आज मैं आपके साथ एक अच्छी खबर शेयर करना चाहता हूं कि कैसे जमीयत उलेमा-ए-हिंद के नेता मौलाना महमूद मदनी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में फैले 200 से भी ज्यादा मदरसों में आधुनिक शिक्षा शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं। यह उन मुस्लिम बुद्धिजीवियों की पहल पर किया जा रहा है जो चाहते हैं कि उनके समुदाय के युवा मदरसों में विज्ञान, गणित, कंप्यूटर और अन्य आधुनिक विषयों को सीखें, उच्च शिक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं में भाग लें और उन्हें करियर काउंसलिंग भी मिले।
जमीन पर इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। देशभर के मदरसों के लिए बने इस प्लान के पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के 100-100 मदरसों को चुना गया है। सोमवार को यूपी, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के शिक्षकों और कोऑर्डिनेटर्स पुणे के एचजीएम आज़म कॉलेज ऑफ एजुकेशन के कैंपस में आयोजित एक ओरिएंटेशन प्रोग्राम में भाग लिया। 20 दिन के इस कोर्स में उनको बताया जाएगा कि छात्रों को आधुनिक शिक्षा कैसे दी जाए।
यह तो बस एक छोटी-सी शुरुआत है। मदरसों के शिक्षकों और कोऑर्डिनेटर्स के पहले बैच की ट्रेनिंग शुरू हो चुकी है। मौलाना मदनी ने इंडिया टीवी के रिपोर्टर को बताया कि जमीयत ओपन स्कूल का कॉन्सेप्ट मदरसों में दी जा रही शिक्षा को बदलने में मदद करेगी। मदरसों में अब तक छात्रों को सिर्फ इस्लाम की दीनी तालीम दी जाती थी, लेकिन आधुनिक शिक्षा की शुरुआत के साथ युवाओं को अंग्रेजी, हिंदी, गणित, विज्ञान, कंप्यूटर और अन्य विषयों को पढ़ाया जाएगा ताकि वे कक्षा 10 और 12 की बोर्ड स्तर की परीक्षाओं में बैठ सकें। मदनी ने कहा कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग (NIOS) मदरसों में शिक्षा को बदलने में जमीयत की मदद कर रहा है।
भारत के मदरसों में आमतौर पर उर्दू, अरबी और फारसी में इस्लाम की दीनी तालीम दी जाती है, लेकिन फाजिल, आलिम और मुफ्ती की डिग्री लेकर जो छात्र बाहर निकलते हैं, वे सिर्फ अरबी और इस्लामिक अध्ययन एवं धर्मशास्त्र में ही बीए और एमए करने की पात्रता रखते हैं।
भारत में 40,000 से ज्यादा मदरसे हैं, और लाखों मुस्लिम छात्र हर साल अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद इन मदरसों से बाहर निकलते हैं। आधुनिक शिक्षा के अभाव के चलते उच्च स्तर पर प्रतियोगिता करने में उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। भारत में 19.5 करोड़ से भी ज्यादा मुसलमान रहते हैं और उनमें से लगभग 20 प्रतिशत निरक्षर हैं। विभिन्न पैमानों पर शैक्षणिक पिछड़ेपन की बात करें तो भारत के मुसलमानों की स्थिति अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के जितनी या उनसे भी ज्यादा खराब है।
एनएसओ के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में केवल 48 प्रतिशत मुस्लिम छात्र कक्षा 12 तक पढ़ पाते हैं, जबकि 12वीं कक्षा से आगे यानी कि कॉलेज और यूनिवर्सिटी तक सिर्फ 14 प्रतिशत ही पहुंच पाते हैं। मौजूदा समय की बात करें तो भारत में 18 ऐसे राज्य हैं जिन्हें मदरसों में शिक्षा के विकास के लिए केंद्र सरकार की तरफ से फंड मिलता है।
इंडिया टीवी की रिपोर्टर रुचि कुमार ने कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों से बात की और पाया कि जमीयत ने पहले ही मेरठ, गाजियाबाद, हापुड़, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, शामली, बागपत, बुलंदशहर, मुरादाबाद, रामपुर और अमरोहा के लगभग 10,000 ऐसे मदरसों की पहचान कर ली है, जहां बढ़िया बुनियादी ढांचे जैसे कि अच्छी इमारत और क्लासरूम के साथ-साथ शिक्षा प्रदान करने के लिए उच्च तकनीक के उपकरण देने की योजना है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को पेश हुए अपनी सरकार के वार्षिक बजट में मदरसों के विकास के लिए 479 करोड़ रुपये रखे हैं।
मदरसों का तेजी से आधुनिकीकरण वक्त का तकाज़ा है। मदरसों को अब ऑनलाइन सिस्टम के ज़रिए फंड दिये जा रहे हैं। इसके कारण ग़लत हाथों में पैसे जाने पर लगाम लगा दी गई है। केंद्र और राज्य की सरकारें केवल पैसे दे सकती हैं, लेकिन यह मुस्लिम समाज के संस्थानों और संगठनों पर निर्भर करता है कि इस पैसे का सही इस्तेमाल कैसे हो।
मौलाना मदनी ने एक अच्छी शुरुआत की है। उन्हें पता है कि मदरसों से आलिम, फाजिल और मुफ्ती की डिग्री लेकर निकले मुस्लिम छात्रों को इस्लामी संस्थाओं और मस्जिदों में तो काम मिल सकता है, लेकिन इन डिग्रियों से सरकारी या प्राइवेट सेक्टर में नौकरी नहीं मिल सकती। मदरसों से जो बच्चे आलिम की डिग्री लेकर यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने जाते हैं, उन्हें कुल मिलाकर जामिया मिलिया, AMU, उस्मानिया यूनिवर्सिटी या मौलाना आजाद यूनिवर्सिटी जैसी कुछ यूनिवर्सिटी में ही ऐडमिशन मिल पाता है। मौलाना महमूद मदनी ने मदरसों को आधुनिक बनाने की शुरुआत करके एक अच्छा काम किया है। इसके लिए उनकी तारीफ होनी चाहिए। (रजत शर्मा)
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