यह वास्तव में एक चिंताजनक घटना है। उत्तर प्रदेश के कासगंज कस्बे में दोनों समुदाय के युवाओं ने गणतंत्र दिवस पर गलियों में निकलने को लेकर एक-दूसरे को सोशल मीडिया के जरिए चुनौती दी थी। गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा से ठीक एक हफ्ते पहले एक-दूसरे को धमकियां दी गई थीं। स्थानीय पुलिस अधीक्षक (SP), यूपी पुलिस प्रमुख, मुख्यमंत्री और यहां तक कि गृह मंत्री को भी संभावित हिंसा के बारे में सोशल मीडिया के जरिए सूचित किया गया था, लेकिन पुलिस ने समय पर इसे रोकने का प्रयास नहीं किया। जिले के एसपी ने एक युवक को फेसबुक पर जवाब दिया कि वे 'व्यस्त' हैं।
26 जनवरी को हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद सोशल मीडिया एक बार फिर सक्रिय हुआ। इस बार, एक दूसरे पर दोष मढ़ने के लिए नकली तस्वीरों और नकली ऑडियो का सहारा लिया गया। झूठे वीडियो बनाकर इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया। दोनों समुदायों की भावनाओं को भड़काया गया लेकिन पुलिस और नेशनल मीडिया ने हालात को बेकाबू होने से बचा लिया। जिन लोगों को खरोंच तक नहीं आई उनके मरने की झूठी खबरें तस्वीरों के साथ वायरल की गई। एक युवक जिसका शव सोशल मीडिया पर दिखाया जा रहा था, उसे पुलिस मीडिया के सामने लेकर आई।
आमतौर पर व्हाट्स एप (WhatsApp), ट्विटर (Twitter), फेसबुक (Facebook) इत्यादि लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने का जरिया है। इसके जरिए लोग विभिन्न मुद्दों को उठाते हैं। लेकिन अगर सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल हो तो यह समाज में आग भी लगा सकता है। इसलिए मैं बार-बार आपसे कहता हूं कि सोशल मीडिया पर जो खबरें बताई जाती हैं.. जो वीडियो वायरल किए जाते हैं या जो भड़काऊ तस्वीरें पोस्ट की जाती हैं, उनपर यकीन न करें। इन तस्वीरों-वीडियो या खबरों में कितना झूठ है और कितना सच, इसका कोई पैमाना नहीं है। इसे प्रमाणित करने का कोई जरिया नहीं है। इंडिया टीवी में हमारी हमेशा यह कोशिश होती है कि पहले हम सभी खबरों को वेरीफाई करें उसके बाद प्रसारित करें और यह आसान काम नहीं है। (रजत शर्मा)