पिछले कुछ दिनों से मुझे खबरें मिल रही थीं कि दिल्ली में शाहीन बाग आंदोलन को फिर से जिंदा करने की कोशिशें की जा रही हैं। दर्शकों को याद होगा कि इस आंदोलन को दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में मुस्लिम महिलाओं के एक ग्रुप द्वारा पिछले साल 11 दिसंबर से शुरू किया गया था, और जब 24 मार्च को राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन शुरू हुआ तो यह अचानक बंद हो गया।
शाहीन बाग में महिलाओं द्वारा चौबीसों घंटे धरने पर बैठने के चलते दक्षिण-पूर्वी दिल्ली को नोएडा से जोड़ने वाली मुख्य सड़क को बंद करना पड़ा था, जिसके चलते 3 महीने से भी अधिक समय तक हजारों यात्रियों को परेशान होना पड़ा। प्रदर्शन कर रही महिलाएं नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) को वापस लेने की मांग कर रही थीं।
ऐसी खबरें थीं कि महिलाओं और बच्चों को शाहीन बाग में फिर से टेंट के भीतर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठने के लिए मनाया जा रहा था। जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों द्वारा यूनिवर्सिटी के मेन गेट के बाहर धरने पर बैठने की तैयारी की खबरें भी सामने आ रही थीं।
इंडिया टीवी के पत्रकारों ने जांच के बाद पुष्टि की कि 3 जून को आंदोलन को फिर से खड़ा करने की एक बड़ी कोशिश की गई थी। इस योजना को गुपचुप तरीके से अंजाम दिया गया था और इसका उद्देश्य कई हजार लोगों को इस बात के लिए गुमराह करना था कि वे पुलिस को भनक लगे बिना अचानक धरनास्थल पर इकट्ठा हो जाएं। लोगों को वॉट्सऐप ग्रुप के जरिए ये कहते हुए मैसेज भेजे जा रहे थे कि वे 3 जून को शाहीन बाग में इकट्ठा हों। सोशल मीडिया पर इसके लिए #SabYaadRakhaJayega के हैशटैग का इस्तेमाल किया जा रहा था।
इन ऐक्टिविस्ट्स ने पुलिस को चकमा देने के लिए पुराने वॉट्सऐप ग्रुप और पहले से जाने-पहचाने ट्विटर हैंडल्स का इस्तेमाल करने से परहेज किया। अपने असल मंसूबों को छिपाने के लिए उन्होंने इसे एक राष्ट्रव्यापी विरोध-प्रदर्शन के रूप में दिखाया, लेकिन हकीकत ये नहीं थी। जामिया और शाहीन बाग इलाकों में घरों के अंदर गुप्त बैठकें होने की भी खबरें सामने आई थीं। इन बैठकों का मकसद महिलाओं और बच्चों को धरनास्थल पर तुरंत पहुंचाने के लिए एक प्लान बनाने का था।
हालांकि दिल्ली पुलिस को इस बारे में पता चल गया और उसने ऐक्टिविस्ट्स के गेम प्लान पर पानी फेरते हुए धरनास्थल पर अपने टेंट गाड़ दिए। छात्रों की भीड़ को रोकने के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया के बाहर पुलिस को भी तैनात कर दिया गया था। इस बार आंदोलनकारियों ने जेएनयू के ऐक्टिविस्ट्स शरजील इमाम, इशरत जहां, खालिद सैफी और शेखुर रहमान के साथ-साथ जामिया के ऐक्टिविस्ट्स सफीर ज़कर, मीरन हैदर और आसिफ इकबाल की गिरफ्तारियों को मुद्दा बनाने का फैसला किया था।
वॉट्सऐप संदेशों में दावा किया गया था कि लगभग 200 संगठनों ने देशव्यापी विरोध बुलाया था। जब इन नामों की पड़ताल की गई तो इंडिया टीवी के पत्रकारों ने पाया कि अधिकांश संगठन CPI और CPI (M) की ओर झुकाव वाले कम्युनिस्टों के थे। ये वे ग्रुप थे जो सीएए और एनआरसी मुद्दों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। मुस्लिम छात्रों और महिलाओं को सबसे आगे रखा गया था, जबकि वामपंथी संगठन पर्दे के पीछे से समर्थन दे रहे थे। दिल्ली पुलिस की सतर्कता के चलते 3 जून से शाहीन बाग आंदोलन को फिर से खड़ा करने के मंसूबों पर पानी फिर गया, और संवेदनशील स्थानों पर पुलिसकर्मियों को तैनात कर दिया गया।
पिछले साल के लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शानदार जीत को पचाने में नाकाम राजनीतिक ताकतें शाहीन बाग आंदोलन के शुरू होने पर खुश थीं। उन्होंने सोचा था कि सीएए और एनआरसी मुद्दों पर उन्हें मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन मिला है। कोरोना वायरस के प्रसार के चलते इन संगठनों की खुशी ज्यादा देर तक नहीं टिक सकी। यदि वायरस चीन से पैदा होकर पूरी दुनिया में नहीं फैला होता तो वे कहते कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शाहीन बाग के आंदोलन से लोगों का ध्यान हटाने के लिए इस वायरस का डर पैदा किया है।
महामारी के शुरू होने के बाद इन आंदोलनकारियों को कोई मौका नहीं मिला। वे जानते थे कि उनके खुद के जीवन के साथ-साथ महिलाओं और बच्चों का जीवन दांव पर था। वे इतना बड़ा जोखिम नहीं उठा सकते थे। देशव्यापी लॉकडाउन के शुरू होने के बाद उनका आंदोलन फिजूल था। अनलॉकिंग की प्रक्रिया शुरू होने और प्रतिबंधों में ढील दिए जाने के बाद इन ताकतों ने एक बार फिर हाथ मिलाया और शाहीन बाग के आंदोलन को फिर से जिंदा करने की कोशिश की। लेकिन अब समय बदल गया है। पुलिस ने अपने मुखबिर तैयार रखे थे जिसके चलते उनके मंसूबों पर पहले ही पानी फिर गया। इस प्रकार, एक और 'वायरस' जो राजनीतिक रूप से प्रभावित कर सकता था, खत्म कर दिया गया। (रजत शर्मा)
देखिए, 'आज की बात' रजत शर्मा के साथ, 04 जून 2020 का पूरा एपिसोड