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Rajat Sharma's Blog: एक ईमानदार डीएम ने आढ़तियों के हाथों किसानों को लुटने से कैसे बचाया

हम अक्सर नौकरशाहों की लापरवाही और संवेदनशून्यता की खबरें या तो पढते हैं या देखते हैं, लेकिन इसी सिस्टम में कई ईमानदार अफसर ऐसे भी हैं जो पूरी लगन के साथ आम आदमी या किसानों के हित में भी काम करते हैं। ऐसे अच्छे अफसरों के कामों की अक्सर राष्ट्रीय मीडिया में अनदेखी होती है।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated : October 16, 2020 15:24 IST
Rajat Sharma's Blog: How a DM in UP saved farmers from being fleeced by private traders
Image Source : INDIA TV Rajat Sharma's Blog: How a DM in UP saved farmers from being fleeced by private traders

हम अक्सर नौकरशाहों की लापरवाही और संवेदनशून्यता की खबरें या तो पढते हैं या देखते हैं, लेकिन इसी सिस्टम में कई ईमानदार अफसर ऐसे भी हैं जो पूरी लगन के साथ आम आदमी या किसानों के हित में भी काम करते हैं। ऐसे अच्छे अफसरों के कामों की अक्सर राष्ट्रीय मीडिया में अनदेखी होती है। 

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बुधवार रात को अपने शो 'आज की बात' में मैंने दिखाया कि कैसे पीलीभीत के जिला मजिस्ट्रेट ने सैकड़ों किसानों को आढ़तियों के हाथों लुटने से बचाया। ये आढ़ती अनाज मंडी में कमीशन एजेंट के रूप में जाने जाते हैं। धान की फसल लेकर मंडी पहुंचे किसानों को उम्मीद थी कि उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,868 रुपए प्रति क्विंटल का भाव मिल जाएगा, लेकिन उन्हें अनाज व्यापारियों के हाथों 1,100 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर फसल बेचने को मजबूर किया जा रहा था।  किसानों को प्रति क्विंटल 768 रुपए का चूना लग रहा था। पीलीभीत के डीएम पुलकित खरे ने ये सब अपनी आंखों से देखा लेकिन उन्होंने किसानों के साथ हो रही ठगी को देखकर आंखें नहीं फेरी, बल्कि किसानों को वाजिब दाम दिला कर ही रहे । 

पीलीभीत के डीएम  को शिकायतें मिली थी कि चावल मिल मालिक और आढतिए किसानों को  न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम कीमत पर धान बेचने के लिए मजबूर कर रहे हैं। सोमवार को उन्होंने तीन सरकारी खरीद एजेंसियों के प्रभारी अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया। 

किसानों ने डीएम से शिकायत की थी कि कर्मचारी कल्याण निगम (केकेएन), यूपी को-ऑपरेटिव यूनियन (यूपीसीयू) और यूपी कोआपरेटिव फेडरेशन (पीसीएफ) के राज्य खरीद केंद्रों पर 'तानाशाही वाली स्थिति' चल रही है। यहां के अधिकारी धान में अधिक नमी के झूठे बहाने बनाकर धान खरीदने से मना कर रहे थे । सरकारी मानकों के मुताबिक, धान में 17 प्रतिशत तक नमी की इजाजत है, लेकिन किसानों को राज्य सरकार के खरीद पोर्टल पर रजिस्टर्ड नहीं किया जा रहा है। नतीजतन, किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से काफी नीचे, निजी व्यापारियों या आढ़तियों के हाथों 1,100 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर धान बेचने के लिए मजबूर किया जा रहा था।

पुलकित खरे ने मौके पर मुआयना किया और पाया कि धान में नमी का स्तर निर्धारित मानकों से ज्यादा नहीं था। उन्होंने तीन अधिकारियों अनुज कुमार, शिवराज सिंह और सर्वेश कुमार को सस्पेंड कर दिया और अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे तुरंत ऑन-द-स्पॉट किसानों के रिकॉर्ड का रजिस्ट्रेशन (पंजीकरण) और सत्यापन कराएं। इतना ही नहीं डीएम ने पीलीभीत एपीएमसी में पिछले दस दिनों में केवल 700 क्विंटल धान खरीदने पर भारतीय खाद्य निगम खरीद केंद्र के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए राज्य सरकार से सिफारिश भी की।

