहीं जा सके। प्रचार की शुरूआत में ही सुशील कुमार मोदी कोरोना के शिकार हो गए। फिर शाहनवाज हुसैन और राजीव प्रताप रूड़ी भी कोरोना की चपेट में आ गए। ऐसे में नड्डा ने अकेले मोर्चा संभाला और पार्टी के लिए उनकी मेहनत रंग लाई। 

तेजस्वी यादव ने जबरदस्त मेहनत की। एक दिन में 19-19 रैलियां की। दरअसल उनके पिता लालू यादव जेल में हैं और उनकी पार्टी के कई बड़े-बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। चुनाव का पूरा दारोमदार तेजस्वी पर था। सबको साथ लेकर चलना था। सहयोगियों की जिद पूरी करनी थी। नीतीश कुमार और सुशील मोदी जैसे पुराने और अनुभवी नेताओं से मुकाबला करना था। तेजस्वी चतुर हैं। जानते थे कि अकेले तो नैया पार होना मुश्किल है इसलिए उन्होंने गठबंधन बनाया। लेफ्ट को अपने साथ लिया राहुल गांधी पर भी यकीन किया। 10 लाख रोजगार के वादे से युवाओं को लुभाने की पूरी कोशिश की लेकिन चुनाव प्रचार में नरेंद्र मोदी के उतरने के बाद तेजस्वी का खेल बिगड़ गया।  

चिराग के लिए मैं यही कहूंगा कि सियासत में सफलता के लिए महत्वाकांक्षी होना जरूरी है, लेकिन इसके साथ-साथ अनुभव और संयम भी होना चाहिए। चिराग पासवान युवा हैं, अच्छा बोलते हैं, उनमें जज्बा है, लड़ना जानते हैं लेकिन सब्र करना भी  जरूरी था। चूंकि रामविलास पासवान का अचानक निधन हो गया इसलिए उनके अनुभव का जो फायदा चिराग को होता था उसकी कमी दिखाई दी। जल्दबाजी में अकेले जाने का फैसला किया और नतीजा क्या हुआ? एलजेपी केवल एक सीट जीत पाई। ‘हम तो डूबेंगे सनम तुमको ले डूबेंगे’ वाली कहावत चरितार्थ हो गई। उनकी वजह से NDA के सहयोगी दलों को काफी नुकसान हुआ। अगर चिराग पूरी तरह से NDA के साथ होते तो NDA  150 से ज्यादा सीटें आराम से जीत सकता था। चिराग पासवान ने अगर तेजस्वी के साथ जाने का फैसला किया होता तो भी बात आर-पार वाली होती। शायद तेजस्वी आसानी से सीएम बन जाते। लेकिन चिराग ने मोदी के साथ रहने और नीतीश का विरोध करने फैसला किया और नतीजा सबके सामने है।  चिराग ने नीतीश कुमार के साथ साथ कई जगह बीजेपी को भी नुकसान पहुंचाया ।

कांग्रेस की बात करें तो प्रचार के दौरान राहुल गांधी के भाषण के अंश हमने कई बार आपको सुनवाए। इसलिए अब ये बताने की जरूरत नहीं है कि राहुल गांधी का प्रचार उल्टा क्यों पड़ा। राहुल को बिहार के मुद्दों की समझ नहीं है। वो हर जगह नरेंद्र मोदी को निशाना बनाते हैं। कांग्रेस के नेताओं ने बार-बार समझाने की कोशिश की कि मोदी पर हमला करने से अन्ततोगत्वा कांग्रेस को ही नुकसान होता है। मोदी ने अपने भाषण में इसकी तरफ इशारा किया था। उन्होंने कहा था कि 'एक युवराज हैं। वो यूपी में दूसरे युवराज के साथ घूमे थे। वहां उनकी नैया डुबा आए। अब वही युवराज बिहार के युवराज के साथ घूम रहे हैं। इनकी भी नैया डुबाएंगे।' 

असदुद्दीन ओवैसी भले ही कहें कि उन्होंने बीजेपी को, NDA को तगड़ी चुनौती दी, वो मोदी के खिलाफ हैं। लेकिन हकीकत तो यही है कि ओवैसी ने कांग्रेस और RJD का काम बिगाड़ा। ओवैसी की वजह से भले ही बीजेपी को फायदा मिला हो लेकिन ये भी सही है कि बिहार में पांच सीटों पर ओवैसी की पार्टी ने जीत दर्ज की है। पहले ओवैसी की पार्टी सिर्फ हैदराबाद तक सीमित थी। इसके बाद पहले महाराष्ट्र में ओबैसी की पार्टी ने दो सीटें जीतीं और अब उनकी पार्टी ने बिहार में पहली बार पांच सीटों पर जीत दर्ज की है। मुसलमानों के नाम पर सियासत करने वाली पार्टियों के लिए ओवैसी बड़ी चुनौती बन सकते हैं। 

उधर, मध्य प्रदेश विधानसभा उपचुनावों में भाजपा ने 28 सीटों में से 19 सीटें जीत ली है। प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सरकार बनी रहेगी ये बीजेपी ने पक्का कर लिया है। उत्तर प्रदेश में हाथरस जैसी घटना के बाद राहुल और प्रियंका की कोशिश के बावजूद बीजेपी ने सात में से 6 सीटें जीत ली। गुजरात में सारी की सारी 8 सीटें बीजेपी ने जीती। मणिपुर और तेलंगाना में भी बीजेपी की जीत ने लोगों को अचरज में डाल दिया। ये कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। इन सारी जीतों का सबसे बड़ा फैक्टर मोदी की लोकप्रियता है और ये लोकप्रियता मोदी के काम के आधार पर बनी है। आज भी विरोधी दलों के पास मोदी का कोई जवाब नहीं है। आज की इस जीत का फायदा बीजेपी को आने वाले पश्चिम बंगाल के चुनाव में होगा। ये ममता बनर्जी के लिए खतरे की घंटी है। बंगाल और असम में बीजेपी अब नए हौसले के साथ चुनाव लड़ेगी। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 10 नवंबर, 2020 का पूरा एपिसोड

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