मेरा मानना है कि पुलकित खरे जैसे ईमानदार अधिकारी ही ऐसे सिस्टम को ठीक कर सकते हैं।असल में जहां भी कोई गड़बड़ी होती है, जहां भी कोई कमी होती है तो हम अफसरों को दोष देते हैं, सिस्टम को दोषी ठहराते हैं। लेकिन जब पीलीभीत अनाज मंडी की तस्वीरें आई तो मुझे लगा कि जब अफसर अच्छा काम करे, आम लोगों के साथ, गरीबों के साथ, किसानों के साथ खड़ा हो, तो उन्हें भी दिखाना चाहिए। वे निश्चित तौर पर प्रशंसा के पात्र हैं।

पिछले एक महीने से देश में नए किसान कानूनों की चर्चा हो रही है। किसानों से जुड़े जो तीन नए कानून मोदी सरकार ने बनाए हैं, उस पर जम कर सियासत हो रही है। पंजाब और हरियाणा में किसानों ने अपना विरोध तेज कर दिया है, और कांग्रेस जैसी कुछ पार्टियां इस मुद्दे का राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर हालात बिल्कुल अलग है। एपीएमसी (कृषि उपज मंडियां) काम कर रही हैं और एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) को खत्म नहीं किया गया है।

दरअसल, दिक्कत किसी कानून में नहीं होती, दिक्कत पार्लियामेंट या असेम्बली की नीयत में नहीं होती। दिक्कत होती है सिस्टम में, दिक्कत होती है कानून को लागू करवाने में। पूरे पंजाब और हरियाणा में बेबुनियाद अफवाहें फैलाकर नेता किसानों को गुमराह कर रहे हैं । पंजाब, हरियाणा में इस बात को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं कि सरकार ने किसानों को अपनी फसल कहीं भी बेचने का हक क्यों दे दिया? कहा जा रहा है कि इस कानून से मंडी और एमएसपी खत्म हो जाएगी। पीलीभीत के इस उदाहरण से साफ है कि अगर जिला और राज्य में नौकरशाह  ईमानदारी और लगन के साथ काम करेंगे तो किसानों को फायदा पहुंचेगा। अगर अफसरों की नीयत में ही खोट हो, अफसरों की आढ़तियों से मिलीभगत हो और अगर अफसर किसानों की बातों पर ध्यान न दें तो, न मंडी के होने से कोई फायदा होगा,  और न न्यूनतम समर्थन मूल्य  से कोई बात बनेगी।

दूसरी बात ये है कि भले ही एमएसपी लागू रहे, अगर सिस्टम की खामियां दूर नहीं होगी तो सिर्फ कानून से किसान का भला नहीं हो सकता। कमी कानून में नहीं है। खोट कानून बनाने वालों की नीयत में नहीं है, कमी है इस कानून को लागू करवाने वालों में, खोट है फसल खरीदने के लिए तैनात कर्मचारियों में। अगर पुलकित खरे इस कमी को न समझते, अगर डीएम सिस्टम को सुधारने की कोशिश न करते तो  किसान अपने धान को औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर हो जाते और वे यही सोचते कि कानून तो सिर्फ कागज़ पर है। अगर एमएसपी ज्यादा होने पर भी किसान को अपनी फसल आढ़ती को कम दाम पर बेचनी पड़ती, तो वह तो सरकार को ही दोष देता, पूरे सिस्टम को दोष देता।

मैं पुलकित खरे की तारीफ करूंगा कि उन्होंने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। हमारे यहां ऐसे सैकड़ों आईएएस अफसर हैं जो ईमानदारी से अपना काम करते हैं। कानून, नियमों और सिस्टम को समझते हैं। लेकिन ज्यादातर खबरें ऐसे अफसरों की दिखाई जाती है जो लापरवाही बरतते हैं या जनता के प्रति संदेवना नहीं दिखाते। अगर आईएएस अफसर पुलकित खरे के अंदाज में अपना काम करें तो सरकार गरीब, आम आदमी और किसानों के लिए जो योजनाएं बनाती हैं, वो ठीक से लागू हो पाएंगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना पूरा हो पाएगा।

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